लद्दाख में LAC पर भारत ने खूनी झड़प के बाद भले ही चीनियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया हो, पर 1962 की जंग के दौरान हालात कुछ और थे। भारतीय सेना तब युद्ध के लिए न तो पूरी तैयार थी और न ही फौजियों के पास दुश्मन के बराबरी वाले साझो-सामान थे। इतिहास गवाह है कि देश के जवानों के पास तब जूते, गर्म कपड़े और आधुनिक हथियार भी नहीं थे।
पूर्व ब्रिगेडियर जेपी डाल्वी (Brigadier John Parashuram Dalvi) की किताब ‘हिमालयन ब्लंडर’ में इस बात का जिक्र मिलता है। 21 साल की फौज में शामिल हुए डाल्वी ने इसकी भूमिका तब लिखी थी, जब वह सात महीने तक के लिए चीनी कैद में युद्धबंदी के तौर पर रहे थे। यह किताब साल 1969 में प्रकाशित हुई थी। किताब में लेखक ने 1962 की जंग को राष्ट्रीय विफलता बताया। उन्होंने इसके लिए न सिर्फ सरकार बल्कि, विपक्ष, जनता, मीडिया और सरकारी कर्मचारी तक को दोषी ठहराया।
डाल्वी ने पुस्तक में उस युद्ध के लिए तीन लोगों प्रमुखतः जिम्मेदार माना। पहले- तत्कलानी पीएम नेहरू। दूसरे तब के रक्षा मंत्री। और, तीसरे- लेफ्टिनेंट जनरल बृज मौहन कौल। बताया जाता है कि तब संसद में इस मुद्दे पर खूब हंगामा हुआ था। दबाव में आकर नेहरू को इस्तीफा तक देना पड़ गया था।
किताब इसके अलावा यह भी बताती है कि आखिर 600 चीनी सैनिक कैसे तब भारत में घुसे थे। साथ ही इसमें दिल्ली से जारी आदेशों का ब्यौरा भी दिया गया और केंद्रीय मंत्रालयों के बीच भ्रम की स्थिति को भी उजागर किया गया।
रोचक बात है कि सैन्य मोर्चे पर हमारे सैनिक कमजोर थे। वे तैयार नहीं थे, फिर भी उन्हें सरहद पर भेजा गया था। उनके पास दूसरे विश्वयुद्ध के दौर की बंदूकें थीं, जबकि चीनियों के पास एके-47 थीं। भारतीय सैनिकों के पास जूतों, गर्म कपड़ों और आधुनिक उपकरणों की कमी थी। नेहरू तब लंदन में थे और बताया जाता है कि उन तक इन सब चीजों की सही जानकारी नहीं दी गई थी।
डाल्वी, भारतीय सेना में अफसर थे। 1962 के Sino-Indian War (भारत-चीन जंग) के दौरान वह भारत की सातवीं ब्रिगेड (Indian 7th Brigade) के कमांडर थे, जिसे पर बुरी तरह हमला कर चीनी सैनिकों ने डाल्वी को 22 October 1962 को युद्ध बंदी बना लिया था।