गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रदेश सरकार को अपने गृह-राज्य लौट रहे प्रवासी मजदूरों को भेजने का पूरा खर्च उठाना चाहिए या फिर रेलवे को किराए में छूट देनी चाहिए। हाईकोर्ट की टिप्पणी गुजरात सरकार की उस टिप्पणी के बाद आई है, जिसमें उसने कहा था कि राज्य में कई प्रवासी मजदूर अपनी दम पर आए हैं और अंतरराज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम 1979 के तहत राज्य पर उनके विस्थापन या यात्रा का खर्च उठाने के नियम लागू नहीं होते।
गुजरात सरकार ने कहा कि अंतरराज्यीय प्रवासी कामगार कानून 1979 सिर्फ रजिस्टर्ड प्रवासी मजदूरों पर ही लागू होता है। इस कानून के तहत राज्य में 7512 कामगार रजिस्टर हैं। मौजूदा डेटा के मुताबिक, राज्य में कुल 22.5 लाख प्रवासी मजदूर हैं। इनमें से कई अपने आप गुजरात आए हैं और कामगार कानून के सेक्शन 14 और 15 के तहत इन्हें यात्रा खर्च और विस्थापन भत्ता नहीं दिया जाना चाहिए।
Lockdown 4.0 Guidelines in Hindi
रिपोर्ट में कहा गया कि ओडिशा, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु ने प्रवासी मजदूरों को लाने के लिए रेलवे के पास यात्रा खर्च जमा करा दिया है। एफिडेविट में आगे कहा गया है कि जिलास्तर पर कई एनजीओ और सिविल सोसाइटी ऑर्गनाइजेशन ने प्रवासी मजदूरों की यात्रा के इंतजाम किए हैं। वहीं यूपी, ओडिशा और तमिलनाडु ने कहा है कि वे प्रवासियों को लाने का खर्च रेलवे को सीधे जमा कर देंगे। किसी भी प्रवासी को यात्रा खर्च न देने पर उनके घर जाने से नहीं रोका गया है।
गुजरात सरकार की इस रिपोर्ट में ही लेबर डिपार्टमेंट का एक सर्वे भी शामिल है, जिसमें कहा गया कि गुजरात की फैक्ट्रियों में काम करने वाले आधे से ज्यादा प्रवासी सूरत या इसके आसपास के जिलों में बसे हैं। इसमें कहा गया, “गुजरात में काम करने वाले अंतरराज्यीय प्रवासी मजदूर, जो सूरत या इसके आसपास के हैं, उनकी संख्या 11.5 लाख है। बाकी बचे राज्य में प्रवासी मजदूरों की संख्या करीब 11 लाख है।”
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 31 मई तक सिर्फ 1.5 लाख प्रवासी मजदूर ही सूरत में बचेंगे। इनमें से 1 लाख 15 हजार ने फैक्ट्रियों और उद्योगों के शुरू होने के बाद अपना काम भी शुरू कर दिया है। कहा गया है कि 21 मई तक 8 लाख 8 हजार 294 प्रवासियों को श्रमिक ट्रेनों के जरिए अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा, राजकोट, भरूच, पालनपुर, मोरबी और वलसाड के रेलवे स्टेशनों से घर पहुंचाया गया। इनमें से 205 ट्रेनें 19 मई तक अकेले सूरत से निकलीं, जिनके जरिए 3 लाख 6 हजार प्रवासियों को घर भेजा गया।