प्रधानमंत्री ने देश को आत्मनिर्भर होने का मंत्र दिया है। यह जरूरी भी है, क्योंकि एक आत्मनिर्भर देश में ही युवाओं का भविष्य संवरता है। यह भी कहा जा रहा है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था की प्रकृति को बदलेगा और वह आयात आधारित अर्थव्यवस्था से बदल कर निर्यात आधारित हो जाएगा। वहीं हमारी सेना आत्मनिर्भर हो रही है और सैन्य उपकरण उत्पादन के मामले में इतनी तरक्की कर ली है कि अब हम इसके आयातक नहीं, बल्कि तीसरी दुनिया में उसके बड़े निर्यातक बन रहे हैं। दूसरी ओर हम अपने अंतरिक्ष अभियान पर गौरवान्वित हैं।
चंद्रयान-3 द्वारा चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के साथ अब बड़े उत्साह के साथ अंतरिक्ष यात्रा के व्यवसायीकरण की कोशिश हो रही है। यह भी कहा गया है कि हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति से बहुत जल्दी ही तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने जा रहे हैं और जब देश आजादी का शतकीय महोत्सव मनाएगा, तो हमारा देश पूरी तरह विकसित देश होगा। लेकिन देश में विसंगतियों की भी कमी नहीं।
कहां तो हम सौ साल के अंदर दुनिया के सभी समृद्ध देशों को पछाड़ देना चाहते हैं और कहां हाल यह है कि पिछली आर्थिक तिमाही से हमारी आर्थिक विकास दर छह फीसद तक गिर गई है। इसके साथ ही शेयर बाजार की भी कोई अच्छी स्थिति नहीं। विदेशी निवेशकों ने अपनी बहुत-सी पूंजी निकाल ली है। अमेरिका की फेडरल दरें उन्हें ज्यादा प्रभावित कर रही हैं। ऐसी हालत में हम तरक्की की तलाश में कूटनीति पर भरोसा करते हैं। प्रधानमंत्री पहले फ्रांस के एआइ सम्मेलन में जाते हैं। यूरोप के साथ अपने व्यापारिक और निवेश संबंधों को पुष्ट करने के लिए दौरे पर निकलते हैं। इसके बाद इस बात की प्रतीक्षा की जाती है कि अमेरिका में ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री के बीच क्या बातचीत होती है। बात हो गई और संयुक्त विज्ञप्ति भी जारी हो गई। अमेरिका ने प्रधानमंत्री को एफ-35 युद्धक विमान देने का वादा भी कर दिया। मगर भारतवासियों को जिस बात का इंतजार था वह पूरी नहीं हो सकी, क्योंकि ट्रंप ने प्रधानमंत्री से मिलने के पहले ही शुल्क बढ़ाने वाली नीति पर हस्ताक्षर कर दिए थे।
एलन मस्क ने 182 करोड़ रुपए की अमेरिकी सहायता देने से रोका
भारत अमेरिकी उत्पादों पर 9.5 फीसद शुल्क लगाता है। जबकि अमेरिका भारतीय उत्पादों पर तीन फीसद शुल्क रखता है। इसके साथ ही अमेरिका ने इस्पात और एल्युमीनियम पर दरें बढ़ा दीं और जैसे को तैसा नीति अपनाने की घोषणा की। इस मामले में ट्रंप का रुख नरम नहीं हुआ। अब एलन मस्क ने 182 करोड़ रुपए की अमेरिकी सहायता रोक दी है। इसके साथ बांग्लादेश और नेपाल समेत कई देशों को दी जा रही राशि में भी कटौती की गई है। अगर ट्रंप भारत के लिए अपनी औसत शुल्क नीति लागू करते हैं, तो भारत में अमेरिकी वस्तुओं का आयात 6.5 फीसद महंगा हो जाएगा। इसके साथ ही अवैध प्रवासी निष्कासन का मुद्दा हल नहीं हुआ। इसको लेकर भारत चिंतित था, अब इसका यही कहना है कि हम केवल भारतीय मूल के अवैध प्रवासियों को वापस स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। यह वही नीति है, जिसके बारे में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने भी कहा था कि हम अपने निष्कासित नागरिकों को वापस लेकर अपनी अर्थव्यवस्था में समेट लेंगे। सवाल तो उनकी वापसी से अधिक उनको गरिमा से वापस भेजने का था। लेकिन यह पूरा नहीं हुआ।
