कोरोना काल में मंदिर पहले बने या अस्पताल? Jansatta.com ने अपने फेसबुक पेज पर यह सवाल पूछा। 24 घंटों में ही 1,35,100 लोगों ने इस पर अपनी राय दी। 60% लोगों ने कहा मंदिर, जबकि 40 प्रतिशत लोगों ने अस्पताल की वकालत की।
हजारों कमेंट्स भी: इस सवाल पर बड़ी संख्या में लोगों ने कमेंट भी किए। शुरुआती चौबीस घंटे में ही चार हजार से ज्यादा कमेंट्स आए। हालांकि, ज्यादातर कमेंट्स में हमें देशद्रोही, धर्मविरोधी आदि करार दिया गया और भद्दी गालियां दी गईं, लेकिन कई पाठकों ने संजीदा कमेंट्स भी किए और सवाल से जुड़े पहलुओं को रेखांकित किया। अलग-अलग लोगों के संजीदा कमेंट्स पढ़ने के बाद हमें जो सार समझ आया, वह यहां रख रहे हैं।
कई लोगों ने मंंदिर को ‘हिंंदू गौरव’ से जोड़ा और कुछ इस तरह की राय दी- हमारे देश में अभी काफ़ी अस्पताल हैं औऱ आगे भी बन जाएंगे। पर, यह मंदिर सिर्फ़ एक मंदिर नहीं है, हमारी आन-बान-शान है। इसके लिए हमने काफ़ी संघर्ष किया है हजारों लोगों ने बलिदान दिया है…
कुछ की राय में- अस्पताल तो बहुत सारे हैंं, सिर्फ प्रबंधन की जरूरत है। उचित व्यवस्था हो, बस। अस्पताल तो गांव गांव में है, सिर्फ सही रूप से चलाया जाए।
कई लोग मस्जिद की जगह अस्पताल बनाए जाने की दलील दे रहे थे, तो कुछ की राय थी कि मंदिर और मस्जिद की जगह अस्पताल चाहिए।
एक राय यह भी रही कि मंदिर और अस्पताल की तुलना नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि एक शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है तो दूसरा आध्यात्मिक मजबूती के लिए। डब्ल्यूएचओ ने कह दिया है कि हमें कोरोना वायरस के साथ ही जीना होगा तो कोरोना काल क्या होता है? जीने के लिए अस्पताल के अलावा स्वस्थ-सुखी मन की भी जरूरत है जो आध्यात्म से ही संभव है।
काफी लोगों ने यह कह कर पोल की आलोचना की कि सवाल में मंदिर की जगह मस्जिद क्यों नहीं लिखा गया? ऐसा पूछने वालों ने ‘मंदिर’ को धार्मिक स्थलों के प्रतीक और पांच अगस्त के कार्यक्रम के मद्देेनजर इस्तेमाल किए गए शब्द के रूप में नहींं देखा।
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सरकार भी बनवा रही प्रतिमा: बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हुआ है। इसके मद्देनजर यूपी सरकार भी अयोध्या पर काफी खर्च कर रही है। नवंबर, 2019 में यूपी की योगी आदित्य नाथ सरकार ने 447.46 करोड़ रुपए का बजट मंजूर किया है। यह पैसा राम नगरी अयोध्या को सजाने-संवारने और बुनियादी सुविधाएं विकसित करने पर खर्च होगा। इसका एक हिस्सा राम की 221 मीटर लंबी प्रतिमा स्थापित करने पर खर्च होगा। स्पष्ट कर दें कि इस प्रतिमा का राम मंदिर से कोई सरोकार नहीं है।
300 करोड़ का बजट: श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष ने बताया कि 48 करोड़ रुपए का इंतजाम हो चुका है। इसमें सात करोड़ रुपए विदेशी लोगों से मिले हैं, जो कागजी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ट्रस्ट के खाते में आएंगे। अनुमान है कि मंदिर निर्माण में 300 करोड़ रुपए की राशि और साढ़े तीन साल का वक्त लगेगा।
आलोचकों की राय: पांच अगस्त को हुए भूमि पूजन कार्यक्रम की कई लोग आलोचना भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि पांंच अगस्त का दिन इसलिए चुना गया, क्योंकि इसी दिन 2019 में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म की गई थी। कोरोना और लॉकडाउन के बीच शिलान्यास आयोजित करने की अनिवार्यता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। बता दें कि पांच अगस्त तक देश में 19,23,837 लोग कोरोना की चपेट में आ चुके हैं और 40,699 जान गंवा चुके हैं।
आलोचक इस पर भी ऐतराज जता रहे हैं कि अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद राम मंदिर का शिलान्यास किया। सरकारी टीवी चैनल दूरदर्शन ने कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया।
आलोचक अपनी बात में दम लाने के लिए इतिहास का भी सहारा ले रहे। याद दिला रहे कि 1951 में सोमनाथ मंदिर को जब जीर्णोद्धार के बाद दोबारा खोला जाना था तब तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने वहां जाने की ख्वाहिश की थी, पर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस पर अपना इनकार साफ जता दिया था और कहा था कि धर्म को सार्वजनिक जीवन से अलग ही रखा जाए।

