पिछले महीने की 22 तारीख को जस्टिस जेबी परदीवाला की अध्यक्षता वाली गुजरात हाई कोर्ट की खंडपीठ ने अहमदाबाद सिविल अस्पताल को कालकोठरी से भी बदतर बताया था। खंडपीठ ने कोविड-19 महामारी से निपटने को लेकर राज्य सरकार को फटकार लगाई थी। अदालत ने यहां तक पूछा था कि क्या सूबे के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल और मुख्य सचिव अनिल मुकीम को मरीजों और कर्मचारियों को होने वाली समस्याओं का कोई आइडिया है?

खंडपीठ ने 11 मई को दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की थी। खंडपीठ में जस्टिस इलेश वोरा भी शामिल थे। इसके बाद 28 मई को इस जनहित याचिका की सुनवाई के लिए नई खंडपीठ गठित हुई। इसमें हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और जस्टिस परदीवाला शामिल थे। अब मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली नई खंडपीठ ने 29 मई को याचिका पर टिप्पणी की,  ‘जैसा कि कहा गया है कि उसके हिसाब से अगर राज्य सरकार कुछ भी नहीं कर रही होती, तो शायद अब तक हम सभी मर चुके होते।’

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खंडपीठ ने कहा, ‘हमारा संदेश साफ और स्पष्ट है… इस मुश्किल समय में जो भी मदद का हाथ नहीं बढ़ा सकते… उन्हें राज्य सरकार के कामकाज की आलोचना करने का कोई अधिकार नहीं है। जैसा कि कहा गया है अगर राज्य सरकार उस तरह ही कर रही होती तो अब तक हम सभी मर चुके होते। हमें राज्य सरकार को उसके संवैधानिक और वैधानिक दायित्वों की याद दिलाकर जागरूक और एक्टिव रखना है।’

हाईकोर्ट ने कहा, ‘सरकार की सिर्फ कमियों को उजागर करना लोगों के मन में केवल भय पैदा करता है।’ हाई कोर्ट ने जनहित याचिका से संबंधित आदेशों पर टिप्पणी करने से पहले सभी को ‘बहुत सावधान’ रहने के लिए भी कहा। हाईकोर्ट ने कहा, ‘हमारी राय में, जनहित याचिका राजनीतिक लाभ लेने के लिए नहीं है। इस संकट के समय में, हमें झगड़ने के बजाय एकजुट रहना है।।’

खंडपीठ ने कहा, ‘कोविड- 19 एक मानवीय संकट है, न कि राजनीतिक संकट। इसलिए, यह जरूरी है कि कोई भी इस मुद्दे का राजनीतिकरण न करे। इन असाधारण परिस्थितियों में, विपक्ष की भूमिका भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। इसमें कोई शक नहीं है विपक्ष का काम सरकार के कामकाज का हिसाब रखना है, लेकिन ऐसे समय में आलोचना करने वाली जीभ की बजाय, मदद के लिए बढ़ा हाथ ज्यादा लाभकारी होगा।।’