राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म एक अप्रैल 1889 को नागपुर में हुआ था। पेशे से चिकित्सक हेडगेवार ने 1925 में महज 36 साल की उम्र में में आरएसएस की स्थापना की थी।  हेडगेवार में देशभक्ति की भावना बचपन से ही प्रबल थी और इसका प्रमाण बचपन से मिलने लगा था। ऐसी ही एक घटना का जिक्र हेडगेवार की आधिकारिक जीवन में किया गया है। इस जीवनी के लेखक हैं नाना पालकर जो आरएसएस के स्वयंसेवक थे। जीवनी की भूमिका संघ के दूसरे प्रमुख माधव सदाशिवराव गोलवरकर ने लिखी थी।

जीवनीकार के अनुसार स्कूली जीवन में ही छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी पढ़कर बालक हेडगेवार के मन में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विचारों के बीज पड़ गये थे। नागपुर के सीताबर्डी किले पर ब्रिटिश शासन का प्रतीक “यूनियन जैक” फहरता देख बालक हेडगेवार और उसके दोस्तों की आत्मसम्मान आहत होता था। हेडगेवार और उनके दोस्तों ने सोचा कि अगर यूनियन जैक को हटाकर वहां भगवा ध्वज फहरा दिया जाए तो किला फतह हो जाएगा।

सभी बच्चों ने अपनी मंशा को अंजाम देने के लिए योजना बनानी शुरू कर दी। किले पर हर दम पहरा रहता था इसलिए उन सबने तय किया कि वो पाठशाला से किले तक एक सुरंग बनायी जाएगी और उसके रास्ते अंदर घुसकर ब्रिटिश झंडा हटा दिया जाएगा। योजना बनते ही उस पर अमल भी शुरू हो गया। हेडगेवार और उनके दोस्त जिस वेदशाला में पढ़ते थे वो प्रसिद्ध विद्वान श्री नानाजी वझे के नेतृत्व में चल रही थी। योजना के अनुरूप पढ़ाई के कमरे में बच्चों ने कुदाल-फावड़े से सुरंग खोदने का काम शुरू कर दिया। बच्चों की इस गुप्त योजना के परिणामस्वरूप नानाजी वझे के घर का पढ़ाई का कमरा कुछ ज्यादा ही बंद रहने लगा। कुछ दिनों बाद पढ़ाई के कमरे को अक्सर बंद देखकर नानाजी वझे को शंका हुई। अपनी शंका के निराकरण के लिए जब वो कमरे के अंदर गए तो वहां एक तरफ गड्ढा खुदा हुआ था और दूसरी तरफ मिट्टी का ढेर लगा था।

गुरु ने रंगे हाथ चोरी पकड़ ली ये सोचकर बालक हेडगेवार और उनके दोस्त भय से सहम गए। लेकिन उनके नानाजी वझे ने उन्हें पीटने की जगह पूछा कि “ये क्या व्यर्थ का उद्यम लगा रखा है?” हेडगेवार और उनके मित्रों ने सच-सच बता दिया। बच्चों की बात सुनकर नानाजी वझे  ने उन्हें समझाया कि इस प्रकार व्यर्थ के पचड़ों में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। लेकिन वो मन-मन अपने शिष्यों के अंदर पल रहे देशभक्ति की भावना देखकर बहुत खुश हुए।

जीवनीकार के नाते जब हेडगेवार उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता चले गए तब नानाजी वझे इस घटना की दूसरों के संग अक्सर चर्चा किया करते थे। हेडगेवार डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद 1915 में नागपुर लौटे और डॉक्टर के तौर प्रैक्टिस करने लगे।शुरुआत में वो गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस से जुड़े रहे। 1925 में आरएसएस की स्थापना के बाद भी वो कुछ साल कांग्रेस से जुड़े रहे थे लेकिन बाद में वो कांग्रेस से पूरी तरह अलग हो गए थे। 21 जून 1940 को 51 वर्ष की उम्र में उनका नागपुर में निधन हो गया।