पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में केंद्र सरकार के द्वारा लागू किए गए नए नियमों का बड़ा असर हो सकता है। बीजेपी को उम्मीद है कि इसका उसे चुनाव में फायदा मिलेगा। आइए, जानते हैं कि नये नियम क्या हैं?
केंद्र सरकार ने इमिग्रेशन और फॉरेनर्स एक्ट, 2025 (Immigration and Foreigners Act, 2025) के तहत कई नियम और आदेशों को नोटिफाई कर दिया है। 1 सितंबर से लागू हुए इन नियमों के तहत विदेशी नागरिकों के भारत में प्रवेश, रुकने और निकलने की व्यवस्था में बड़े बदलाव किए गए हैं।
इन नियमों के लागू होने से यह होगा कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर भारत आए अल्पसंख्यक (मुख्य रूप से गैर-मुस्लिम) बिना वीजा और पासपोर्ट शर्तों के भारत में रह सकते हैं। शर्त यह है कि वे 31 दिसंबर 2024 तक भारत में आ चुके हों।
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नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के तहत भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए 31 दिसंबर, 2014 की कटऑफ की तारीख अभी भी यही है। ऐसे में नए नियम उन लोगों पर भी लागू होंगे जिन्हें (long-term visa) चाहिए। भारत की नागरिकता लेने के लिए उन्हें नैचुरलाइजेशन (Naturalisation) की प्रक्रिया से गुजरना ही होगा।
मतुआ वोटरों का साथ मिलने की उम्मीद
पश्चिम बंगाल में बीजेपी को उम्मीद है कि इस कदम से उसे मतुआ वोटरों को अपने साथ लाने में मदद मिलेगी जबकि राज्य सरकार की अगुवाई कर रही टीएमसी ने आरोप लगाया है कि 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले यह अल्पसंख्यकों को डराने की चाल है।
अनुसूचित जाति वर्ग में आने वाले मतुआ समुदाय के लोग मूल रूप से बांग्लादेश के हैं। मतुआ लोग 1947 में हुए देश के विभाजन (Partition) और 1971 में बांग्लादेश बनने के दौरान हुए युद्ध के बाद पश्चिम बंगाल में आ गए। पश्चिम बंगाल में उनके असर को देखते हुए बीजेपी व टीएमसी दोनों ही उन्हें अपने साथ लाने की कोशिश करती हैं।
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बीजेपी को 2019 में मिला फायदा
बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले CAA लागू करने का वादा किया था। इस वजह से उसे मतुआ समुदाय का वोट मिला और बीजेपी को तब पश्चिम बंगाल में अपनी सबसे बड़ी जीत मिली। बीजेपी ने राज्य की 42 में से 18 लोकसभा सीटें जीती थी।
40–45 सीटों पर है मतुआ समुदाय का असर
पश्चिम बंगाल सरकार मानती है कि राज्य में मतुआ समुदाय की आबादी लगभग 17% है और कम से कम 30 विधानसभा सीटों पर इस समुदाय के मतदाताओं का असर है। जबकि मतुआ समुदाय के नेता कहते हैं कि उनकी हिस्सेदारी 20% तक है और वे विधानसभा की 40–45 सीटों को प्रभावित करते हैं।
बिहार की तरह पश्चिम बंगाल में भी वोटर लिस्ट के Special Intensive Revision (SIR) को लेकर मतुआ समुदाय के लोग परेशान हुए और उन्होंने कांग्रेस से संपर्क किया। यहां तक कि एक स्थानीय बीजेपी नेता बिहार जाकर विपक्ष के नेता राहुल गांधी से भी मिले। इससे बीजेपी के भीतर खलबली मच गई।
बीजेपी जानती है कि अगर उसे पश्चिम बंगाल में सरकार बनानी है तो हिंदू मतदाताओं को पूरी तरह अपने साथ रखना होगा और इसमें मतुआ समुदाय काफी अहम है।
बीजेपी को है ध्रुवीकरण की उम्मीद
बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि नए नियम लागू होने के बाद पश्चिम बंगाल की राजनीति बदल सकती है। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “हमें उम्मीद है कि अगले विधानसभा चुनावों में ध्रुवीकरण और बढ़ेगा। नए नियम से न सिर्फ मतुआ वोट मिलेंगे बल्कि हिंदू मतदाताओं में भी भरोसा बढ़ेगा।”
ममता बनर्जी मतुआ वोटों की अहमियत समझती हैं। ममता ने विधानसभा में कहा, “बीजेपी बंगाल विरोधी है और उसके नेता चोर हैं। चुनाव आते ही ये CAA और NRC की बात करने लगते हैं। 2019 में आपने कहा था सबको नागरिकता मिलेगी। लेकिन क्या हुआ? बीजेपी सबसे भ्रष्ट पार्टी है।”
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