Ujjain Mahakaal Temple History: मंगलवार (11 अक्टूबर) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल लोक का लोकार्पण किया। महाकाल लोक परियोजना के पहले चरण में मंदिर में आने वाले तीर्थयात्रियों को विश्व स्तरीय आधुनिक सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। महाकाल मंदिर को लेकर कई तथ्य ऐसे भी मिले हैं कि ये मंदिर कई बार तोड़ा गया और फिर बनाया भी गया। क्या आपको पता है कि बाबा महाकाल के मंदिर से जुड़ी हुई कई कथाएं और इतिहास में कई पन्ने ऐसे हैं जो बताते हैं कि मंदिर कई बार टूटा और फिर बना भी। तो आइए आपको बताते हैं कि बाबा महाकाल का मंदिर कब-कब टूटा और फिर कब बनकर फिर खड़ा हो गया।
एमपी तक वेब पोर्टल के मुताबिक उज्जैन मंदिर ऐतिहासिक लेखों के अनुसार द्वापर युग में भी था क्योंकि भगवान कृष्ण उज्जैन में शिक्षा ग्रहण करने के लिए आए थे। मुनि सांदीपनी के आश्रम में तो कहा जाता है कि उन्होंने उस दौरान महाकाल स्तुति का गायन किया था। तो ये सिद्ध करता है कि द्वापर युग में महाकाल का मंदिर था। उसके बाद एक किताब के मुताबिक हम बात करते हैं राजा भोज के शासन काल का इस किताब में जिक्र किया गया है कि राजा भोज ने लगभग 11वीं शताब्दी में बाबा महाकाल के मंदिर का निर्माण करवाया था।
इल्तुतमिश ने तोड़ा था महाकाल का मंदिर
हमने ये तो जान लिया कि महाकाल मंदिर कितना पुराना है लेकिन अभी तक हमें ये नहीं पता कि ये मंदिर कब-कब टूटा और कैसे फिर इसका पुनर्निर्माण हुआ हमें ये भी जानना होगा तो चलिए बताते हैं आपको इसके टूटने और फिर पुनःनिर्माण होने के बारे में। इतिहासकारों के मुताबिक 1100 से लेकर करीब 1728 तक यमनों का शासन रहा था। 1234 में इतिहास में बताया गया है कि दिल्ली की सल्तनत पर इल्तुतमिश बैठता है और उज्जैन पर आक्रमण करता है। इस हमले में महाकाल के मंदिर के टूटने की बात भी सामने आती है। इतिहास में मुस्लिम शासकों द्वारा मंदिर तोड़े जाने की बात सामने आती है लेकिन उसी समय जो राजा देवपाल जी थे उन्होंने मंदिर को फिर से बनवा दिया था।
मराठा राजवंश के समय लौटा था महाकाल मंदिर का गौरव
उज्जैन मंदिर के इतिहास की बात हो और मराठा राजवंश के आधिपत्य की बात छूट जाए तो ये सरासर बेइमानी होगी साल 1728 में मराठा राजवंश का आधिपत्य ग्रहण करता है तो फिर एक बार फिर उज्जैन के ऐतिहासिक नगर का गौरव वापिस लौटता है। 1728 में यमनों का शासन खत्म होता है और शुरुआत होती है सिंधिया राजवंश की जिसके संस्थापक रानोजी सिंधिया थे। जब वो बंगाल दौरे के लिए निकलते हुए महाकाल मंदिर की दुर्दशा देखते हैं तो आदेश देकर जाते हैं कि उनके बंगाल से लौटने से पहले ही ये मंदिर पूरी तरह से बनकर तैयार रहना चाहिए।