Hurriyat Chief Mirwaiz Umar Farooq: हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक ने कहा है कि उनका संगठन बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के साथ कश्मीर मुद्दे पर बातचीत करने के लिए तैयार है। मीरवाइज उमर फारूक शुक्रवार को श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में स्थित जामिया मस्जिद में इकट्ठा हुए लोगों को संबोधित कर रहे थे।

जम्मू-कश्मीर में हाल ही में विधानसभा के चुनाव हुए हैं और नई सरकार का गठन भी हो चुका है। नेशनल कॉन्फ्रेंस की अगुवाई में जम्मू-कश्मीर में सरकार बन चुकी है और उमर अब्दुल्ला राज्य के नए मुख्यमंत्री बने हैं।

नजरबंद रहे थे उमर फारूक

मीरवाइज उमर फारूक हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के उदारवादी धड़े के अध्यक्ष हैं। फारूक को अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद उनके घर में नजरबंद कर दिया गया था। इसके खिलाफ वह हाई कोर्ट पहुंचे थे और 4 साल तक घर में कैद रहने के बाद सितंबर, 2023 में बाहर निकले थे। हालांकि जम्मू-कश्मीर प्रशासन का दावा था कि फारूक को नजरबंद नहीं किया गया था बल्कि उनकी सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया गया था।

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बताना होगा कि मोदी सरकार ने अगस्त, 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया था।

मीरवाइज उमर फारूक ने कहा कि 1993 में जब ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (APHC) का गठन किया गया था, उस समय हालात बिलकुल अलग थे और जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद चरम पर था। फारूक ने कहा कि उस समय भी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने अपने घोषणा पत्र में साफ-साफ कहा था कि वह कश्मीर मसले का शांतिपूर्ण हल चाहता है और 30 साल गुजर जाने के बाद भी उसका यही मानना है।

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पीएम मोदी के बयान का किया जिक्र

फारूक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाल ही में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में दिए गए भाषण का भी जिक्र किया और कहा कि प्रधानमंत्री ने खुद भी बातचीत और कूटनीति के जरिए मुश्किलों का समाधान करने की बात कही है ना कि युद्ध के जरिए। फारूक ने कहा कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से भी बात की थी और वह दिल्ली की मौजूदा हुकूमत के साथ भी बातचीत करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि कश्मीर में अब तक बहुत खून बह चुका है और इसे आगे भी जारी रहने नहीं दिया जा सकता।

फारूक ने जम्मू-कश्मीर के गांदरबल और बारामूला जिलों में हाल ही में हुए आतंकी हमलों की जांच की मांग की है।

पिछले महीने भी फारूक ने अपने एक भाषण में केंद्र सरकार से आग्रह किया था कि वह जम्मू-कश्मीर के मुद्दों पर समाधान के लिए बातचीत शुरू करे और हुर्रियत इस मामले में सहयोग करने के लिए तैयार है।

कैसे हुआ था हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन?

1992 के दौरान जब कश्मीर में उग्रवाद अपने चरम पर था तो अलगाववाद का समर्थन करने वाले नेताओं को एक पॉलिटिकल प्लेटफार्म की जरूरत थी, जहां से वे कश्मीर मुद्दे को लेकर अपनी बात कर सकें। इसके तहत ही ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन हुआ।

31 जुलाई, 1993 को अलग-अलग विचारधाराओं वाले राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन किया था। सभी का यह कहना था कि कश्मीर पर ‘अवैध कब्जा’ किया हुआ है। उस वक्त मीरवाइज उमर फारूक की उम्र 19 साल थी। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने तब कहा था कि वह कश्मीर के मुद्दे के समाधान के लिए शांतिपूर्ण संघर्ष करेगा।

1993 से 1996 तक हुर्रियत कॉन्फ्रेंस कश्मीर में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत हुआ करता था लेकिन एक दशक बाद इसमें टूट शुरू हो गई और मीरवाइज उमर फारूक और अब्दुल गनी लोन उदारवादी धड़े में आ गए जबकि सैयद अली गिलानी और मसरत आलम कट्टरपंथी जमात के साथ चले गए। बाद के सालों में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस मीरवाइज और गिलानी के गुटों में बंट गई।