Jammu Kashmir Statehood: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला हों या केंद्र सरकार के प्रतिनिधि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा… सभी ने यह कहा था कि जम्मू कश्मीर का हाल दिल्ली जैसा नहीं होगा और न ही सरकार को कामकाज में कोई दिक्कत होगी। जल्द ही पूर्ण राज्य का दर्जा भी बहाल किया जाएगा लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि जब सभी सरकार का कामकाज सुचारू रूप से चलाने की बात कर रहे हैं, तो फिर आखिर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को ब्यूरोक्रेसी को चेतावनी देने की जरूरत क्यों पड़ी?
दरअसल, सोमवार को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि उन्हें सर्वोच्च अथारिटीज से यह भरोसा दिया गया है कि जल्द ही जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश की बजाए पुनः पू्र्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा। प्रशासनिक सचिवों को उमर अब्दुल्ला ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर कोई यह सोचता है कि हमारा केंद्र शासित प्रदेश होना उन्हें शपथ के विरुद्ध जाने वाले कार्यों के परिणामों से बचाएगा, तो कृपया याद रखें कि यह सुरक्षा कवच अस्थायी है, और जल्द ही हट जाएगा।
शासन प्रणाली के फायदा उठाने का लगाया आरोप
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि उन्हें इस बात का पूरा अहसास है कि दुर्भाग्य से इस समय हमारे पास शासन की हाइब्रिड प्रणाली है, और मुझे लगता है, मैं परिणामों की परवाह किए बिना यह कहने जा रहा हूं कि कुछ लोगों को लग सकता है कि वे इस प्रणाली का फायदा उठा सकते हैं, वे इस वर्किंग प्रोसेस में खामियां भी ढू्ंढ रहे हैं। बता दें कि सीएम जम्मू-कश्मीर के शासन मॉडल का जिक्र कर रहे थे, जहां प्रमुख प्रशासनिक मुद्दों पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की राय ली जाती है और प्रशासनिक सचिव उनके अधीन ही काम करते हैं।
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दिल्ली से भरोसा मिलने की कही बात
दिल्ली में केंद्रीय नेताओं के साथ हुई बैठकों को लेकर उमर अब्दुल्ला ने कहा कि मैं अभी दिल्ली में हुई बहुत सफल बैठकों से वापस आया हूं। मुझे उच्चतम स्तर पर आश्वासन मिला है कि जम्मू-कश्मीर के लिए की गई उनकी कोशिश पूर्ण राज्य का दर्जा वापस करने की है। मुख्यमंत्री ने नौकरशाहों से कहा कि एक बार जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाए, तो कोई खामी नहीं रहेगी जिसका फायदा उठाया जा सकेगा।
केंद्र के पास पहुंचा है पूर्ण राज्य का प्रस्ताव
जम्मू कश्मीर में सरकार बनाने के बाद उमर अब्दुल्ला ने पहली कैबिनेट मीटिंग में ही जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य बनाने का प्रस्ताव पास किया था और इसे उपराज्यपाल के पास भेज दिया था। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी दूसरे दिन ही इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए केंद्र सरकार के पास भेज दिया था। लगातार यह बातें कहीं जा रही हैं कि जल्द ही पूर्ण राज्य बहाल किया जाएगा। पीएम मोदी से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक यह कह चुके हैं कि चुनाव के बाद नॉर्मलसी आने के बाद पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा।
जल्द मिलेगा पूर्ण राज्य का दर्जा?
अगर सहयोग तो फिर अधिकारियों से नाराजगी क्यों?
उमर अब्दुल्ला खुद कह रहे हैं कि उन्हें केंद्र से लेकर उपराज्यपाल तक का सहयोग मिल रहा है, लेकिन सवाल यह है कि अगर उन्हें सहयोग मिल रहा है तो फिर नाराजगी क्यों? क्योंकि अधिकारी तो उपराज्यपाल के ही इशारे पर काम कर रहे हैं। इसीलिए यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये उपराज्यपाल और सरकार के बीच टकराव की ओर पहला कदम तो नहीं?
जम्मू कश्मीर में अभी नई सरकार बनी है, ऐसे में तुरंत ही उपराज्यपाल से टकराव होना असहज हो सकता है। ऐसे में सीएम द्वारा अधिकारियों को दी गई वॉर्निंग को विवादों को जन्म देने की पहली कड़ी के तौर पर देखा जा रहा है, क्योकि वर्तमान स्थिति में उमर अब्दुल्ला के पास पुलिस यानी लॉ एंड ऑर्डर तक की पावर नहीं है।
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संसद सत्र पर निर्भर रहेंगे केंद्र और राज्य के रिश्ते?
एक अहम पहलू यह भी है कि कैबिनेट के प्रस्ताव को तुरंत ही उपराज्यपाल ने मंजूर करके आगे बढ़ा दिया, जिससे उपराज्यपाल और सीएम के बीच स्थिति सुधर गई लेकिन अब सबसे अहम संसद का शीतकालीन सत्र होगा। अगर शीतकालीन सत्र में जम्मू कश्मीर के पूर्ण राज्य के दर्जे को लेकर कोई सकारात्मक चर्चा होती है, तो निश्चित तौर दोनों सरकारों के बीच स्थिति सुधरेगी।
वहीं, अगर शीतकालीन सत्र में कुछ नहीं होता है, तो कहीं न कहीं, अधिकारियों को डपटने वाली घटना से शुरू हुआ टकारव, एक और कदम आगे बढ़ सकता है। इसीलिए यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या उमर अब्दुल्ला, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की राह पर हैं, क्योंकि केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच टकराव की शुरुआत भी अधिकारियों से जुड़े मुद्दों से ही हुई थी।
केंद्र मजबूत रखना चाहेगा अपनी पकड़
जम्मू-कश्मीर में बीजेपी की स्थिति मजबूत है लेकिन सत्ता न होने के चलते यह संभावना भी है कि केंद्र के जरिए बीजेपी अपनी पकड़ राज्य में मजबूत रखे। इसकी वजह यह भी है कि यह संवेदनशील राज्य है जिसकी सीमाएं पाकिस्तान से लगती हैं।
दूसरी ओर पाकिस्तान पोषित आतंकवाद के चलते, पिछले कुछ दिनों में काफी आतंकी वारदातें हुईं हैं, जिसके चलते केंद्र सरकार अभी पूर्ण राज्य न बनाने को लेकर सुरक्षा संबंधी तर्क भी दे सकती है। आतंकी घटनाओं का बढ़ना ही भविष्य में पूर्ण राज्य के दर्जा मिलने में आने वाली एक बड़ी बाधा बन सकता है।