केन्द्र सरकार ने सोमवार को राज्यसभा में पेश किए गए संकल्प से जम्मू कश्मीर को आर्टिकल 370 के तहत मिले विशेषाधिकार को खत्म कर दिया। इसके साथ ही पिछले 70 सालों से चले आ रहे विवाद को सुलझाने की दिशा में सरकार ने कदम बढ़ा दिया है। बता दें कि जम्मू कश्मीर का मुद्दा देश की आजादी के साथ ही शुरू हो गया था, जिसे समझने के लिए हमें इतिहास की ओर जाना होगा।
देश की आजादी से ही शुरू हुआ विवादः साल 1947 में ब्रिटेन ने द इंडियन इंडिपेंडेंट एक्ट, 1947 से भारत और पाकिस्तान का बंटवारा कर दिया। उस दौरान राजशाही रियासतों को तीन विकल्प दिए गए। इन विकल्पों के तहत उन्हें भारत के साथ मिलने या फिर पाकिस्तान के साथ शामिल होने या फिर तीसरे विकल्प के तौर पर आजाद रहने की छूट दी गई थी। इस पर जम्मू कश्मीर के राजा हरि सिंह ने उस समय आजाद रहने का विकल्प चुना था।
पाकिस्तान के कबालियों ने किया हमलाः आजादी के कुछ दिनों बाद ही पाकिस्तान के कबाइलियों ने जम्मू कश्मीर पर नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस से हमला बोल दिया। इस पर महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी। भारत सरकार ने इस पर बदले में जम्मू कश्मीर के सामने भारत में शामिल होने की शर्त रखी। इस पर 26 अक्टूबर, 1947 में महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ Instrument of Accession with India पर हस्ताक्षर किए। वहीं आर्टिकल 370 साल 1949 में प्रकाश में आया।
What is Article 370, Know Here
संविधान में मिला विशेष दर्जाः 26 जनवरी, 1950 को भारत में संविधान लागू हुआ। जिसमें जम्मू कश्मीर को आर्टिकल 370 के जरिए कई विशेषाधिकार दिए गए। इसी बीच 9 अगस्त, 1953 को जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। सरकार ने इसका कारण दिया कि शेख अब्दुल्ला अपनी कैबिनेट का विश्वास खो चुके थे। इसके बाद शेख अब्दुल्ला को 11 साल की जेल हुई, लेकिन बाद में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनके साथ समझौता कर लिया।
खास बात ये है कि 14 मई, 1954 को आर्टिकल 370 के साथ आर्टिकल 35ए भी जोड़ा गया, जो कि कश्मीर के लोगों की स्थायी नागरिकता का उल्लेख करता था। इसी दौरान जम्मू कश्मीर में प्रधानमंत्री के पद को हटाकर जम्मू कश्मीर के सीएम का पद दिया गया। बता दें कि 1954 तक जम्मू कश्मीर में प्रधानमंत्री का पद होता था।
इंदिरा गांधी- शेख अब्दुल्ला की संधिः 24 फरवरी, 1975 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी और शेख अब्दुल्ला के बीच एक संधि हुई। इस संधि के तहत जम्मू कश्मीर भारत गणराज्य की संवैधानिक ईकाई होगा और भारतीय संविधान के आर्टिकल 370 के तहत उसका प्रशासन किया जाएगा।
इस दौरान 80 के दशक के अंत में कश्मीर घाटी में उग्रवाद का दौर शुरु हो गया। साल 1987 में कांग्रेस के समर्थन से फारुख अब्दुल्ला सत्ता में आए और इन चुनावों से घाटी में अविश्वास का माहौल पनपा, जिससे उग्रवाद को बढ़ावा मिला।
1987 के चुनावों से उपजा अविश्वास साल 1989 में उग्रवाद के रुप में सामने आया। इसी दौरान हिंसा का दौर शुरु हुआ और आतंकियों ने जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी का अपहरण कर लिया। जनवरी, 1990 में विरोध प्रदर्शन इतने ज्यादा बढ़ गए कि श्रीनगर के ग्वाकदल पुल पर भीड़ के साथ झड़प में सीआरपीएफ जवानों ने भीड़ पर गोलियां चला दी। जिसमें 100 लोगों की मौत हो गई।
जम्मू कश्मीर पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, उग्रवादियों ने साल 1989 से कश्मीरी पंडितों की हत्या शुरू कर दी और साल 1990 तक घाटी में 209 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई। इस नरसंहार के बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ना शुरू कर दिया।
1999 का कारगिल युद्धः कश्मीर विवाद में साल 1999 में कारगिल युद्ध का बड़ा महत्व है। पाकिस्तान की सेना ने घुसपैठ के जरिए भारतीय इलाके में घुसपैठ की और ऊंची चोटियों पर बैठ गए। हालांकि भारतीय सेना ने अदम्य साहस का परिचय दे, इस लड़ाई में जीत हासिल की।
अप्रैल 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में दिए अपने भाषण में कहा कि कश्मीर समस्या का हल सिर्फ बातचीत और इंसानियत से हो सकता है। इसके बाद यूपीए सरकार ने अपने 10 साल के कार्यकाल में कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान से बातचीत की कोशिशें की, लेकिन कोई हल नहीं निकल सका। इस बीच साल 2008 में अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने के मुद्दे और बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद से कश्मीर में फिर से हिंसा का दौर शुरु हुआ।
What is Article 35A, Know here
साल 2014 में कश्मीर की राजनीति में बड़ा बदलाव हुआ और पीडीपी ने भाजपा के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनायी। हालांकि साल 2018 में दोनों पार्टियों का गठबंधन टूट गया और जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। अब इसी राष्ट्रपति शासन के दौरान भाजपा की केन्द्र सरकार ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 के सभी खंडों को हटाने का फैसला किया है।