पृथ्वी का 70 फीसद जल से घिरा है और धरती पर पाए जाने वाले जीव-जंतुओं के संसार में 90 फीसद समुद्री जीव हैं। रहस्य से भरे महासागरों के बारे में जानकारी बहुत ही कम है। बताया जाता है कि 95 फीसद समुद्र अब भी अबूझ पहेली बना हुआ है। समुद्र अपने गर्भ में दुर्लभ जीव-जंतुओं, बैक्टीरिया और वनस्पतियों का संसार समेटे हुए है।

समुद्र में छिपे रहस्यों को उजागर करने के लिए वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की गोवा स्थित प्रयोगशाला- राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (एनआइओ) ने हिंद महासागर में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों की जीनोम मैपिंग के लिए एक अभियान शुरू किया है, जो समुद्री रहस्यों की परतें खोलने में मददगार हो सकता है। हिंद महासागर जलवायु और आॅक्सीजन के विनयमन के महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इस अभियान के अंतर्गत हिंद महासागर के विभिन्न हिस्सों में आणविक स्तर पर समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र की आंतरिक कार्यप्रणाली को समझने की कोशिश की जाएगी। जीनोम के निष्कर्षों के साथ शोधकर्ता समुद्री सूक्ष्म जीवों पर जलवायु परिवर्तन, बढ़ते प्रदूषण और पोषक तत्वों की कमी के प्रभाव का आकलन करने का प्रयास करेंगे। इस दौरान हिंद महासागर के विभिन्न क्षेत्रों से लगभग 5,000 मीटर की गहराई से नमूने एकत्र किए जाएंगे।

विशाखापत्तनम बंदरगाह से 14 मार्च को शुरू हुए इस अभियान के अंतर्गत लगभग 10 हजार समुद्री मील की दूरी तय की जाएगी। इस दौरान 90 दिनों तक हिंद महासागर के रहस्यों को उजागर करने के लिए बड़ी मात्रा में नमूनों को इकट्ठा किया जाएगा। सीएसआइआर-एनआइओ के विज्ञानियों की टीम अपने समुद्री जहाज ‘सिंधु साधना’ पर सवार होकर हिंद महासागर के रहस्यों की पड़ताल करने निकली है। एनआइओ के 23 विज्ञानियों का दल इस अभियान पर गया है, जिसमें छह महिला विज्ञानी भी शामिल हैं।

सीएसआइआर-एनआइओ के निदेशक सुनील कुमार सिंह के मुताबिक, हिंद महासागर के पारिस्थितिकी तंत्र की गतिशीलता को समझने के लिए आधुनिक आणविक बायोमेडिकल तकनीकों, जीनोम सिक्वेंसिंग और बायोटेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाएगा। इस जीनोम मैपिंग के माध्यम से बदलती जलवायु दशाओं को ध्यान में रखते हुए महासागर में मौजूद सूक्ष्म जीवों की जैव-रासायनिक प्रतिक्रिया का अध्ययन भी किया जाएगा।

यह जीनोम सिक्वेंसिंग समुद्री जीवों के आरएनए और डीएनए में परिवर्तन और महासागरीय सूक्ष्मजीवों की मौजूदा स्थिति के लिए जिम्मेदार प्रभावी कारकों की पहचान करने में मददगार हो सकती है। इस अध्ययन में विज्ञानी समुद्र के विभिन्न हिस्सों में विशिष्ट खनिजों की प्रचुरता और कमी को समझने की कोशिश भी करेंगे, जिसका उपयोग महासागरीय पारिस्थितिकी प्रणालियों में सुधार से जुड़ी रणनीतियों में किया जा सकता है।

हिंद महासागर में पृथ्वी की पानी की सतह का लगभग 20 फीसद हिस्सा है और इसलिए यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा जल क्षेत्र है। यहां चल रही शोध परियोजना की लागत 25 करोड़ रुपए है और इसे पूरा करने में लगभग तीन साल लगेंगे। लगभग पांच किलोमीटर की औसत गहराई पर समुद्र के कई हिस्सों से शोधकर्ताओं के द्वारा नमूने एकत्र किए जाएंगे।

वैज्ञानिक समुद्र में पाए जाने वाले बैक्टीरिया, रोगाणुओं में इनका मानचित्रण करेंगे। इस अभियान में भारत के पूर्वी तट से हिंद महासागर में आॅस्ट्रेलिया, मॉरीशस में पोर्ट लुई से होते हुए पाकिस्तान की सीमा की तरफ से भारत के पश्चिमी तट तक के सूक्ष्मजीवों की जीनोम मैपिंग के लिए नमूने एकत्र किए जाएंगे। जीनोम और सूक्ष्म पोषक तत्वों की तलाश में पानी, तलछट, समुद्री पादप और विभिन्न जीवों के नमूने लिए जाएंगे।

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान ने हिंद महासागर में अपनी तरह की पहली जीनोम मैपिंग परियोजना शुरू करने की योजना बनाई है। वैज्ञानिक समुद्र में पाए जाने वाले बैक्टीरिया, रोगाणुओं में इनका मानचित्रण करेंगे। इस अभियान से कैंसर के उपचार तथा वाणिज्यिक जैव प्रोद्योगिकी क्रियाविधि में भारत के शोध कार्यक्रमों को मजबूती मिलेगी। जलवायु परिवर्तन और पोषक तत्वों की ‘प्रोटेक्टिव मैपिंग’ के लिए सामुद्रिक प्रतिक्रिया के अध्ययन में सहायता मिलेगी। अभियान में करीब 9,000 समुद्री मील तक की दूरी तय की जाएगी।