देशद्रोह के मामले में 15 साल कोर्ट केस लड़ने के बाद बरी हुए बलवंत सिंह अब एक मिसाल बन चुके हैं। देशद्रोह से जुड़े मामलों में उनके केस का उदाहरण दिया जाता है। हालांकि, बलवंत को कन्हैया कुमार या उन पर लगे देशद्रोह के मामले और जेएनयू में हुई घटना को लेकर देश में जारी बहस के बारे में कोई जानकारी नहीं है। वे न तो टीवी देखते हैं और न ही अखबार पढ़ते हैं। दो साल पहले उन्हें लकवा मार गया, जिसके बाद से उन्हें चलने फिरने में दिक्कत होती है। इसके अलावा, उनकी याददाश्त भी कमजोर हो चली है। बलवंत को जब कन्हैया के मामले के बारे में बताया गया कि उन्होंने कहा कि सरकार सेक्शन 124 ए लगाने पर जोर देती रहती है। हालांकि, उन्हें भरोसा जताया कि कन्हैया बरी हो जाएंगे। यह भी कहा कि उनके मामले से बहुत सारे ‘निर्दोष लोगों’ को राहत मिली है। बलवंत के मुताबिक, उनके केस की मदद से ही अमृतसर के शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मन को 19 केसों में बरी कर दिया गया।
1995 में बलवंत सिंह व अन्य बनाम पंजाब सरकार के बीच केस में कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया। सालों तक कई जजों और वकीलों से गुजरकर बलवंत के पक्ष में फैसला आया, जिसे सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने सुनाया। इसमें कोर्ट ने बलवंत और उनके दोस्त बलविंदर सिंह के खिलाफ लगे आरोपों को रद्द कर दिया। आरोप था कि 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद इन दोनों ने खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाए थे। इसके अलावा, इन दोनों ने कथित तौर पर ‘राज करेगा खालसा’, ‘हिंदुओं को पंजाब से बाहर निकालेंगे, अब मौका आया है राज कायम करने का’ आदि नारे लगाए। कोर्ट ने फैसला सुनाया, ”स्थापित कानून के मुताबिक, एकाध बार कुछ लोगों द्वारा अकेले नारेबाजी भर कर लेने से भारत सरकार को कोई खतरा पैदा नहीं होता। इसके अलावा, ऐसा करने से विभिन्न समुदायों या धर्मों के बीच आपसी दुश्मनी या नफरत की भावना नहीं पैदा होती।”
गिरफ्तारी के वक्त बलवंत डिपार्टमेंट ऑफ डायरेक्टर पब्लिक इंस्ट्रक्शंस में असिस्टेंट ग्रेड के कर्मचारी थे। गिरफ्तारी के अगले दिन उन्हें सस्पेंड कर दिया गया था। 2 मार्च 1985 को चंडीगढ़ के स्पेशल कोर्ट ने एक साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई। वे महीने जेल में भी रहे। इसके बाद, उन्हें सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में जमानत मिली। इसके बाद, वे कई बार जेल गए और बाहर आए लेकिन अपनी अदालती लड़ाई जारी रखी। फिलहाल मोहाली में रहने वाले बलवंत ने कहा कि चंडीगढ़ पुलिस ने उन्हें और उनके दोस्त को फंसाया। उन्होंने खालिस्तान के पक्ष में नारेबाजी करने से इनकार किया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के दो साल बाद 1997 में उन्होंने अकाली दल के टिकट पर फतेहगढ़ साहिब से चुनाव लड़े और विजयी भी हुए। 2002 में वे चुनाव हार गए। इसके बाद से वे राजनीतिक तौर पर सक्रिय नहीं हैं। उन्होंने बताया कि वे अब भी शिरोमणि अकाली दल के पॉलिटिकल अफेयर कमेटी के सदस्य हैं।