अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के खिलाफ विश्वविद्यालय परिसर में नौ फरवरी को हुए आयोजन मामले में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई ने विश्वविद्यालय प्रशासन और आंदोलनकारी छात्रों के बीच शह-मात का खेल शुरू कर दिया है। विश्वविद्यालय प्रशसन ने कार्रवाई का जो समय चुना वह उनके लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। इसने आंदोलनकारियों को थोड़ी मुश्किल में जरूर डाल दिया है।
जेएनयू में बुधवार से सेमेस्टर परीक्षाएं शुरू हो रही हैं। देखना होगा कि छात्रसंघ क्या इसका तोड़ निकाल पाता है? एक तरफ आंदोलन दूसरे तरफ करियर! सूत्रों के मुताबिक प्रशासन की परीक्षाएं से ठीक पहले कार्रवाई की घोषणा छात्रों की सहभागिता को रोकने की रणनीति है। उनका मानना था कि दंडात्मक कार्रवाई पर आंदोलन नहीं पनपेगा। लेकिन प्रशासन के कदम का जेएनयूएसयू और आइसा ने मात देने का फैसला किया है। जेएनयूएसयू ने दंडित करने के जेएनयू के फैसले के खिलाफ आमरण अनशन की तैयारी है। इसकी घोषणा किसी क्षण की जा सकती है।
कन्हैया मामले पर कार्रवाई विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए गले की हड्डी बन गई है। मामला राजनीतिक ही नहीं देश की संवेदना से जुड़ चुका है और सरकार की सीधी नजर इस मामले पर है। लिहाजा जेएनयू प्रशासन इस मामले में फंूक-फूंक कर कदम रख रहा था। सूत्रों की मानें तो कार्रवाई भी करनी थी और मामले को तूल से भी बचाना था।
इस मामले में दो बार यू टर्न लेना इस अंदेशे की पुष्टि करता है कि विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए यह फैसला चुनौतीपूर्ण बन गया था। करीब एक महीने पहले कमेटी की रपट आई थी। कहना न होगा कि विश्वविद्यालय प्रशासन न तो आरोपी छात्रों को छोड़ पा रहा था और न ही उनके खिलाफ कार्रवाई कर पा रहा था।
दंडात्मक कार्रवाई तभी हो सकती थी लेकिन परीक्षा के ठीक पहले का समय चुनना एक सुलझी रणनीति का हिस्सा है। यहां यह बताना गैर बाजिब नहीं होगा कि दिल्ली के तत्कालीन पुलिस आयुक्त भीम सेन बस्सी का जल्दीबाजी में उठाए गए एक कदम की कीमत उन्हें कितनी चुकानी पड़ी! और नुकसान भरपाई के लिए इलाके के पुलिस उपायुक्त का तबादला तक करना पड़ा था। परिषद और भाजपा के लोग दबे जुबान से ही सही यह कहते नहीं रुकते कि पुलिस की कार्रवाई (गिरफ्तारी) ने कन्हैया को हीरो बना दिया। इसके बाद पुलिस संयमित हुई और आगे गिरफ्तारी से परहेज रखा।
बावजूद इसके इस कार्रवाई ने कैंपस में आंदोलन का नया खाका खींच दिया है। छात्र संघ और वामपंथी आंदोलनकारियों की भी परीक्षा है। उन्होंने दो टूक प्रतिक्रिया जताई है। जेएनयू के विद्यार्थियों-उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य ने कहा कि उन्हें विश्वविद्यालय से निष्कासन का फैसला अस्वीकार्य है और उच्च स्तरीय जांच समिति की जांच बस हास्यास्पद है। छात्र संघ ने इस मामले पर देशव्यापी अभियान की धमकी दी है। अपनी प्रतिक्रिया में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने कहा कि हास्यास्पद जांच के आधार पर दंडात्मक कार्रवाई अस्वीकार्य है और संघ इसे खारिज करता है।
खुद कन्हैया कुमार पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। कन्हैया कुमार ने कहा कि जेएनयूएसयू हास्यास्पद समिति के आधार पर प्रशासन की ओर से दंड दिए जाने को खारिज करता है। अपने विरुद्ध फैसले को ‘अस्वीकार्य’ करार देते हुए अनिर्बान और उमर ने आरोप लगाया कि प्रशासन की कार्रवाई आरएसएस की शह पर परेशान करने जैसी है। जेएनयू ने नौ फरवरी के विवादास्पद कार्यक्रम के सिलसिले में कुमार पर 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है जबकि पीएचडी स्कॉलर उमर और अनिर्बान को अलग-अलग अवधियों के लिए निष्कासित कर दिया है।
आइसा की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुचेता डे ने कहा, ‘यह लड़ाई है, शतरंज का खेल नहीं। लेकिन उन्होंने शह दिया है तो हम मात देगें’! उन्होंने कहा कि कार्रवाई पर फैसला विद्वत परिषद में हुआ है जबकि इसे कार्यकारी परिषद में आना चाहिए था। दो पूर्व छात्राओं-बनज्योत्सना लाहिड़ी और द्रौपदी पर परिसर में पाबंदी लगायी गई है जबकि एक साल के लिए आशुतोष कुमार को और कोमल मोहिते को 21 जुलाई तक छात्रावास की सुविधा से बेदखल कर दिया गया है। संघ अध्यक्ष कन्हैया, उमर और अनिर्बान को विवादित कार्यक्रम के मामले में देशद्रोह के आरोप में फरवरी में गिरफ्तार किया गया और अभी वे सभी जमानत पर हैं। उनकी गिरफ्तारी को लेकर व्यापक विरोध हुआ था।
