संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की बुधवार को जारी मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) में भारत का स्थान 131वां है। ऊपर के पांच स्थानों में क्रमश: नार्वे, आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग और आइसलैंड को जगह मिली है। नार्वे पिछले साल भी शीर्ष पर था। यह रिपोर्ट सभी देशों में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के स्तर का आकलन कर तैयार की जाती है। यह मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) रिपोर्ट का 30वां संस्करण था और इसे वर्चुअल मंच पर लांच किया गया। हालांकि इस साल सूचकांक प्राकृतिक संसाधनों पर देशों की निर्भरता और उससे संबन्धित विकास पर केंद्रित है, लेकिन रिपोर्ट में माप का एक नया सूचकांक भी पेश किया गया है- ग्रह का दबाव समायोजित मानव विकास सूचकांक (Planetary Pressures-Adjusted Human Development Index (PHDI))।
रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि जैसे-जैसे लोग और ग्रह एक नए भूवैज्ञानिक युग, एंथ्रोपोसीन यानि मानव युग में प्रवेश कर रहे हैं, सभी देशों को प्रगति के अपने मार्गों को नया स्वरूप देना होगा। यह पूरी तरह से मनुष्यों द्वारा ग्रह पर बनाये दबावों की जवाबदेही तय करके और बदलाव की राह में आने वाले शक्ति और अवसर के असंतुलन को नष्ट करके किया जा सकता है। कोविड-19 महामारी दुनिया के सामने नवीनतम संकट है, लेकिन अगर मानव प्रकृति पर अपनी पकड़ नहीं छोड़ता, तो शायद यह अंतिम संकट न हो। समुद्र के स्तर में वृद्धि से ख़तरे में आने वाले अधिकांश लोग विकासशील देशों और विशेष रूप से एशिया और प्रशांत में रहते हैं। पर्यावरणीय झटके पहले से ही दुनियाभर में जबरन विस्थापन का एक मुख्य कारण हैं, ऐसे में अनुमान यह है कि 2050 तक दुनिया भर में 1 अरब से अधिक लोग विस्थापन का सामना कर सकते हैं।
इस अवसर पर भारत में यूएनडीपी की रेज़िडेन्ट रिप्रेसेन्टेटिव शोको नोडा ने कहा, “यह रिपोर्ट एकदम सही समय पर आई है। पिछले सप्ताह ही जलवायु महत्वाकांक्षा सम्मेलन आयोजित हुआ था, जिसमें शामिल देशों ने अपने कार्बन-फुटप्रिन्ट घटाने के लिये प्रतिबद्धताएं ज़ाहिर की थीं। अगर हम साथ मिलकर काम करें तो पृथ्वी को नष्ट किए बिना प्रत्येक राष्ट्र के लिये मानव विकास में वृद्धि सम्भव है, यानि लम्बी आयु, अधिक शिक्षा और उच्च जीवन स्तर..।”
प्रायोगिक तौर पर शुरू किया गया यह वैश्विक सूचकांक मानव प्रगति को मापने का एक नया तरीक़ा है, जिसमें ग़रीबी और असमानता से निपटने की कोशिशों के दौरान, यह सुनिश्चित किया गया है कि इससे पृथ्वी और पर्यावरण पर दबाव न पड़े। इसके लिये राष्ट्रों के स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर का आकलन करने वाले एचडीआई को समायोजित करके दो और तत्व शामिल किए गए हैं: देश का कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन व मैटीरियल फुटप्रिन्ट। यह सूचकांक दर्शाता है कि अगर मानव प्रगति में लोगों के कल्याण के साथ-साथ पृथ्वी के संरक्षण का भी ध्यान रखा जाए तो वैश्विक विकास परिदृश्य कितना बदल सकता है।
पिछले साल की तरह इस बार भी इस सूची में नॉर्वे सबसे ऊपर रहा और उसके बाद आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग और आइसलैंड को जगह मिली। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2020 में 189 देशों में मानव विकास सूचकांक (HDI) की सूची में भारत
131वें स्थान पर रहा, वहीं भूटान 129वें स्थान पर, बांग्लादेश 133वें स्थान पर, नेपाल 142वें स्थान पर और पाकिस्तान 154वें स्थान पर रहा। PHDI को शामिल करने के बाद, 50 से अधिक देश ‘उच्च मानव विकास समूह’ से बाहर हो गए, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे जीवाश्म ईंधन और भौतिक पदचिह्न पर अत्यधिक निर्भर हैं।
भारत सरकार में नीति आयोग के सदस्य, रमेश चंद ने कहा, “इस वर्ष की रिपोर्ट एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा उजागर कर रही है, जो लम्बे समय से चिन्ता का विषय है। PHDI मानव विकास की व्याख्या की पोल खोल रही है कि आख़िर हम अपनी भावी पीढ़ी को कितना वंचित कर रहे हैं। रिपोर्ट में ऐसे समाधान प्रस्तुत किए गए हैं, जिनसे उत्सर्जन में 37% की कमी आएगी और इससे हमें जलवायु लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी।”
समाधान तंत्र
रिपोर्ट के मुताबिक सार्वजनिक कार्रवाई से इन असमानताओं का निदान सम्भव है। उदाहरण के लिये, इसमें प्रगतिशील कराधान और निवारक निवेश और बीमा माध्यम से तटीय समुदायों की रक्षा करना शामिल है। यह एक ऐसा क़दम है, जो दुनिया में समुद्र तटों पर रहने वाले 84 करोड़ लोगों के जीवन की रक्षा कर सकता है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिये ठोस प्रयासों की ज़रूरत है, ताकि यह कार्रवाई मानव को पृथ्वी के ख़िलाफ़ न खड़ा कर दे।
भारत में संयुक्त राष्ट्र की रेज़िडेन्ट कोऑर्डिनेटर, रेनाटा डेज़ालिएन ने कहा, “एचडीआर न केवल हमारी प्रगति दर्शाता है, बल्कि उन क्षेत्रों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है, जिन पर अधिक ध्यान देने और जिन्हें अधिक संसाधन व हिमायत की ज़रूरत है। जलवायु परिवर्तन स्पष्ट रूप से हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बनकर उभर रहा है, और इस वर्ष की रिपोर्ट इसी पर केंद्रित है कि मानव विकास जलवायु संकट से कैसे जुड़ा है। यह संयोजन हमें अपनी जीवन शैली, व्यवहार और निर्णयों पर पुनर्विचार करने के लिये मजबूर करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह युग हमें गर्त में न ढकेल दे। यह दुनिया भर के देशों के उदाहरण प्रस्तुत करता है कि हम में से प्रत्येक उनसे कैसे प्रेरणा ले सकते हैं।”
रिपोर्ट के आधार पर, यूएनडीपी इंडिया ने विकास के जटिल मुद्दे के प्रबंधन के लिए प्रकृति, प्रोत्साहन और सामाजिक मानदण्डों के तीन स्तंभों के आधार पर क्षेत्र के लिये समाधान तंत्र प्रस्तावित किया है। इनमें से कुछ हैं – तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव संरक्षण, सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन और एकल उपयोग प्लास्टिक का प्रयोग घटाना। रिपोर्ट में राष्ट्रीय सौर मिशन और भारत द्वारा अपनाए गए महत्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों का भी उल्लेख है। रिपोर्ट के मुताबिक, मानव विकास के अगले मोर्चे में, सामाजिक विकास, मूल्यों और वित्तीय प्रोत्साहनों में आवश्यक बदलाव लाते हुए, प्रकृति के ख़िलाफ़ न जाकर, प्रकृति के साथ काम करने की आवश्यकता होगी।