भारी बारिश और बादल फटने से पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में जान-माल और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान हुआ है। इस सप्ताह भारी बारिश के कारण सड़कें टूट गईं, भूस्खलन हुआ, घर ढह गए और 60 से अधिक लोगों की मौत भी हो चुकी है। हिमाचल प्रदेश के सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के अनुसार इस सप्ताह और जुलाई में भारी बारिश के दो दौर में अनुमानित क्षति लगभग 10,000 करोड़ रुपये है। इस मानसून सीजन में राज्य में बादल फटने और भूस्खलन की कुल 170 घटनाएं सामने आई हैं और लगभग 9,600 घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं।
हिमाचल में भारी बारिश हुई
आमतौर पर हिमाचल प्रदेश में जून से सितंबर तक पूरे मानसून सीजन के दौरान 730 मिमी बारिश होती है। लेकिन मौसम विभाग के मुताबिक इस साल अब तक राज्य में 742 मिमी बारिश हुई है। राज्य में 17,120 भूस्खलन संभावित स्थल हैं, जिनमें से 675 महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और बस्तियों के करीब हैं। इसके अलावा हिमाचल के सभी 12 जिले भूस्खलन के प्रति संवेदनशील हैं।
इस वर्ष भारी वर्षा के बीच, राज्य में भूस्खलन में वृद्धि देखी गई, जिससे 857 सड़कें टूट गईं। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मानसून की शुरुआत के बाद से राज्य में केवल दो महीनों में 113 भूस्खलन हुए हैं। वहीं राज्य में 2022 में 117 और 2020 में 16 बड़े भूस्खलन हुए थे।
हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स को क्यों दोषी ठहराया जा रहा है?
विशेषज्ञों का कहना है कि पारिस्थितिक रूप से नाजुक हिमालय में अनसाइंटिफिक निर्माण, घटते वन क्षेत्र और नदियों के पास नियोजित संरचनाएं भूस्खलन का कारण बन रही हैं। हालांकि आपदा के पीछे मुख्य कारणों में से एक जलविद्युत परियोजनाओं का अनियंत्रित निर्माण है, जिसने मूलतः पहाड़ी नदियों को धाराओं में बदल दिया है।
वर्तमान में 168 हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स परिचालन में हैं, जो 10,848 मेगावाट बिजली पैदा करती हैं। हालांकि राज्य में काम रुकने वाला नहीं है क्योंकि अनुमान है कि 2030 तक 22,640 मेगावाट ऊर्जा के लिए 1,088 और हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स चालू की जाएंगी।
बढ़ रही हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स की संख्या
हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स में वृद्धि क्षेत्र के बारे में चिंता पैदा करता है, जो पहले से ही बड़े संकट की चपेट में है।भूवैज्ञानिक विशेषज्ञ प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह धर के अनुसार, सड़कों और पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण और चौड़ीकरण के लिए पहाड़ी ढलानों की अत्यधिक कटाई भूस्खलन में वृद्धि के पीछे प्राथमिक कारण रही है।
हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स के तेजी से निर्माण से अकसर नदियों और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होता है, जबकि उचित भूवैज्ञानिक मूल्यांकन के बिना सड़कों के चौड़ीकरण से परिदृश्य और पर्वत के स्लोप प्रभावित होते हैं। बढ़ती बारिश और उच्च तापमान के कारण मिट्टी ढीली होने से भूस्खलन का खतरा पैदा हो गया है। 2021 में भूस्खलन के बाद किन्नौर जिले में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स के विरोध में ग्रामीणों ने कई अभियान चलाए।
भूस्खलन के लिए हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स जिम्मेदार नहीं: IIRS
स्थानीय लोग और विशेषज्ञ रिकॉर्ड भूस्खलन के लिए हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स को दोषी मानते हैं। लेकिन सरकार द्वारा संचालित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (IIRS)देहरादून के एक अध्ययन में कहा गया है कि भूस्खलन की घटनाएं चालू या निर्माणाधीन हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स से संबंधित नहीं हैं।
IIRS ने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड सहित हिमालयी राज्यों में राज्य जलविद्युत बोर्ड एनएचपीसी लिमिटेड की नौ साइटों का अध्ययन किया और पाया कि हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स के आसपास भूस्खलन परियोजना की निर्माण गतिविधि से संबंधित नहीं हैं।