ग्रामीण क्षेत्र में परंपरागत जल प्रबंधन, जल पुनर्जीवन और मेड़बंदी विधि से सूखी धरती को पानी से लबालब करने की तकनीकी को विकसित करने पर बुंदेलखंड के जखनी जलग्राम को एशिया के वेस्ट ट्रेडिशनल टेक्नोलॉजी रूरल एरियाज वाटर कंजर्वेशन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वाटर डाइजेस्ट विभिन्न प्रकार की तकनीकों के माध्यम से जल संरक्षण करने वाले, वर्षा जल को रोकने और संग्रहण करने के क्षेत्र में काम करने वाले एशिया महाद्वीप के सामाजिक कार्यकर्ताओं और संस्थाओं को पिछले 14 वर्ष से यह सम्मान दिया जा रहा है। इस बार इस पुरस्कार के लिए एशिया के 50 लोगों का चयन किया गया। इसमें यूपी के बुंदेलखंड क्षेत्र के बांदा जिला स्थित जखनी जलग्राम भी शामिल है। एशिया में पानी के क्षेत्र में यह महत्वपूर्ण पुरस्कार माना जाता है।
नई दिल्ली में वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर हुए पुरस्कार समारोह के मुख्य अतिथि केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत थे। अध्यक्षता भारत में यूनेस्को के निदेशक एरिक फॉल्ट ने की। इस मौके पर केंद्रीय जलशक्ति राज्य मंत्री रतन लाल कटारिया, जल शक्ति सचिव भारत सरकार यूपी सिंह, महानिदेशक राष्ट्रीय गंगा मिशन राजीव रंजन मिश्रा, निदेशक वाटर डाइजेस्ट अनुपमा मधोक, निदेशक श्री राम इंस्टिट्यूट केम चाको, कार्यक्रम विशेषज्ञ प्राकृतिक विज्ञान यूनेस्को गाय ब्रोके सहित एशिया के कई देशों के जल विशेषज्ञ भी मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन फिल्म स्टार मंदिरा बेदी ने किया।
पुरस्कार ग्रहण करते हुए जाने-माने सर्वोदय नेता और सामाजिक कार्यकर्ता तथा जल ग्राम जखनी के संस्थापक उमा शंकर पांडे ने कहा कि हमारे पुरखों की वर्षा भू जल संरक्षण विधि आज भी खरी, सुलभ, सस्ती, टिकाऊ और उपयोगी है। इसके लिए किसी नवीन तकनीकी और मशीनी ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। पिछले 25 वर्षों से बगैर किसी सरकारी सहायता के सामुदायिक आधार पर मेड़बंदी के माध्यम से जल संरक्षण करने के लिए यह अभियान मेड़बंदी यज्ञ के रूप में किया जा रहा है। बगैर प्रचार-प्रसार के मेड़बंदी यज्ञ सूखा प्रभावित राज्यों में बड़ी तेजी से पहुंच रही है।
कहा कि इसे किसानों ने समाज ने और सरकार ने स्वीकार किया है। इस प्रयोग को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान पहले ही मिल चुकी है। ‘द वाटर डाइजेस्ट वाटर अवार्ड्स 2020’ मिलने के साथ यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बना ली है। हमारा नारा है ‘खेत पर मेड़ मेड़ पर पेड़’। वर्षा की बूंदें जहां गिरें, वही रोकें। मेड़बंदी से खेतों में नमी रहती है, खरपतवार भी नष्ट हो जाते हैं और खेत को जैविक ऊर्जा प्राप्त होती है। मेड़ पर औषधीय एवं छायादार पेड़ लगाने से अतिरिक्त आमदनी भी होती है। पुऱखे लोग पानी की खेती, पानी पर खेती और पानी के द्वारा खेती सदियों से करते रहे हैं।