Haryana Election Result: हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले आए हैं। इसने सभी एग्जिट पोल को गलत साबित कर दिया। लगभग सभी एग्जिट पोल में कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन जैसे ही सुबह 8 बजे से रुझान आने शुरू हुए तो गेम बदलता हुआ दिखाई दिया।
अब तक रुझानों में भाजपा ने 50 सीटों पर बढ़त हासिल है, जबकि कांग्रेस 35 सीटों पर ठिठकी हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा पूरे चुनाव अभियान का नेतृत्व कर रहे थे और राहुल गांधी ने कई रैलियां और विजय संकल्प यात्राएं चलाईं। इसके अलावा राज्य में कांग्रेस की ओर से किसान, जवान और पहलवानों की नाराजगी का नैरेटिव चलाया गया था।
सेना भर्ती में अग्निवीर स्कीम लागू करने का तीखा विरोध हुआ। कांग्रेस का कहना था कि यह चुनाव में मुद्दा बनेगा। इसके अलावा दिल्ली के जंतर-मंतर में हुए पहलवानों के आंदोलन और इससे पहले लगभग डेढ़ साल चले किसानों के प्रदर्शन के भरोसे भी कांग्रेस जोर-आजमाइश कर रही थी। लेकिन अब जो रुझान हैं, अगर यही नतीजों में बदलते हैं तो फिर कांग्रेस के लिए यह करारा झटका होगा।
वोट प्रतिशत में कांग्रेस आगे… फिर भी क्यों बन रही हरियाणा में बीजेपी सरकार?
राजनीति के जानकार मानते हैं कि हरियाणा चुनाव के बदले हुए रुझानों के पीछे पांच कारण मुख्य हैं। जिनके चलते बीजेपी कमजोर दिखकर भी मजबूत बनी रही और तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस कोई करिश्मा नहीं कर सकी।
कांग्रेस की हार के मुख्य बड़े कारण
हरियाणा विधानसभा की कुल 90 सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इस बार इन सीटों पर कांग्रेस बनाम बीजेपी का मुकाबला अभी तक बना हुआ है। रुझानों में इन 17 सीटों पर कांग्रेस 9 जबकि बीजेपी 8 सीटों पर आगे है। यह बड़ा आंकड़ा है क्योंकि पिछली बार उसे पांच सीटों पर ही जीत मिली थी। दुष्य़ंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी के खाते में पिछली बार चार आरक्षित सीटें गई थीं, जबकि एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई थी। इस बार जजपा के खाते में एक भी सीट नहीं गई।
हुड्डा बनाम कुमारी शैलजा के बीच तकरार की खबरें
हुड्डा बनाम कुमारी शैलजा कांग्रेस में खूब चला। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दोनों नेताओं के बीच रिश्ते सहज कराने की कोशिश भी की थी। राहुल ने एक रैली में दोनों नेताओं के हाथ पकड़कर ऊपर खड़े किए थे। कांग्रेस का कहना था कि दोनों के बीच रिश्ते खराब नहीं हैं। इसके बावजूद हुड्डा और कुमारी शैलज दोनों ही अलग-अलग सीएम पद के दावे कर रहे थे। इतना ही नहीं कुमार शैलजा ने तो एक इंटरव्यू में यहां तक कहा था कि मेरी उनसे कब बात हुई थी, याद ही नहीं है। कहा जा रहा है कि दोनों के बीच लगातार इस तरह खुले टकराव ने पार्टी को हानि पहुंचाई।
जाट लॉबी के हावी होने का संदेश गया
कांग्रेस को लेकर यह भी कहा जा रहा है कि उसने जाट नेतृत्व को आगे किया। भूपिंदर सिंह हुड्डा के हाथ में कमान थी और कहा जा रहा है कि उनके ही कहने पर 72 टिकट दिए गए थे। माना जा रहा है कि उनके इस तरह से कमान संभालने से जाट लॉबी के हावी होने का संदेश गया। इससे अहीरवाल बेल्ट में यादव, ब्राह्मण समेत कई अन्य बिरादरियां एकजुट होकर बीजेपी के साथ गईं। इसके अलावा करनाल, कुरुक्षेत्र और हिसार जैसे इलाकों में पंजाबी समेत अन्य समुदाय भाजपा की तरफ गया।
चुनाव से पहले बीजेपी ने मुख्यमंत्री चेहरा बदला
भाजपा ने छह महीने पहले ही हरियाणा का मुख्यमंत्री बदला था। मनोहर खट्टर को हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से हटाकर लोकसभा चुनाव लड़ाया गया। केंद्र में वो मंत्री बने और राज्य की कमान नायब सिंह सैनी को मिली। लेकिन चुनाव प्रचार से खट्टर को एकदम दूर रखा गया। इस तरह भाजपा ने खट्टर के चेहरे से नाराजगी को दूर करने की कोशिश की। नए चेहरे के साथ नई उम्मीदें पैदा कीं। यही वजह है कि नतीजे बीजेपी के पक्ष में गए।
कांग्रेस अतिउत्साह में थी, जबकि बीजेपी ने समीकरण साधा
महत्वपूर्ण बात एक यह भी है कि कांग्रेस के नेता एक तरफ अतिउत्साह में थे तो वहीं भाजपा सामाजिक समीकरण साधती रही। गुरुग्राम में पहली बार ब्राह्मण प्रत्याशी उतारा तो वहीं महेंद्रगढ़ में यादव को मौका दिया। इसके अलावा गुर्जर, सैनी, यादव समाज के बीच खूब बैठकें कीं। इस तरह बीजेपी ने गैर-जाट ओबीसी समुदायों के बीच गोलबंदी की और उसका फायदा भी दिख रहा है।