India-China border face-off: भारत-चीन सीमा विवाद के बीच सोमवार रात को पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं के बीच तीखी झड़प हो गई। इसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए। शहीदों में कर्नल संतोष बाबू भी एक थे, जिन्हें तीन महीने पहले हैदराबाद में पोस्टिंग का आदेश मिला था। हालांकि पहले लॉकडाउन और बाद में दोनों देशों के बीच तनाव के चलते वो वहां से आ नहीं सके। मंगलवार (16 जून, 2020) को जैसे ही उनके शहीद होने की खबर आई, तेलंगाना के सूर्यापेट में रह रहे उनके परिजनों ने बताया कि हम पत्नी और बेटे के साथ कभी भी उसके यहां आने की उम्मीद कर रहे थे, चूंकि सरकार ने 15 दिन पहले लॉकडाउन हटा लिया था। शहीद कर्नल अपने परिवार में इकलौते थे और उनका एक बेटा व बेटी हैं।

शहीद कर्नल संतोष के पिता बी उपेंदर कहते हैं, ‘संतोषी और बच्चे दिल्ली से हैदराबाद शिफ्ट होने के लिए पैकिंग कर रहे थे। बच्चों ने बताया कि वो बहुत उत्साहित थे क्योंकि जल्द ही हमारे पास होंगे। हालांकि हमें सीमा पर तनाव के बारे में भी जानकारी थी मगर कभी नहीं सोचा था कि ऐसा हो जाएगा।’ कमांडिंग ऑफिसर (16 बिहार रेजीमेंट) संतोष पिछले डेढ़ साल से लद्दाख में तैनात थे। उनकी मां बी मिल्लिका कहती हैं, ‘वो हमेशा से सेना ज्वाइन करना चाहता था। उसने स्कूल में रहते हुए आर्मी में जाने का मन बना लिया था।’

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आर्मी ज्वाइन करने से पहले उन्होंने विशाखापट्टनम जिले के कोरुकोंडा में सैनिक स्कूल से साल 1993 से 2000 तक पढ़ाई की। इधर मंगलवार को जैसे ही पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सैनिकों की झड़प में कर्नल संतोष के शहीद होने की खबर सामने आई, सूर्यापेट में उनके घर में सैकड़ों लोग इकट्ठा हो गए। पिता उपेंदर कहते हैं कि संतोष वास्तव में एक आदर्श पुत्र था। जब वो छुट्टी पर घर आता तो ज्यादा समय हमारे साथ ही बिताता था।

बेटे की शहादत पर संतोष के माता-पिता कहते हैं कि उन्हें गर्व है कि बेटे ने राष्ट्र की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया। पिता उपेंदर ने बताया, ‘सेना के अधिकारियों ने हमें फोन कर बताय कि उन्होंने देश की रक्षा में सर्वोच्च बलिदान दिया।’

उधर बेटे के गम में दहाड़ मारकर रो रहीं शहीद की मां मिल्लिका कहती हैं, ‘मुझे अपने बेटे पर गर्व हैं कि उसने देश के लिए अपना बलिदान दिया। मगर एक मां के रूप में मैं तबाह हो गई। वो एक ऐसा शख्स था जो किसी और को बचाने के लिए अपनी जान खतरे में डालने से पहले सोचता भी नहीं था। वो बचपन से ही ऐसा था। अब वो अपनी तेज आवाज में मुझे अम्मा कहकर नहीं पुकारेगा।’