लोकसभा चुनाव नजदीक है और उससे पहले लगातार कांग्रेस पार्टी को झटके पर झटके लगते जा रहे है। मिलिंद देवड़ा से लेकर बाबा सिद्दकी और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण ने हाल ही में कांग्रेस छोड़ी है। चव्हाण के जाने से महाराष्ट्र में कांग्रेस पर विधायकों को बचाने का भी संकट मंडरा रहा है और राज्य में नेतृत्व संकट भी है। अभी महाराष्ट्र का झटका लगा था और कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश के बुरी खबरें आने लगी हैं। राज्यसभा के लिए अशोक सिंह का नाम सामने आने के बाद से पार्टी से ही पूर्व सीएम कमलनाथ पार्टी से नाराज चल रहे हैं। कयास ये हैं कि वे बीजेपी का दामन थाम सकते हैं।

आज ही छिदवाड़ा से सांसद और कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ने अपने एक्स अकाउंट के बायो से कांग्रेस पार्टी का नाम हटाया था और उसके बाद ही पिता पुत्र दोनों ही दिल्ली आ गए हैं। दिल्ली आने पर जब कमलनाथ से पूछा गया कि क्या वे बीजेपी में जाने वाले हैं, तो इस पर उन्होंने कहा कि कुछ ऐसा होगा तो बताया जाएगा। आम तौर पर नेता सीधे ऐसी खबरों को खरिज कर सकते हैं लेकिन कमलनाथ ने ऐसा नहीं किया। इसके चलते ही यह कयास और पुख्ता होते जा रहे हैं कि संभवतः कमलनाथ की बीजेपी के साथ बातचीत चल रही है।

कमलनाथ की पॉलिटिक्स की बात करें तो वे आज के वक्त में कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता हैं। राज्य के पूर्व सीएम कमलनाथ पार्टी के लिए रिसोर्स जुटाने तक में अहम रहे है। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने उन्हें एक वक्त अपना तीसरा बेटा तक कहा था। छिंदवाड़ा सीट कमलनाथ का गढ़ रही है। इसी के चलते 2014 और 2019 की मोदी लहर में भी कांग्रेस छिंदवाड़ा जीत चुकी है। कमलनाथ के इस राजनीतिक रसूख के बावजूद उनके करीबी सज्जन कुमार ने कहा है कि वे आत्मसम्मान से समझौता नहीं करेंगे और अपना फैसला भी बदल लेंगे।

दो नामों पर निर्भर कांग्रेस

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की पूरी पॉलिटिक्स ही दो नेताओं पर निर्भर करती रही है। इसमें एक नाम पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का है तो दूसरा कमलनाथ का। दिग्गी और कमलनाथ की जोड़ी के बावजूद पिछले लगभग 20 साल से पार्टी मध्य प्रदेश में विपक्ष की राजनीति ही कर रही है। पार्टी के पास नई पीढ़ी के मामले में भी दोनों नेताओं के बेटे और उनसे जुड़े करीबी ही रहे। ऐसे में सवाल यह उठने लगे हैं कि अगर कांग्रेस छोड़कर कमलनाथ बीजेपी में चले जाते हैं तो फिर कांग्रेस के लिए लीडरशिप के लिहाज से क्या विकल्प होंगे।

युवा नेताओं की कमी

कांग्रेस के पास एक वक्त ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा युवा चेहरा था जो कि कद्दावर नेता माने जाते थे लेकिन 2018 विधानसभा चुनाव के बाद उनके साथ हुई अनदेखी से वे नाराज हुए और बीजेपी में चले गए। अब कांग्रेस के पार्टी जीतू पटवारी दिग्विजय सिंह जैसे नेता ही हैं। इसके अलावा सुरेश पचौरी से लेकर अरुण सुभाष चंद्र यादव अजय सिंह कांतिलाल भूरिया गोविंद सिंह जैसे नेता तो हैं लेकिन जीतू पटवारी के अलावा ये सभी भी बुजुर्ग ही हैं।

जीतू पटवारी को तैयारी करनी होगी अपनी टीम

कांग्रेस पार्टी के लिए मध्य प्रदेश में आज के वक्त में सबसे बड़ा और जाना पहचाना युवा चेहरा हैं तो बस जीतू पटवारी ही हैं। जीतू पटवारी की बात करें तो वे भी इस बार हुए विधानसभा चुनाव में अपनी ही सीट हार गए थे। हालांकि फिर भी कांग्रेस पार्टी ने उन पर भरोसा जताकर उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। ऐसे में अगर कमलनाथ पार्टी छोड़ते हैं तो अध्यक्ष होने के नाते जीतू पटवारी के लिए कांग्रेस पार्टी को एकजुट रखना सबसे बड़ी चुनौती होगी। राज्य में कांग्रेस को फिर से खड़ी करने के लिए जीतू पटवारी को नए सिरे से अपनी टीम बनानी होगी, जिसमें काफी लंबा वक्त भी लग सकता है।