कोरोनावायरस संक्रमण के बढ़ते खतरे के मद्देनजर केंद्र सरकार ने मंगलवार देर रात से ही देशभर में लॉकडाउन का ऐलान कर दिया था। हालांकि, चार दिन पूरे होते-होते उसे अपने ही फैसले में कुछ छोटे बदलाव करने पड़े हैं। वजह रही- पलायन करने वाले मजदूर, जो लॉकडाउन के बीच खाने-पीने की चिंता के साथ बड़ी संख्या में पैदल ही अपने गृहनगरों की तरफ लौटने लगे। हजारों की संख्या में निकले इन मजदूरों को दूसरे राज्यों तक पहुंचने से रोकने के लिए खुद भाजपा शासित प्रदेशों को ही आगे आना पड़ा है। अब तक उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश से पलायन करने वाले मजदूरों को पैदल घर जाने से रोकने के लिए बसें चलाने का ऐलान कर चुके हैं।

प्रवासियों की यह समस्या राज्य सरकारों के लिए बड़ी चुनौती बन कर उभरी है। दरअसल, अभी तक यह साफ नहीं है कि लगातार अपने-अपने शहरों की तरफ जाने वाली कितनी जनसंख्या कोरोनावायरस से पीड़ित है। इनमें से ज्यादातर लोग उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, राजस्थान और उत्तराखंड के हैं। ऐसे में केंद्र सरकार को शनिवार को राज्यों को स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फंड (एसडीआरएफ) के इस्तेमाल के लिए कहना पड़ा है, ताकि वे प्रवासियों के लिए खाने और रहने के जरूरी इतंजाम कर पाएं।


उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि वह दिल्ली बॉर्डर और लखनऊ में फंसे अपने लोगों को लाने-ले जाने के लिए 1000 बसों का इंतजाम करेगी। इस बीच दिल्ली ने भी डीटीसी बसों के जरिए प्रवासियों को दिल्ली बॉर्डर पहुंचाना शुरू कर दिया।

गुजरात ने भी कहा है कि वह 10,000 प्रवासी मजदूरों को बसों के जरिए दूसरे राज्यों के बॉर्डर तक पहुंचाएगा। मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के सचिव अश्वनी कुमार ने प्रवासियों से अपील की कि वे गुजरात छोड़कर न जाएं।
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दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में भी पुलिस को पैदल कूच पर निकले लोगों के लिए ग्वालियर से झांसी तक की एक बस का इंतजाम करना पड़ा। इसी बीच उत्तराखंड ने कहा है कि वह भी प्रवासियों के लिए परिवहन व्यवस्था शुरू कर सकता है।

हालांकि, इसी बीच बिहार और छत्तीसगढ़ सरकार ने कहा है कि प्रवासी मजदूरों को परिवहन सेवाएं मुहैया कराने का फैसला कोरोनावायरस संक्रमण बढ़ा सकता है। बिहार के मुख्यमंत्री ने इस कदम के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा था कि प्रवासियों को बसों से भेजना लॉकडाउन की नाकामी है। स्थानीय स्तर पर राहत कैंप लगाना ज्यादा बेहतर विकल्प है। अगर कोरोना फैलता है, तो इससे निपटना मुश्किल होगा। ज्यादा बेहतर यह है कि लोग जहां हैं, वहीं रहें।