परिवहन क्षेत्र में तकनीकी विकास ने सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग कर पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों की ओर ध्यान आकर्षित किया है। सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों का विकास न केवल टिकाऊ परिवहन के लिए, बल्कि बढ़ते वाहन प्रदूषण और ईंधन की खपत के विकल्प के रूप में भी महत्त्वपूर्ण है। सौर ऊर्जा से चलने वाली भारत की पहली इलेक्ट्रिक कार जारी कर दी गई है। यह भारतीय वाहन उद्योग में क्रांति लाने वाली कार मानी जा रही है, क्योंकि यह पर्यावरण-अनुकूल, किफायती और टिकाऊ परिवहन का उदाहरण है। इसके सोलर पैनल इसे अन्य इलेक्ट्रिक वाहनों से अलग बनाते हैं, क्योंकि यह प्रतिदिन दस किलोमीटर तक निशुल्क चलती है।
कहा जा रहा है कि यह कार न केवल भारत में इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र को नई दिशा देगी, बल्कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन की बढ़ती मांग भी पूरा करेगी। इसकी प्रमुख विशेषताओं में इसका डिजाइन, 250 किलोमीटर तक चलने की क्षमता और कम कीमत शामिल हैं। इसके नवाचार और टिकाऊ तकनीक की काफी सराहना की गई। यह कार तीन वर्गों में उपलब्ध होगी। लोगों को यह वर्ष 2026 में मिल सकती है। यह कार चर्चा में इसलिए है, क्योंकि भारत में सौर ऊर्जा के उपयोग को परिवहन क्षेत्र में प्रभावी ढंग से लागू करने का पहला उदाहरण है। बढ़ते वाहन प्रदूषण और ईंधन की बढ़ती कीमतों के बीच यह कार एक हरित, स्वच्छ और किफायती विकल्प प्रस्तुत करती है। इसे सड़कों पर लाना सौर ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा आधारित परिवहन को बढ़ावा देने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है। परिवहन क्षेत्र में यह भारत का हरित भविष्य है।
प्रदूषण भारत समेत पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय
वाहनों से होने वाला प्रदूषण भारत समेत पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। पेट्रोल और डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहन कार्बन डाइआक्साइड और अन्य हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करते हैं, जिससे वैश्विक ताप, वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ती हैं। भारत में शहरीकरण और उद्योगीकरण के कारण वाहनों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। वायु गुणवत्ता सूचकांक के गिरते स्तर और स्वास्थ्य पर पड़ते प्रतिकूल प्रभावों ने स्वच्छ, हरित और टिकाऊ परिवहन प्रणाली की आवश्यकता को पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक बना दिया है। सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहन (जिनमें ऊर्जा के लिए सौर पैनल का उपयोग होता है) इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। सौर ऊर्जा एक अक्षय स्रोत है, जो न केवल पर्यावरण के अनुकूल, बल्कि दीर्घकालिक दृष्टि से किफायती भी है। इस प्रकार के वाहन परिवहन में नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देते और जीवाश्म र्इंधन पर निर्भरता को कम करते हैं।
सौर ऊर्जा वाहनों की अवधारणा बीसवीं सदी में विकसित हुई। वर्ष 1955 में पहली बार सौर ऊर्जा से चलने वाला वाहन ‘सनमोबाइल’ प्रदर्शित किया गया। यह केवल एक प्रतिरूप था, लेकिन इसने सौर ऊर्जा तकनीक को परिवहन क्षेत्र में लागू करने की संभावना को साबित किया। इसके बाद सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों के डिजाइन और निर्माण में सुधार किए गए। वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों के विकास में जापान, जर्मनी और नीदरलैंड जैसे देशों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन देशों ने न केवल सौर ऊर्जा वाहनों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया है, बल्कि सौर ऊर्जा आधारित परिवहन को प्रोत्साहन देने के लिए नीतियां भी बनाई हैं।
सौर ऊर्जा में नीदरलैंड एक प्रेरणादायक उदाहरण
