जम्मू-कश्मीर की राजनीति के लिए यह साल ऐतिहासिक रहा और पिछले साल नवंबर-दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु सदन बनने के बाद पीडीपी के साथ गठबंधन करने से भाजपा पहली बार राज्य में सत्ता में आई। इसके अलावा, राज्य में गोमांस की बिक्री पर प्रतिबंध का मुद्दा भी राजनीतिक परिदृश्य पर छाया रहा। जम्मू हाई कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिए थे कि वह गोहत्या मामले पर स्वतंत्रता से पूर्व के कानून का सख्ती से क्रियान्वयन करे। यह मुद्दा विधानसभा के शीतकालीन सत्र में गूंजा।
इस मुद्दे ने उस समय भद्दा रूप ले लिया जब भाजपा के कम से कम तीन विधायकों ने कथित तौर पर विधायक हॉस्टल के अंदर एक ‘बीफ पार्टी’ की मेजबानी करने के सिलसिले में कश्मीर के एक निर्दलीय विधायक पर कथित रूप से हमला कर दिया। इस बीच, गोमांस प्रतिबंध के मुद्दे पर पसोपेश बना रहा क्योंकि हाई कोर्ट के श्रीनगर पीठ ने प्रतिबंध के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से कहा था कि गोवंश वध को अपराध से मुक्त करने की याचिका पर वह अपना जवाब दाखिल करे।
मुफ्ती सरकार ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में जाने का रास्ता चुना लेकिन शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट से कहा कि वह इसका निपटारा करे। राज्य की दो पीठों के परस्पर विरोधी आदेशों को दरकिनार करते हुए हाई कोर्ट के पूर्ण पीठ ने इस मामले को यह कहकर सरकार के पाले में डाल दिया कि वह इस मुद्दे का समाधान करे। यह मुद्दा अभी अदालत में लंबित ही था कि इसी बीच नौ अक्तूबर को जम्मू इलाके के ऊधमपुर में भीड़ ने एक ट्रक में सफर कर रहे तीन कश्मीरियों पर पेट्रोल बम से हमला कर दिया, जिससे इनमें से एक युवक ने दस दिन बाद जलने से दम तोड़ दिया। इस युवक की मौत के विरोध में घाटी में उग्र प्रदर्शन शुरू हो गए जिसकी वजह से प्रशासन को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कुछ दिनों के लिए कर्फ्यू जैसी पाबंदी लगानी पड़ी।
इसके अलावा, पीडीपी संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद ने एक मार्च को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी बार शपथ ली। वे ऐसे तीसरे व्यक्ति बने जिसने राज्य में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इससे पहले गुलाम मोहम्मद सादिक दो बार और फारुक अब्दुल्ला तीन बार शपथ लेकर यह इतिहास रच चुके हैं। बहरहाल, मार्च में गठबंधन को अंतिम रूप देने के लिए पीडीपी और भाजपा के बीच काफी ड्रामा हुआ। इस गठबंधन पर अपनी प्रतिक्रिया में सईद ने कहा था कि उत्तर और दक्षिण धु्रव एक साथ आए हैं। इन दो दलों को साझा न्यूनतम कार्यक्रम बनाने में दो महीने से ज्यादा का समय लगा था। बातचीत पिछले साल दिसंबर से शुरू हुई थी और इस साल फरवरी के अंत तक चली। आधिकारिक रूप से इसे ‘गठबंधन का एजंडा’ नाम दिया गया।
बताते चलें कि पीडीपी नेतृत्व ने पिछले साल के अंत में हुए विधानसभा चुनाव प्रचार में अपने चिरपरिचित स्वशासन के मुद्दे, सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) हटाने और राज्य में ऊर्जा परियोजनाओं को लाने के अलावा देश के एकमात्र मुसलिम बहुल राज्य में भाजपा को सत्ता में आने से रोकने पर जोर दिया था। इस चुनाव में भाजपा की कमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाथ में थी। भाजपा ने इसमें कांग्रेस पर निशाना साधने के बजाय पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस की ‘वंशवादी राजनीति’ पर हमले किए।
पीडीपी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को अपने जनाधार वाले इलाके कश्मीर घाटी में भाजपा के साथ गठबंधन का रास नहीं आया और अब वे इसे एक ‘बड़ी गलती’ बता रहे हैं। गठबंधन बनने के बाद सईद ने भाजपा के साथ हाथ मिलाने के अपने कदम को उचित ठहराया और कहा कि यह एक ‘ऐतिहासिक अवसर’ है और इससे राज्य में क्षेत्रीय मनमुटाव को खत्म करने में मदद मिलेगी।
इस साल घाटी में सुरक्षा बलों को आतंकवादियों के खिलाफ कई सफलताएं भी मिलीं। सेना ने इस साल कुछ शीर्ष आतंकी कमांडरों सहित 64 आतंकियों को मार गिराया। हालांकि, सुरक्षा बलों को भी बल के कमांडो बल के अधिकारी संतोष महादिक की शहादत सहित कुछ बड़े नुकसान से गुजरना पड़ा।