हिमाचल प्रदेश में बीते साल भयंकर प्राकृतिक आपदा आई थी, जिसके जख्म अभी भी भरे नहीं हैं। दस हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की चपत यह आपदा लगा गई है। सड़कों की हालत बदतर है, कई पुल उस वक्त टूट गए थे, जिन पर अभी कोई काम नहीं हुआ है। किसान आवारा पशुओं से परेशान हैं, बंदरों ने आम आदमी का जीना मुहाल कर रखा है। स्कूलों में अध्यापकों की कमी है, महाविद्यालयों में बड़े स्तर पर स्थान रिक्त पड़े हैं। अस्पतालों में पूरे डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ नहीं है। जल विद्युत परियोजना को लेकर भी हिमाचल प्रदेश की कहीं सुनवाई नहीं हो रही है।
आर्थिक कंगाली का दौर है, मगर पक्ष विपक्ष समोसों व मुर्गों में उलझा हुआ है। जो राजनीति प्रदेश को अपने पैरों पर खड़े होने के लिए होनी चाहिए थी, लेकिन वह समोसों व जंगली मुर्गो पर हो रही है। लोग हैरान है कि प्रदेश में राजनीति का स्तर कहां पहुंच गया है। बीते दिनों प्रदेश की राजधानी में पुलिस के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के लिए मंगवाए गए समोसे जब उन्हें नहीं परोसे गए और कोई और ही खा गया तो किसी पुलिस अधिकारी ने इस पर जांच बिठा दी।
बैठे बिठाए मिल गया विपक्ष को मुद्दा
बस फिर क्या था भाजपा को बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया और उसने समोसा-समोसा कर दिया। यहां तक कि समोसों की पार्टियां होने लगीं, सोशल मीडिया पर समोसे ही कई दिन तक प्रसारित होते रहे। अभी समोसे का स्वाद पक्ष-विपक्ष की जीभ से गया भी नहीं था कि बीच में जंगली मुर्गे ने आकर आग लगा दी।
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मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू एक कार्यक्रम में चौपाल के कुपवी गए। वहां पर उन्हें जो भोज परोसा गया, उसे लेकर वीडियो साझा हो गया कि जिसमें मुख्यमंत्री जंगली मुर्गा या देसी मुर्गा होने, खाने या न खाने या फिर दूसरे साथ बैठे नेताओं को परोसने जैसी कोई बात कर रहे हैं। बस फिर क्या था यह मुर्गा कुपवी से निकला और पूरे प्रदेश में ही नहीं, बल्कि देश भर में फैल गया। सोशल मीडिया जंगली मुर्गों से भर गया।
भाजपा विधायक समेत कुछ पत्रकारों पर FIR
कुपवी में जिन लोगों ने यह भोज दिया था, उन्होंने दुष्प्रचार करने के नाम पर एफआइआर तक कर दी। इस एफआइआर में धर्मशाला के भाजपा विधायक सुधीर शर्मा समेत कुछ पत्रकार भी लपेट लिए गए। दोनों तरफ से ऐसा हो हल्ला होने लगा जैसे प्रदेश में और कोई काम ही नहीं बचा है। यही नहीं हिमाचल प्रदेश की शीतकालीन राजधानी के तौर पर घोषित धर्मशाला के तपोवन में जो चार दिन तक शीतकालीन अधिवेशन हुआ, उसमें तो विपक्षी भाजपा हाथों में जंगली मुर्गे के कटआउट लेकर पहुंच गई और बहिर्गमन करके इन कटआउट को उठाकर नारेबाजी की।
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हिमाचल प्रदेश का आम आदमी राजनीति के गिरते स्तर को देख स्तब्ध है। विधानसभा में जो बहस आम आदमी की समस्याओं, दुश्वारियों व मांगों को लेकर होनी चाहिए, उन पर समोसा व मुर्गा भारी हो गया है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति की बात हो या फिर केंद्र से आपदा प्रबंधन के खाते में लिए जाने वाले 10 हजार करोड़ की हो, इसे लेकर पक्ष विपक्ष को एक मंच पर आकर मामला उठाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश कल्याणकारी राज्य है और केंद्र सरकार की मदद पर निर्भर है। ऐसे में समोसे व मुर्गे से ज्यादा जरूरी यहां के मुद्दे हैं जो लगातार गौण होते दिख रहे हैं।