राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शीर्ष पदाधिकारी के चुनाव में अब सिर्फ एक दिन का समय ही रह गया है। शनिवार को संगठन के सरकार्यवाह (महासचिव) के चुनाव के लिए देशभर से अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (एबीपीएस) के 1500 सदस्य जुटेंगे। आमतौर पर सरकार्यवाह चुनने की प्रक्रिया हर तीन साल में नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में ही रखी जाती है। लेकिन इस बार परंपरा से हटकर प्रतिनिधि सभा बेंगलुरु में मुलाकात करेगी। इस बार चुनाव के लिए एक जगह पर इकट्ठा होने वाले लोगों की संख्या भी महज 600 ही रहेगी। बाकी सभी लोग अपने कार्यालयों से वर्चुअल तरीके से सरकार्यवाह के लिए मतदान करेंगे।

क्या है सरकार्यवाह चुनने में ABPS की भूमिका?: अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा संघ की सबसे बड़ी निर्णायक संस्था है। इसके 1500 सदस्य पूरे देश में सक्रिय स्वयंसेवकों के प्रतिनिधि माने जाते हैं। जहां सरसंघचालक के पद के लिए कोई चुनाव नहीं होता और आमतौर पर यह पद छोड़ने वाले लोग अपने उत्तराधिकारी का ऐलान करते हैं, जो कि आजीवन या अपनी मर्जी के अनुसार संघ प्रमुख का पद अपने पास रख सकता है। वहीं, दूसरी तरफ सरकार्यवाह का चुनाव नागपुर में एबीपीएस की तरफ से ही हर तीन साल में किया जाता है।

संघ की सालाना बैठकें देशभर में कई स्थानों पर रखी जाती हैं, लेकिन सरकार्यवाह के चुनाव की प्रक्रिया हर तीन साल में नागपुर में ही होती है, जिसमें सभी प्रतिनिधियों को शामिल होना होता है। सिर्फ इस साल ही कुछ परिस्थितियों के चलते ही इस प्रक्रिया के लिए संघ की बैठक का स्थान बदला जा सकता है। बता दें कि पिछले साल कोरोनावायरस के खतरे की वजह से संघ की बैठक बेंगलुरु में रखी गई थी। हालांकि, बाद में इसे रद्द कर दिया गया था।

क्या है सरकार्यवाह चुनने की प्रक्रिया?: संघ के प्रतिनिधियों की तीन दिवसीय बैठक के दूसरे दिन सरकार्यवाह का चुनाव होता है। इस बार संघ की दो दिवसीय बैठक के दूसरे दिन ही चुनाव रखे जाएंगे। आमतौर पर पदासीन सरकार्यवाह ही प्रतिनिधियों को अपने कार्यकाल में किए गए कामों के संबंध में जानकारी देते हैं और ऐलान करते हैं कि उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है, इसलिए नए सरकार्यवाह का चुनाव किया जाए। इसके बाद संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं में से किसी एक की चुनाव अधिकारी के तौर पर नियुक्ति होती है।

एक वरिष्ठ संघ कार्यकर्ता नए सरकार्यवाह के नाम का प्रस्ताव देता है। इस नाम को स्वीकार किए जाने के बाद ही सरकार्यवाह के नाम का ऐलान किया जाता है। चुनाव के बाद सरकार्यवाह को अपनी टीम का भी ऐलान करना होता है।

संघ में कब शुरू हुई थी सरकार्यवाह चुनने की प्रक्रिया?: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सरकार्यवाह के चुनाव कराने की प्रक्रिया 1950 के दशक में शुरू हुई थी। इमरजेंसी (1975-77) के दौरान चुनाव नहीं हुए थे, जबकि 1993 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद संघ पर बैन लग गया था और चुनाव नहीं कराए जा सके थे।

इस बार कौन हैं सरकार्यवाह पद की दौड़ में?: संघ सरकार्यवाह पद पर फिलहाल सुरेश भैयाजी जोशी काबिज हैं। इस पद पर बैठने वाले व्यक्ति पर संघ की हर गतिविधि की जिम्मेदारी होती है। सुरैश भैयाजी जोशी अब तक चार बार अपने तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। इससे पहले एचवी शेषाद्री ऐसे व्यक्ति थे, जो 1987 से 2000 तक चार बार लगातार सरकार्यवाह रहे थे।

अधिकतर बार सरकार्यवाह के उपाधिकारी या सहसरकार्यवाह को ही आगे संघ के सबसे ऊंचे अधिकारी का जिम्मा सौंप दिया जाता है। इस लिहाज से भैयाजी जोशी के सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसाबले, सुरेश सोनी, डॉक्टर कृष्ण गोपा, मनमोहन वैद्य, बी भगैया और सीआर मुकुंद अगले सरकार्यवाह बनने की होड़ में हैं।

इससे पहले कुछ ऐसे मौके भी आए हैं, जब सरकार्यवाह का चुनाव सहसरकार्यवाहों में से नहीं किया गया है। उदाहरण के तौर पर खुद भैयाजी जोशी को ही 2009 में जब सरकार्यवाह चुने गए थे, तब वे आरएसएस के अखिल भारतीय सेवा प्रमुख थे, न कि सहसरकार्यवाह। इन चुनाव में जोशी एक बार फिर सरकार्यवाह बनने के योग्य हैं। लेकिन उनकी उम्र 74 साल होने के कारण यह चर्चा हो रही है कि इस बार जो चुना जाए, वह अगले कार्यकाल में भी संघ का नेतृत्व करे।