जयंतीलाल भंडारी
केंद्र सरकार ने हाल ही में एक लाख करोड़ रुपए की शोध, विकास और नवोन्मेष (आरडीआइ) योजना को मंजूरी दी। यह शोध और विकास में निवेश के लिए बड़े प्रोत्साहन के रूप में है। खास बात यह भी है कि इस योजना के तहत प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाला अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन पचास वर्ष के लिए ब्याज मुक्त ऋण अनुदान उपलब्ध कराएगा। यह कोष अनुसंधान एवं विकास के लिए वित्तीय मदद प्रदान करेगा और नवाचार के व्यावसायीकरण के लिए धन देगा। यह व्यवस्था वैश्विक भारतीय प्रतिभाओं को आकर्षित करने और उन्हें भारत में प्रयोगशालाएं स्थापित करने की अनुमति देने की योजनागत सफलता के लिए महत्त्वपूर्ण होगी।
भारत में सरकार और निजी क्षेत्र का शोध एवं विकास में निवेश लंबे समय से चिंता का विषय रहा है। अभी भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में शोध और विकास की हिस्सेदारी करीब 0.70 फीसद है। यह हिस्सेदारी अमेरिका, जापान और चीन जैसे देशों की दो से पांच फीसद हिस्सेदारी के मुकाबले बहुत कम है। साथ ही देश के तेज विकास के लिए भी अपर्याप्त है। इस योजना से शोध के रणनीतिक और उभरते क्षेत्रों को आवश्यक जोखिम पूंजी प्राप्त होगी। योजना का दायरा ऊर्जा सुरक्षा से लेकर क्वांटम कंप्यूटिंग, रोबोटिक्स, जैव प्रौद्योगिकी और कृत्रिम मेधा (एआइ) तक होगा। पिछले साल जुलाई के बजट में इस योजना की घोषणा की गई थी।
अब आरडीआइ में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने के वास्ते कम या शून्य ब्याज दर पर लंबी अवधि के लिए धनराशि प्राप्त करने की सुविधा मुहैया होगी। देश में शोध एवं अनुसंधान पर कंपनियों का अंशदान अमेरिका, जापान, चीन और यूरोपीय यूनियन की तुलना में बहुत कम है। ऐसे में निजी क्षेत्र में न केवल शोध, बल्कि विकास एवं नवाचार चरणों को भी आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, जो वैज्ञानिक संभावनाओं को बाजार के लिए तैयार नए समाधानों में बदल दें।
उल्लेखनीय है कि विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्लूआइपीओ) द्वारा प्रकाशित ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (जीआइआइ) 2024 की रैंकिंग में 133 अर्थव्यवस्थाओं में भारत ने 39वां स्थान हासिल किया है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि जो भारत वर्ष 2015 में 81वें स्थान पर था, अब वह 39वें स्थान पर पहुंच गया है। इससे भारत की प्रगति दुनियाभर में रेखांकित हो रही है। जीआइआइ 2024 के तहत भारत निम्न-मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में पहले स्थान पर है। भारत मध्य और दक्षिणी एशिया क्षेत्र की दस अर्थव्यवस्थाओं में भी पहले स्थान पर है, जबकि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (एसएंडटी) समूह में चौथे स्थान पर है।
भारत के प्रमुख शहर मुंबई, दिल्ली, बंगलुरु और चेन्नई दुनिया के शीर्ष सौ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समूह में सूचीबद्ध है। भारत अमूर्त संपत्ति तीव्रता में वैश्विक स्तर पर सातवें स्थान पर है। यदि हम बौद्धिक संपदा, शोध एवं नवाचार से जुड़े अन्य वैश्विक संगठनों की रपट को भी देखें, तो पाते हैं कि भारत इस क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है। अमेरिकी उद्योग मंडल ‘यूएस चैंबर्स आफ कामर्स’ के ‘ग्लोबल इनोवेशन पालिसी सेंटर’ द्वारा जारी वैश्विक बौद्धिक संपदा (आइपी) सूचकांक 2024 में भारत दुनिया की 55 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में 42वें स्थान पर है।
