16 अक्टूबर 2019 को भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने जब अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पढ़ा तो बहुत सी जिज्ञासाएं मन में कौंधीं। सबसे ज्यादा अहम बात ये थी कि फैसले पर लिखने वाले का नाम नहीं था। लेकिन राज को पेबर्दा करने वाले लोगों ने अपना दिमाग लड़ाया तो कुछ क्लू मिले जिनसे पता लगा कि किसने ये फैसला लिखा था। बात चाहें आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही या फिर सबरीमाला मामले की। जो पैटर्न उन फैसलों में दिखा वो ही अयोध्या मामले में था। यानि अयोध्या फैसले के पीछे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का दिमाग था।

जस्टिस चंद्रचूड़ अब भारत के 50वें सीजेआई बन चुके हैं। उनके दो साल के कार्यकाल पर सभी की नजरें रहेंगी। हो भी क्यों न। बात चाहें आधार फैसले में उनकी विरोधाभासी आवाज की हो या फिर भीमा कोरेगांव केस में दी गई उनकी दलील। मामला अयोध्या का हो या फिर अर्नब गोस्वामी का। तकरीबन हर फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ के व्यक्तित्व की छाप देखने को मिली है। कहीं वो नरम थे तो किसी मामले में उनके तेवर बेहद तल्ख थे।

दिल्ली विवि के सेंट स्पीफेंस कॉलेज के एलुमनि रहे जस्टिस चंद्रचूड़ ने हार्वर्ड से 1983 में अपनी LLM की डिग्री पूरी की। 1986 में उन्होंने जूडिशियल साइंस में डाक्टरेट की। उसके बाद बांबे हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में बतौर एडवोकेट कई मामलों की पैरवी की। 1998 से 2000 तक वो भारत के एएसजी भी रहे। उसके बाद वो बांबे हाईकोर्ट के एडिशनल जज बने। 13 साल तक वहां सेवा देने के बाद 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मनोनीत हुए। 2016 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति मिली।

महाराष्ट्र के पुणे में जन्मे जस्टिस चंद्रचूड़ के दादा विष्णु बी चंद्रचूड़ सावंतवाड़ी रियासत के दीवान थे। बाद में वो बांबे चले आए। वो ऐसे माहौल में बढ़े हुए जहां चारों तरफ संगीत थी। उनके दिवंगत पिता व पूर्व सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ शास्त्रीय संगीत में पारंगत थे। मां प्रभा आल इंडिया रेडियो के लिए गाती थीं। चंद्रचूड़ अपनी मां की म्यूजिक टीचर किशोरी अमोनकर के बड़े फैन थे। वो अक्सर उनके घर आया करती थीं। परिवार के लोग बताते हैं कि अमोनकर ने एक ऑटोग्राफ उनको दिया था जिसमें लिखा था कि संगीत संगीतमत तरीके से शांति की तरफ ले जाता है।

12 साल की उम्र में चंद्रचूड़ दिल्ली आ गए। उनके पिता को सुप्रीम कोर्ट का 13वां जज नियुक्त किया गया था। तुगलक रोड के बंगले में शिफ्ट होने के बाद नए दोस्तों से उनका परिचय हुआ। उनमें से एक थे केएम जोसेफ। उनके पिता केके मैथ्यु सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस थे। जोसेफ के साथ वो फुटबाल खेलते थे। अब दोनों सुप्रीम कोर्ट के अहम स्तंभ हैं। लेकिन जल्दी ही चंद्रचूड़ को फिर से वापस जाना पड़ा बांबे। वहां उन्हें लोग आज भी याद करते हैं। बात चाहें उनकी हरी अंबेसडर कार की हो या फिर उनके फैसलों की।

उनको नजदीक से देखने वाले एक वकील बताते हैं कि अपने पूरे करियर में वो किसी पर चीखते चिल्लाते नहीं दिखे। वो जूनियर्स से वैसा ही बर्ताव करते थे जैसा सीनियर्स से। चार दशकों से ज्यादा से बांबे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले एक वकील कहते हैं कि वो कहते थे कि अच्छे से सुनवाई करनी है तो दो घंटा पहले कोर्ट में आना जरूरी है। उन्होंने कोई फैसला लंबे समय तक पेंडिंग नहीं रखा। ये उनके सुनहरे करियर की एक बेहतरीन बात रही है।