हरियाणा के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथी 37 विधानसभा सीटों पर डगमगा कर खड़ा तो हुआ, लेकिन वो एक भी डग भर नहीं पाया। अपने भतीजे आकाश आनन्द के तौर पर मायावती ने इस चुनाव में अपना तुरुप का जो इक्का चला, उसे भी हरियाणा की जनता से सिरे से नकार दिया। ऐसा तब हुआ तक हरियाणा की 37 में से 13 ऐसी सीटें थीं जहां बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक दस से 28 फीसद के करीब था। इतने के बाद भी बहुजन समाज पार्टी को सिर्फ पौने दो प्रतिशत ही वोट मिले।
हरियाणा के विधानसभा चुनाव में बड़ी हसरत के साथ 37 विधानसभा सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारने वाली बहुजन समाज पार्टी के हाथ कुछ भी नहीं लगा। दरअसल बसपा प्रमुख मायावती ने हरियाणा के विधानसभा चुनाव में चौथी पायदान पर खड़ी अपनी पार्टी की सियासी हैसियत को अपने भतीजे आकाश आनन्द के जरिये बेहतर करने का तुरुप कापत्ता चला था। बहनजी को यह लगता था कि वो 90 में से 37 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार का ऐसा दांव चलेंगी जिससे कांग्रेस को वो सियासी हैसियत का अंदाज करा सकें।
ऐसा करने के पीछे दो कारण थे। पहला, हरियाणा की 37 में से ज्यादातर सीटें जीत कर बहनजी राष्ट्रीय फलक पर आकाश आनन्द को स्थापित करने का दांव खेल रही थीं। दूसरा, यदि हरियाणा में मायावती ने जातिगत गणित के आधार पर जिस चुनाव परिणाम की आस लगाई थी, यदि वैसा कुछ होता तो वो कांग्रेस को अपनी सियासी हैसियत का अहसास कराना चाहती थीं। लेकिन हरियाणवियों ने बहनजी के सारे ख्वाब विधानसभा चुनाव में धूल धूसरित कर दिए।
हरियाणा चुनाव परिणाम से मायावती हुईं नाराज
हरियाणा में मायावती के मन मुताबिक कुछ न होने से वो खासी खफा हैं। उनकी नाराजगी किस कदर है इसका अहसास इस बात से लगाया जा सकता है कि बहनजी ने हरियाणा में जाटो को ही जातिवादी ठहरा दिया। बसपा सुप्रीमों हरियाणा विधानसभा के चुनाव परिणाम से आखिर क्यों इतनी नाराज हैं? इसकी मुकम्मल वजह है। हरियाणा की 13 विधानसभा ऐसी सीटें थीं जहां बहुजन समाज पार्टी का पारंपरिक मतदाता दस से 28 प्रतिशत के बीच थे।
हरियाणा में INLD के सामने अस्तित्व बचाने का संकट, छिन सकता है पार्टी सिंबल
बसपा का खाता ना खुलना पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष को विचलित कर रहा है। वो अब तक यह नहीं समझ पाई हैं कि सारे सियासी समीकरण कागजों पर बसपा के पक्ष में होने के बाद भी पार्टी को आखिर इस चुनाव में इतना करारा झटका आखिर लगा तो लगा कैसे? यही वजह है कि उन्होंने चौटाला परिवार पर की फूट और आरक्षण के नाम पर कांग्रेस को मतदाताओं को गुमराह करने का आरोप मढ़ कर हार कीअसल वजहों पर फिलहाल पर्दा डालने की कोशिश की है।
उन्होंने यहां तक कहा कि विरोधियों के हथकण्डों से सावधान ना रहने की वजह से उनकी पार्टी खराब दौर से गुजर रही है। इस बाबत समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राजेन्द्र चौधरी कहते हैं कि अब मायावती को खुद अपना आकलन करने की आवश्यकता है। वो अपना जनाधार लगातार खोती जा रही हैं लेकिन इस बात को वो स्वीकार नहीं कर पा रही हैं।