निस्संदेह शोध एवं नवाचार तथा बौद्धिक संपदा की दुनिया में भारत की मजबूत स्थिति यह दर्शा रही है कि वह नवाचार का केंद्र बनता जा रहा है। भारत में शोध एवं नवाचार को बढ़ाने में डिजिटल ढांचे और सुविधाओं की भी अहम भूमिका है। देश सूचना प्रौद्योगिकी सेवा निर्यात में लगातार आगे बढ़ रहा है। विज्ञान और इंजीनियरिंग स्नाातक तैयार करने में भी भारत दुनिया में सबसे आगे है। यहां उद्योग-कारोबार तेजी से समय के साथ आधुनिक हो रहे हैं। कृषि से संबंधित चुनौतियों के समाधान के लिए भारत ने जिस तरह विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्राथमिकता के आधार पर उपयोग किया, उससे वह कृषि विकास की डगर पर तेजी से आगे बढ़ा है।
शोध एवं नवाचार के मद्देनजर निश्चित रूप से भारत ने कारोबारी विशेषज्ञता, रचनात्मकता और संचालन से जुड़ी स्थिरता जैसे विविध क्षेत्रों में अच्छे सुधार किए हैं। साथ ही देश में घरेलू कारोबार में सरलता, विदेशी निवेश जैसे मानकों में भी बड़ा सुधार दिखाई दिया है। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि बौद्धिक संपदा और शोध एवं नवाचार के बहुआयामी लाभ होते हैं। इनके आधार पर किसी देश में विभिन्न देशों के उद्यमी और कारोबारी अपने उद्योग-धंधे शुरू करने संबंधी निर्णय लेते हैं। विभिन्न देशों की सरकारें वैश्विक नवोन्मेष सूचकांक को ध्यान में रख कर अपने वैश्विक उद्योग-कारोबार के रिश्तों के लिए नीति बनाने की डगर पर बढ़ती हैं। भारत में कृत्रिम मेधा और ‘डेटा एनालिटिक्स’ जैसे क्षेत्रों में शोध एवं विकास और नवउद्यम माहौल के चलते अमेरिका, यूरोप और एशियाई देशों की बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने केंद्र स्थापित कर रही हैं।
भारत में ख्याति प्राप्त वैश्विक वित्त और वाणिज्य कंपनियां अपने कदम तेजी से आगे बढ़ा रही हैं। पूरी दुनिया में ‘मेड इन इंडिया’ और ‘ब्रांड इंडिया’ की चमकीली पहचान बन रही है। इससे भारत में प्रतिस्पर्धा का स्तर बढ़ रहा है। रोजगार के सुनहरे मौके सृजित हो रहे हैं। इतना ही नहीं, शोध एवं नवाचार बढ़ने से देश में लगातार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) में वृद्धि हो रही है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार जून 2025 में 697 अरब डालर से अधिक की ऊंचाई पर पहुंच गया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि सरकार बौद्धिक संपदा, शोध एवं नवाचार की अहमियत को समझते हुए इस क्षेत्र को प्राथमिकता देती दिखाई दे रही है।
यद्यपि भारत के विकास में बौद्धिक संपदा, शोध एवं नवाचार से जुड़े तीन आधारों की बढ़ती भूमिका दिखाई दे रही है, लेकिन इन आधारों से विकास को ऊंचाई देने के लिए इस क्षेत्र में सरकार और निजी क्षेत्र का परिव्यय बढ़ाना होगा। इस समय भारत में शोध और विकास पर जिस तरह जीडीपी का करीब 0.70 फीसद ही व्यय हो रहा है, उसे रणनीति पूर्वक बढ़ाना होगा। ऐसे में हमें ध्यान देना होगा कि कोई छह-सात दशक पहले अमेरिका ने अनुसंधान पर अधिक खर्च कर सूचना प्रौद्योगिकी, संचार, दवाओं, अंतरिक्ष अन्वेषण, ऊर्जा और अन्य तमाम क्षेत्रों में तेजी से आगे बढ़ कर दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनने का अध्याय लिखा है।
उम्मीद करें कि तेज विकास और आम आदमी के आर्थिक-सामाजिक कल्याण के मद्देनजर दुनिया के विभिन्न विकसित देशों की तरह भारत में भी बौद्धिक समझ, शोध एवं नवाचार पर अधिक धनराशि व्यय करने की डगर पर आगे बढ़ा जाएगा। इससे जहां ‘ब्रांड इंडिया’ और ‘मेड इन इंडिया’ की वैश्विक स्वीकार्यता सुनिश्चित की जा सकेगी, वहीं स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, कारोबार, ऊर्जा, शिक्षा, रक्षा, संचार, अंतरिक्ष सहित विभिन्न क्षेत्रों में देश तेजी से आगे बढ़ते हुए दिखाई दे सकेगा। उम्मीद है कि देश को वर्ष 2027 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था, वर्ष 2047 तक विकसित देश तथा दुनिया की नई आर्थिक महाशक्ति बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के मद्देनजर सरकार और उद्योग-कारोबार जगत बौद्धिक संपदा, शोध और नवाचार की भूमिका को और अधिक प्रभावी बनाएंगे।