वीर सिंह

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अन्य वैज्ञानिक संगठन ऐसे चंद्र मिशनों को निरंतर विकसित कर रहे हैं, जिससे हमें चंद्रमा की सतह पर पानी, वातावरण और जीवन की संभावनाओं के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध होगी। ये मिशन हमें मानव जीवन के लिए स्थायी आवास की संभावनाएं और चंद्रमा के संपर्क में तथा उसकी खोज से और अधिक आगे बढ़ने के लिए साधनों के विकास के बारे में ज्ञान प्रदान करेंगे।

विश्व की अंतरिक्ष यात्राओं के इतिहास में चांद की सतह पर मानव के कदम पड़ने और मंगल ग्रह पर भारत की विजय के बाद किसी भी अंतरिक्ष कार्यक्रम ने इतना सार्वभौमिक कौतूहल पैदा नहीं किया, जितना 14 जुलाई को चंद्रयान-3 के अंतरिक्ष में छोड़े जाने ने किया है। चंद्रयान-3 के सफल प्रक्षेपण के बाद सारे विश्व की दृष्टि भारत पर टिक गई है।

विश्व का शायद ही कोई ऐसा सूचना माध्यम होगा, जिसने इस घटना के बारे में समाचार न दिया हो। और तो और, चीन के राजकीय समाचार पत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने भी भारत को इस सफलता पर बधाई भेजी और इस कदम की सराहना की है। समाचार यह भी है कि अमेरिका, आस्ट्रेलिया और स्पेन ने चंद्रयान-3 पर नजर रखना भी शुरू कर दिया है।

चंद्रमा, मानव जीवन के लिए सदैव एक रहस्यमय खगोलीय पिंड रहा है। पृथ्वी एक जिंदा ग्रह है और चंद्रमा उसका निर्जीव ग्रह! यह रहस्य कभी-कभी खटकता है। धरती मां का भाई चंद्रमा- हम भारतीयों ने तो सहस्राब्दियों से उसे ‘चंदा मामा’ माना है। चंद्रमा के प्रति ऐसा भावनात्मक संबंध भारतीय सभ्यता के अलावा शायद ही किसी का रहा हो।

अपोलो-11 के बाद अंतरिक्ष यात्रा के लिए विश्व के अनेक देशों ने अपने अंतरिक्ष मिशन प्रारंभ कर दिए थे। भारत भी अंतरिक्ष क्लब का एक प्रतिष्ठित सदस्य है। वर्ष 1969 में अंतरिक्ष में अपोलो-11 मिशन से नासा ने चांद की सतह पर मानव को उतार कर अंतरिक्ष कार्यक्रम में सबसे लंबी छलांग लगाई थी। आधी शताब्दी बीत गई, जब चांद की धूल मानव के पैरों पर पड़ी। इस बीच अंतरिक्ष कार्यक्रमों ने ब्रह्मांड के बहुत सारे रहस्यों की परतें खोल दी हैं। भारत के चंद्रयान-1 द्वारा चांद पर पहली बार पानी की खोज की गई।

फिर चद्रयान-2 (जो अपेक्षित रूप से सफल नहीं हुआ था) के बाद से चंद्रमा फिर से अंतरिक्ष कार्यक्रमों का आकर्षण बन गया है। चंद्रयान-3 की कौतूहल भरी चर्चाओं में पहले अमेरिका के नासा ने और इसके प्रक्षेपण से दो दिन पहले चीन के नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने चांद पर मानव भेजने की घोषणा कर डाली।

अब तक केवल कुछ ही देशों ने चंद्रमा पर ‘मून मिशन’ के माध्यम से अपने यान उतारे हैं। इनमें सबसे पहला देश था सोवियत संघ (आज का रूस), जिसने 1959 में अपना पहला लूना मिशन शुरू किया। सोवियत संघ का लूना-2 सबसे पहले चंद्रमा की सतह पर उतरने वाला उपकरण था। इसके बाद सोवियत संघ के चंद्रमा की सतह पर उतरने वाले कई मिशन सफल हुए।

संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1961 में अपने अपोलो मिशन का शुभारंभ किया। इस मिशन के माध्यम से, अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों ने चंद्रमा के आसपास यात्रा की और 1969 में अपोलो-11 मिशन के अंतर्गत नील आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा की सतह पर एक छोटा कदम रख कर मानव जाति के लिए एक लंबी छलांग लगाई।

भारत ने 2008 में चंद्रयान-1 मिशन की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह का मानचित्रण करना था। उसके बाद चंद्रयान-2 के जरिए 2019 में चंद्रमा की सतह पर लैंडर विक्रम को उतारने का प्रयास किया गया, लेकिन सतह पर पहुंचने से पहले वह विफल हो गया। चीन ने 2007 में चांगये-1 की शुरुआत की। इसने चंद्रमा की सतह का मानचित्रण तैयार किया और वहां के नमूने धरती पर लाए गए। इजराइल ने 2019 में अपने पहले मून मिशन ‘बरेशित’ की शुरुआत की, लेकिन चंद्रमा पर उतरते समय वह विफल हो गया।

