सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ट जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने अपने एक ट्वीट के जरिए कई वरिष्ठ पत्रकारों पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि ये पत्रकार हिंदू रूढ़िवाद की निंदा करते हैं मगर मुस्लिम रीति-रिवाज पर चुप्पी साध लेते हैं। जस्टिस काटजू ने शनिवार (8 अगस्त, 2020) को ट्वीट कर कहा कि ‘सिद्धार्थ, आरफा खानम शेरवानी, बरखा दत्त और राणा अय्यूब जैसे लोग नियमित रूप से हिंदू कट्टरवाद की निंदा करते हैं मगर कभी बुर्का, शरिया, मदरसा और मौलानाओं की निंदा नहीं की, जिन्होंने मुसलमानों को पिछड़ा रखा।’

ट्वीट में आगे कहा कि गया, ‘ये सब मुस्तफा कमाल पाशा ने समाप्त कर दिया था। वास्तविक धर्मनिरपेक्षता का रास्ता दो तरफा होना चाहिए ना की एक तरफा। बता दें कि सिद्धार्थ वरदराजन द वायर के संस्थापक संपादक हैं। आरफा खानम शेरवानी भी द वायर से जुड़ी हैं और सीनियर एडिटर हैं। रिटायर्ड जस्टिस के निशाने पर आईं बरखा दत्त भी मशहूर पत्रकार हैं और राणा अय्यूब लेखक व वरिष्ठ पत्रकार हैं।

काटजू ने ट्वीट में जिस मुस्तफा कमाल पाशा का नाम लिया उन्हें तुर्की का आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष नेता माना जाता है। उन्होंने तुर्की का राष्ट्रपति रहते मुस्लिम रीति-रिवाजों के इतर देश को यूरोप के करीब लाने की कोशिश की। मुस्तफा कमाल पाशा ने ही हागिया सोफिया को मस्जिद से म्यूजियम तब्दील करा दिया था जिसे अब रजब तैयब एर्दोगान की सरकार ने दोबारा मस्जिद में तब्दील कर दिया।

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जस्टिस (रि.) काटजू के ट्वीट पर सोशल मीडिया यूजर्स भी जमकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। ट्विटर यूजर यासिर इकबाल @incredibleYasir लिखते हैं, ‘ऐसा लगता है कि आपने धर्मनिरपेक्षता के बारे में अच्छी तरह से अध्ययन किया है और शरिया के बारे में आप अभी सोशल मीडिया ट्रोलिंग पोस्ट से गुजरे हैं।’ अल्तमश खान @Altamash3874 लिखते हैं, ‘बुर्का, शरिया, मदरसा और मौलाना जबरन थोपना नहीं है। ना ही ये किसी की व्यक्तिगत इच्छा के खिलाफ है और ना ही धर्मनिरपेक्ष सोच वालों के खिलाफ है। इस्लाम जीने का तरीका सिखता है जो आदर्शवादी और यथार्थवादी है। ना ही ये जुल्म का समर्थन करता है और ना ही जुल्म करता है।’

इस ट्वीट के जवाब में रोहित कुमार @rohithkumar_ लिखते हैं, ‘तो पाकिस्तान में हिंदू आबादी क्यों कम हो रही है?’ इसी तरह फर्ज खान @imfarzkhan लिखते हैं, ‘शरिया पढ़िए और किसी मुस्लिम स्कॉलर से मिलिए। आपको ये सब लिखने की जरुरत नहीं पड़ेगी।’ मून @moon_jaiHind नाम से एक यूजर लिखते हैं, ‘धर्मनिरपेक्ष मतलब हिंदू परंपराओं और अनुष्ठानों के बारे में बोलो और शरिया कानून की तारीफ करो। मुगल आक्रमणकारियों का तारीफ और राष्ट्रगान का अनादर। धर्मनिरपेक्षता कोविड-19 से भी घातक है।’

https://twitter.com/mkatju/status/1291940210008195074