दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में टिप्पणी की थी कि यूएपीए कानून के तहत आतंकवाद की परिभाषा दिए जाने की जरूरत है। इस मामले पर संविधान विशेषज्ञ फैजान मुस्तफा का कहना है कि दुनिया भर में आतंकवाद की 100 से ज्यादा परिभाषाएं हैं। दुनिया आंतकवाद की एक परिभाषा पर सहमत नहीं हो सकी है। फैजान मुस्तफा ने कहा कि यह कहना सही नहीं होगा कि यूएपीए में आतंक की परिभाषणा स्पष्ट नहीं है। शब्द टेरर और टेररिज्म की कहीं परिभाषा नहीं है।
हालांकि यूएपीए में टेररिस्ट एक्ट की परिभाषा है। परिभाषा के मुताबिक जो भी देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता के खिलाफ है या आतंक फैलाने की कोशिश करता है, वह टेररिस्ट एक्ट है। अदालत का कहना है कि जब संसद नहीं चाहती कि छोटे-मोटे अपराधियों पर यूएपीए लगे तो पुलिस भी नहीं लगा सकती है। कोर्ट का कहना है कि यूएपीए जैसे कानून की परिभाषा को सीमित दायरे में करने की जरूरत है नहीं तो इसकी संवैधानिकता बनी नहीं रह पाएगी।
संविधान के जानकार ने बताया कि समस्या ये है कि पुलिस कानून व्यवस्था की छोटी समस्या को भी देश की सुरक्षा से जोड़ कर देखती है। मुस्तफा ने कहा कि अगर कोर्ट की बताई परिभाषा लगाई जाए तो कई बड़े-बड़े नेता आंतकवाद के दायरे में आ जाएंगे।
फैजान मुस्तफा ने कहा कि समस्या ये है कि हमारी अदालतों ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों को भुला दिया है। सीएए-एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों ने तो कहीं भी विस्फोट नहीं किया या फिर प्लेन हाईजैक किया।
गौरतलब है कि एक हफ्ते पहले स्टूडेंट एक्टिविस्ट नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और आसिफ इकबाल तन्हा को तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया। दिल्ली हाई कोर्ट ने यूएपीए के तहत पिछले साल मई में गिरफ्तार नरवाल, कालिता और तन्हा को जमानत दे दी थी।
आखिर में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्राओं देवांगना कालिता और नताशा नरवाल को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगों से जुड़े मामले में 15 जून को जमानत मिल पाई थी।
इन छात्रों को पिछले साल फरवरी में हुए सांप्रदायिक दंगों से जुड़े मामले में यूएपीए के तहत मई 2020 में गिरफ्तार किया गया था।