गुजरात विधानसभा में बुधवार को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी कांग्रेस के विधायकों में जमकर बहस देखने को मिली। बता दें कि राज्य सरकार द्वारा अडाणी पावर लिमिटेड (एपीएल) के साथ अपने बिजली खरीद से जुड़े संशोधित समझौते पर हस्ताक्षर करने को लेकर कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोला।
गुजरात की भाजपा सरकार ने कहा कि पूरक समझौता कोयला बाजार के बदले हुए परिदृश्य के कारण था। लेकिन कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने कोयले की बढ़ी हुई दरों की आड़ में एपीएल को लाभ पहुंचाया है। जिसकी वजह से उसे 2,178 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान किया। बता दें कि गुजरात विधानसभा में कांग्रेस विधायकों ने भाजपा विरोधी नारे लगाए।
कांग्रेस का आरोप है कि सत्तारूढ़ दल निजी बिजली कंपनी का पक्ष ले रही है। कांग्रेस विधायक राजेश गोहिल के एक सवाल पर ऊर्जा राज्य मंत्री मुकेश पटेल ने जानकारी दी कि गुजरात सरकार ने एपीएल के साथ बिजली खरीदने के लिए 2006-’07 में 25 साल का समझौता किया था। इसके बाद, गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (जीयूवीएनएल) ने टैरिफ को संशोधित करने के लिए एपीएल के साथ एक पूरक समझौता किया।
पटेल ने कहा कि राज्य द्वारा संचालित बिजली संयंत्रों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं इस चर्चा में कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और सदन में पार्टी के नेता सीजे चावड़ा ने कहा कि गुजरात में 15 सरकारी स्वामित्व वाले बिजली स्टेशनों की औसत उत्पादन क्षमता लगभग 9,000 मेगावाट है।
उन्होंने आरोप लगाया कि लगभग 9,000 मेगावाट बिजली की उत्पादन क्षमता के मुकाबले, ये बिजली स्टेशन केवल 3,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन कर रहे हैं। चावड़ा ने कहा कि कंपनी के साथ समझौते में बिजली दरों में संशोधन कर राज्य की भाजपा सरकार ने निजी कंपनी को करोड़ों रुपये का फायदा पहुंचाया।
मंत्री मुकेश पटेल ने कहा कि सरकार निजी कंपनियों से बिजली खरीद रही है क्योंकि परिवहन लागत के कारण कोयले की कीमत बहुत महंगी हो रही है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के पुराने बिजली स्टेशनों को अपग्रेड करने की प्रक्रिया जारी है।
वहीं ऊर्जा मंत्री कानू देसाई ने कहा कि 2007 में अडाणी पावर के साथ गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (जीयूवीएनएल) ने 2.89 रुपये और 2.35 रुपये प्रति यूनिट की दर पर बिजली खरीदने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
देसाई ने कहा कि अनुबंध की बाकी अवधि के लिए दरों में बदलाव 2018 में किया गया था और केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग ने भी नए समझौते को मंजूरी दी थी। इस कदम पर विरोध दर्ज करते हुए कांग्रेस विधायक परेश धनानी ने कहा कि राज्य सरकार निजी कंपनियों से ‘महंगी’ बिजली खरीदने में सरकारी पैसों को खर्च कर रही है।