भारत का चंद्रयान-1 मिशन मानव के लिए इसलिए महत्त्वपूर्ण था कि इसने पहली बार चंद्रमा पर पानी की उपस्थिति के संकेत दिए थे। इससे पहले नासा के अपोलो और सोवियत संघ के लूना मिशन ने चंद्रमा पर पानी की उपस्थिति के कोई संकेत नहीं दिए थे। चंद्रमा पर पानी की उपस्थिति दरअसल भारत की खोज है, जो उसने अपने पहले प्रयास में ही खोज कर ली थी।

चंद्रयान-2 मिशन, जिसे भारत ने 2019 में लांच किया था चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव को छूने का प्रयास करने के लिए था। इसमें एक अंतरिक्ष वाहन, अलवीएटर (लैंडर) और रोवर (चलने वाला रोबोट यात्री उपकरण) सम्मिलित थे। हालांकि चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतर नहीं पाया, लेकिन वह चंद्रमा के कुछ दूसरे क्षेत्रों को छूने में सफल रहा। यह मिशन नए डेटा और वैज्ञानिक जानकारी को उजागर करने के लिए महत्त्वपूर्ण था, जिसने चंद्रमा के वातावरण और ऐतिहासिक विकास के बारे में हमें कुछ ज्ञान दिया है।

भारत का वर्तमान चंद्रयान-3 मिशन भी वातावरण के अध्ययन के लिए है और इसका मुख्य उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र को छूने और वहां से लाए गए नमूनों का विश्लेषण करना है और ऐसा करने वाला यह विश्व की अंतरिक्ष यात्राओं का पहला प्रयास होगा। अगर आगामी 23 अगस्त को चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ‘साफ्ट लैंडिंग’ सफलता पूर्वक संपन्न हो जाती है, जिसकी बहुत संभावना है, तो भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में नई क्रांति का सूत्रधार होगा। इसकी सफलता पर और जीवन विकास की अपेक्षाओं के अनुरूप डेटा मिल सके, तो यह भी आशा की जा सकती है कि सुदीर्घ भविष्य में भारत ‘चंदा मामा’ की गोद में बसने के लिए पृथ्वी वासियों के लिए निर्माण के नए द्वार खोल देगा।

चंद्रयान-3 मिशन के साथ-साथ भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिक ‘इंगीशियोसिटी’ के साथ मिलकर एक अलग मिशन, बीयारी (बायोग्राफिकल एक्सप्लोरशन लेबोरेटरी इंस्ट्रूूमेंटेशन) नामक प्रस्तावित मिशन, को भी विकसित कर रहे हैं, जो चंद्रमा पर जीवन की संभावनाओं की खोज करेगा। इस मिशन के माध्यम से वैज्ञानिकों को चंद्रमा के वातावरण का अध्ययन करने के लिए एक विस्तृत और उच्च गुणवत्ता वाली वस्तु संग्रह की उपलब्धता मिलेगी।

हालांकि चंद्रयान अभियानों द्वारा अभी तक कोई प्रामाणिक जीवन संकेत नहीं मिले हैं, लेकिन ये मिशन मानव जाति के लिए महत्त्वपूर्ण कदम हैं। चंद्रयान मिशन कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जैसे वायुमंडलीय इंजन की क्षमता, चंद्रमा का असहनीय तापमान, गुरुत्वाकर्षण के अभाव के कारण उड़ान भरने की चुनौतियां, आदि। इस तरह के मिशनों से हम नई तकनीकों की खोज करते हैं और चंद्रमा की सतह पर और सतह से नीचे की संरचना और वातावरण से संबंधित सूचना प्राप्त कर पाते हैं।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अन्य वैज्ञानिक संगठन ऐसे चंद्र मिशनों को निरंतर विकसित कर रहे हैं, जिससे हमें चंद्रमा की सतह पर पानी, वातावरण, और जीवन की संभावनाओं के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध होगी। ये मिशन हमें मानव जीवन के लिए स्थायी आवास की संभावनाएं और चंद्रमा के संपर्क में तथा उसकी खोज से और अधिक आगे बढ़ने के लिए साधनों के विकास के बारे में ज्ञान प्रदान करेंगे। चंद्रमा की खोज भारत के लिए अभिमुख होती जा रही है और इसके माध्यम से हम अंतरिक्ष खोज के नए आयामों के लिए तत्पर रहेंगे।

यह एक शाश्वत सत्य है कि भारत ने अपनी सभ्यता के उत्कर्ष कालखंड में ब्रह्मांड को एक खुली पुस्तक बनाकर मानवता को जो ज्ञान दिया था, उसका कोई सानी नहीं! ब्रह्मांड-भर का ज्ञान विज्ञान भारतीय सनातन सभ्यता की अनमोल धरोहर है। चंद्रमा और अंतरिक्ष के अन्य पहलुओं की गहरी खोज भारत के लिए सांस्कृतिक पुनर्जागरण-सी होगी। अंतरिक्ष को अब हमें अपना उद्देश्य ही नहीं, अपना विषय भी बना लेना चाहिए। इससे क्या पता एक दिन संभव हो कि हमारा ‘चंदा मामा’ दुनिया को एक नई दुनिया ही उपहार में दे दे!