Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट पूर्व जज अभय ओका ने शुक्रवार को धार्मिक प्रथाओं के नाम पर पर्यावरण को हो रहे बढ़ते नुकसान पर सवाल उठाया। ओका ने इस दौरान समाज से विकास और प्रदूषण की वास्तविक लागत पर विचार करने का आह्वान किया। जस्टिस ओका बॉम्बे हाई कोर्ट में इंटरएक्टिव लॉयर्स एसोसिएशन फॉर विमेन द्वारा आयोजित पर्यावरण न्याय पर एक इंटरैक्टिव सत्र में बोल रहे थे।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस ओका ने गणपति, छठ पूजा और नवरात्रि जैसे त्योहारों के दौरान मूर्ति विसर्जन की प्रथा का जिक्र करते हुए कहा कि मैं धार्मिक व्यक्ति नहीं हूं, लेकिन कोई भी धर्म आपको पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की इजाजत नहीं देता है।
जस्टिस ओका ने पूछा कि क्या नदियों और समुद्र तटों को प्रदूषित करना कभी धार्मिक स्वतंत्रता के रूप में उचित ठहराया जा सकता है। उन्होंने कहा कि किसी ने भी सफलतापूर्वक यह तर्क नहीं दिया है कि प्रदूषण का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित है।
उन्होंने कहा कि अब हमारे समुद्रों और नदियों को देखिए, गणपति विसर्जन, छठ पूजा, नवरात्रि विसर्जन… क्या हम अपने समुद्रों को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं? मैं किसी एक धर्म की बात नहीं कर रहा हूं। मैंने हमेशा खुद से यह सवाल पूछा है: कौन सा धर्म इसका समर्थन करता है कि धार्मिक त्योहार मनाकर आप नदियों, समुद्रों, हमारे तटों को दूषित करते हैं? मुझे नहीं लगता कि अब तक किसी ने यह तर्क दिया है कि प्रदूषण फैलाने का अधिकार अनुच्छेद 25 का हिस्सा है। किसी ने यह तर्क नहीं दिया है। वास्तव में, हमने ध्वनि प्रदूषण के मामले में उस तर्क को खारिज कर दिया है कि अज़ान के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग अनुच्छेद 25 का हिस्सा है।
जस्टिस ओका ने कहा कि मैं कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं हूं, लेकिन मैंने जो भी साहित्य पढ़ा है… कोई भी धर्म आपको पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की इजाजत नहीं देता। लेकिन धर्म के नाम पर हम पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। उस त्योहार (कुंभ मेले) के कारण गंगा में क्या हुआ, कितने करोड़ रुपये वहां स्नान के लिए खर्च किए गए? किसी को यह सवाल पूछना होगा? क्या हम नदी के पानी को प्रदूषित नहीं कर रहे हैं? मुझे नहीं पता कि वह कौन है>
ओका ने कहा कि उन्होंने अपने निर्णयों में लगातार कहा है कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि पर्यावरणीय क्षरण, चाहे वह वायु, जल या ध्वनि प्रदूषण के रूप में हो, सीधे तौर पर इस अधिकार का उल्लंघन करता है।
उन्होंने पर्यावरण संबंधी मामलों में महिला वकीलों की महत्वपूर्ण भूमिका की भी सराहना की। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रहते हुए उन्होंने प्रदूषण संबंधी एमसी मेहता बैच के मामलों की सुनवाई की, जिसमें मुख्य बहस वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भट्टी और वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी सहित महिला वकीलों ने की थी।
जस्टिस ओका ने प्रमुख भारतीय शहरों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की विफलता की आलोचना की। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे 2016 में मुंबई में प्रतिदिन 5,000 मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न होता था, जिसमें से अधिकांश का उपचार नहीं किया जाता था। उन्होंने कहा कि दिल्ली में प्रतिदिन 3,000 मीट्रिक टन कचरे का प्रसंस्करण नहीं हो पाता, जिसके कारण खतरनाक लैंडफिल स्थल बन जाते हैं। वहीं, रिटायरमेंट के बाद CJI गवई क्या करेंगे? पढ़ें…पूरी खबर।