सौर ऊर्जा परिवहन के क्षेत्र में नीदरलैंड एक प्रेरणादायक उदाहरण है। यहां सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों के साथ-साथ सौर ऊर्जा पर आधारित सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया गया है। नीदरलैंड में ‘सोलर रोड’ जैसी परियोजनाएं (जो सड़कों पर सौर पैनल लगा कर ऊर्जा पैदा करती हैं) एक अनूठी पहल है। इसी प्रकार जापान और जर्मनी जैसे देश सौर ऊर्जा आधारित वाहनों के विकास में अग्रणी हैं। जापान ने सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों के लिए उन्नत बैटरी तकनीक विकसित की है, जबकि जर्मनी ने सौर ऊर्जा से चलने वाली इलेक्ट्रिक बसों और ट्रेनों पर ध्यान केंद्रित किया है।
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सौर ऊर्जा केवल परिवहन के लिए नहीं, बल्कि हरित विकास के लिए भी मजबूत आधार है। यह ऊर्जा स्रोत पर्यावरण संरक्षण, ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मदद करता है। हरित विकास का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाना है। सौर ऊर्जा इस लक्ष्य को हासिल करने में सहायक है, क्योंकि यह ऊर्जा स्रोत न केवल प्रदूषण मुक्त है, बल्कि ऊर्जा उत्पादन की लागत को भी कम करता है। भारत में वाहन प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, वाहनों से निकलने वाला धुआं शहरी इलाकों में वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण है। दिल्ली, मुंबई और बंगलुरु जैसे महानगरों में बढ़ता वाहन प्रदूषण स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रहा है। सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहन इस समस्या का प्रभावी समाधान प्रस्तुत करते हैं। इन वाहनों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये शून्य उत्सर्जन वाहन होते हैं। सौर ऊर्जा के उपयोग से न केवल जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है, बल्कि वायु प्रदूषण और वैश्विक ताप के प्रभावों को भी कम किया जा सकता है।
भारत में सौर ऊर्जा आधारित परिवहन की संभावनाएं अत्यधिक उज्ज्वल
सौर ऊर्जा वाहनों के विकास में सबसे बड़ी बाधा इन वाहनों की उच्च प्रारंभिक लागत है। सौर ऊर्जा वाहनों के निर्माण में उपयोग होने वाली उन्नत तकनीक और सामग्री के कारण इनकी कीमत पारंपरिक वाहनों की तुलना में अधिक होती है। इसके अलावा सौर ऊर्जा का भंडारण एक अन्य प्रमुख चुनौती है। मौजूदा बैटरी तकनीक सीमित ऊर्जा भंडारण की क्षमता प्रदान करती है, जो लंबी दूरी की यात्रा के लिए अनुपयुक्त हो सकती है। साथ ही चार्जिंग केंद्रों की कमी भी इन वाहनों की स्वीकार्यता में एक बड़ी बाधा है, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में। इन चुनौतियों से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन और सरकारी सबसिडी के माध्यम से सौर ऊर्जा वाहनों की लागत को कम किया जा सकता है, जिससे यह अधिक किफायती बन सके। इसके साथ ही सरकार और निजी क्षेत्र के सहयोग से ‘चार्जिंग नेटवर्क’ का विस्तार किया जा रहा है, जिससे इन वाहनों का उपयोग अधिक सुविधाजनक हो सके।
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भारत में सौर ऊर्जा आधारित परिवहन की संभावनाएं अत्यधिक उज्ज्वल हैं। देश में बढ़ती ऊर्जा मांग, पर्यावरणीय चिंताएं और जीवाश्म र्इंधनों पर निर्भरता कम करने की आवश्यकता ने सौर ऊर्जा वाहनों के विकास को गति दी है। भारतीय बाजार में बढ़ती जागरूकता और उन्नत तकनीक की उपलब्धता भी इस क्षेत्र को बल प्रदान कर रही है। सस्ती और प्रभावी बैटरी तकनीकों का विकास सौर ऊर्जा वाहनों को और अधिक व्यावहारिक बना रहा है। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक और निजी क्षेत्र द्वारा चार्जिंग केंद्रों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने से इन वाहनों की स्वीकार्यता बढ़ रही है। सौर कारें इस बात का प्रमाण हैं कि तकनीकी नवाचार और पर्यावरण संरक्षण को एक साथ कैसे जोड़ा जा सकता है। भारत में जहां बढ़ते वाहन प्रदूषण और ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकता है, सौर ऊर्जा वाहनों का विकास और उपयोग हरित विकास के लिए आवश्यक और महत्त्वपूर्ण कदम है।