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अमेरिका से अभी तक जितने निष्कासित युवा वापस आए हैं, वे हथकड़ियों और बेड़ियों में आए। वे टूटे सपनों का दर्द लेकर आए। चर्चा यह भी है कि इंगलैंड में भी अवैध रूप से जा रहे भारतीयों के विरुद्ध अभियान सख्त किया जाएगा। अगर वहां से भी भारतीय निष्कासित होते हैं, तो हमें अपनी अर्थव्यवस्था को और मजबूत करना पड़ेगा ताकि युवा पीढ़ी को भारत में ही काम मिल जाए। उसे काम के लिए एजंटों द्वारा सुझाए गए ‘डंकी रूट’ को अपना कर अपनी जिंदगी को खराब न करना पड़े। इसलिए प्रधानमंत्री को कूटनीति से अधिक अपनी उद्यम नीति पर ज्यादा भरोसा करना पड़ेगा। अभी सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि अनुकंपा नीति युवा पीढ़ी को निठल्ला बना रही है। बेहतर होगा कि युवाओं को देश में ही रोजगार की यथायोग्य गारंटी मिले, तो वे न तो गलत तरीके से विदेश जाएंगे और न ही खाली बैठे रहेंगे।
भारतीय मीडिया ने प्रधानमंत्री की यूरोप और अमेरिका यात्रा को बताया सफल
ट्रंप और प्रधानमंत्री के बीच चार साल बाद मुलाकात हुई, जिससे हमारे साथ शत्रु भावना रखने वाले देशों को ईर्ष्या हुई। पहली बार दोनों ने पाकिस्तान का नाम लेकर आतंकवाद को जड़ से नष्ट करने की बात कही। पाकिस्तान मूल के कनाडाई नागरिक तहव्वुर राणा जैसे आतंकी को भारत को सौंपने का फैसला भी हो गया। अगर वास्तव में अमेरिका और हिंदुस्तान मिल कर पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों को नष्ट कर देते हैं, तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। इससे भारत में व्यवस्था और शांति को बढ़ावा मिलेगा। निवेश और उत्पादन की उत्साहजनक परिस्थितियां पैदा हो जाएंगी। इसके अलावा अंतरिक्ष तकनीक और नवाचार पर, एलन मस्क से लेकर डोनाल्ड ट्रंप तक से बातचीत की गई। तकनीक पर भी बड़े करार हुए। परमाणु रिएक्टरों और भारत-अमेरिका रक्षा तंत्र पर भी विचार हुआ।
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भारतीय मीडिया ने प्रधानमंत्री की यूरोप और अमेरिका यात्रा को बहुत सफल बताया है। आतंकवाद के विरुद्ध पाकिस्तान का नाम लेकर अमेरिका और भारत का साझा रुख बहुत बड़ी उपलब्धि है, लेकिन यह कितना परिणाम देता है, अभी भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है। क्योंकि कूटनीति की चाल अप्रत्याशित होती है। अब पाकिस्तान के सहमे हुए हुक्मरान भी रूस के साथ-साथ अमेरिका की शरण में जाना चाहेंगे। मगर जो भी हो, कुछ बातें भारत को आत्मनिर्भर रहने के लिए प्रेरित करती हैं और यह कहती हैं कि विदेशी कंधों के अधिक सहारे नहीं लेने चाहिए। कोई दो मत नहीं कि सबके साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखते हुए अपने कदमों पर खड़ा होना चाहिए। अमेरिका अपना हित देख रहा है और भारत अपना हित। इसीलिए अमेरिका ने भारत को शुल्क नीति में कोई बड़ी रियायत देना अभी तक स्वीकार नहीं किया।
जहां तक जलवायु संकट में अमेरिका को आर्थिक योगदान के लिए मनाने का सवाल है, उसके बारे में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है। प्रधानमंत्री यूरोप और अमेरिका के साथ मैत्री को फिर से सहेज कर लौट तो आए हैं, लेकिन एक संदेश भी पूरे देश के भाल पर लिखा है कि भारत को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ेगी। इसके लिए न केवल कृत्रिम मेधा और नवाचार को बढ़ाना होगा, बल्कि उसके साथ ही हमें लघु और कुटीर उद्योगों को भी नया जीवनदान देना चाहिए। देश के नौजवानों के लिए देश में ही उत्पादन और निवेश पर एक नई नीति तैयार करनी होगी, जिससे युवा शक्ति को गरिमा से जीने का देश में ही अवसर मिल सके और उनका भविष्य संवर सके।
