पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आंध्र प्रदेश के विभाजन पर किताब लिखी है। किताब का नाम ‘ओल्‍ड हिस्‍ट्री न्‍यू ज्‍योग्राफी: बाइफकेटिंग आंध्र प्रदेश।’ इसमें उन्‍होंने लिखा है कि अलग तेलंगाना की मांग को लेकर 2011 में बड़ी संख्‍या में आत्‍महत्‍या और 2012 में भाजपा सहित सभी विपक्षी पार्टियों के बंटवारे को समर्थन के चलते यूपीए सरकार ने आंध्र प्रदेश का बंटवारा किया। साथ ही इसमें एक साल तक चली बहसों और बातचीत के दौर को भी जगह दी गई है। बता दें कि यूपीए सरकार ने 2013 में आंध्र प्रदेश के बंटवारे का फैसला लिया था।

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जयराम रमेश आंध्र प्रदेश के बंटवारे पर फैसला लेने वाले मंत्रियों के समूह का हिस्‍सा थे। उनके अनुसार अलग तेलंगाना को लेकर सबसे महत्‍वपूर्ण फैसला संभवतया जून 20113 के आखिरी सप्‍ताह में मनमोहन सिंह के घर पर लिया गया। इसके कुछ दिन बाद कांग्रेस ने इस संबंध में प्रस्‍ताव पास कर दिया। किताब में उन्‍होंने कहा, ” उस शाम प्रधानमंत्री ने सोनिया गांधी, एके एंटनी, सुशील कुमार शिंदे, गुलामनबी आजाद, पी चिदम्‍बरम, अहमद पटेल और दिग्विजय सिंह को अपने घर पर बुलाया। इस बैठक में तेलंगाना बनाने का फैसला लिया गया। बाद में 30 जुलाई को कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने मंजूर कर लिया।”

रमेश ने कहा कि उन्‍हें साफ साफ नहीं पता कि किसके चलते फैसला लिया गया जबकि तब तक सरकार इंतजार करने के मूड में थी। उन्‍होंने कहा, ”हो सकता है 2011 में बड़ी संख्‍या में सुसाइड और 2012 में तेलंगाना बनाने की मांग ने निर्णय को प्रभावित किया। यह भी हो सकता है कि भाजपा, तेलुगुदेशम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस ने अलग तेलंगाना बनाने के लिए लिखित में समर्थन किया। इसके चलते कांग्रेस को लगा कि बंटवारे के फैसले से उसकी पकड़ मजबूत होगी।” रमेश ने कहा कि यह उम्‍मीद थी कि टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव कांग्रेस में अपनी पार्टी को मिला लेंगे इससे भी यूपीए बंटवारे को राजी हुआ।