Bihar Voter Verification: बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन Special Intensive Revision (SIR) को लेकर अच्छा-खासा विवाद राज्य की विधानसभा से लेकर देश की संसद तक में हो रहा है। विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की इस एक्सरसाइज को समाज के गरीब लोगों के वोट काटने की साजिश बताया है। इस मामले में 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है।

सुनवाई से पहले गैर सरकारी संगठन Association for Democratic Reforms (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया है। यह जवाब चुनाव आयोग के हलफनामे के काउंटर में दिया गया है। ADR ने कहा है कि बिहार के विधानसभा चुनाव से पहले इस तरह की एक्सरसाइज राज्य के मतदाताओं के साथ बहुत बड़ी धोखाधड़ी है।

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ADR ने कहा कि चुनाव आयोग की ओर से सुप्रीम कोर्ट में किया गया यह दावा कि उसे वोटर लिस्ट रिवीजन के दौरान मतदाताओं की नागरिकता का वेरिफिकेशन करने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है, यह दावा अदालत के पुराने फैसलों के खिलाफ है। बताना होगा कि SIR के खिलाफ कई राजनीतिक दलों के नेता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे और ADR ने भी इसके विरोध में अदालत में याचिका दायर की थी।

ADR ने क्या कहा?

ADR ने अपने जवाब में सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों- लाल बाबू हुसैन बनाम भारत संघ (1995) और इंद्रजीत बरुआ बनाम ECI (1985) का हवाला दिया है। इंद्रजीत बरुआ बनाम ECI (1985) के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वोटर लिस्ट में नाम होना नागरिकता का सबूत है और इसे खारिज करने की स्थिति बनती है तो ये जिम्मेदारी आपत्ति करने वाले की है।

चुनाव आयोग ने कहा था कि मतगणना फार्म के साथ ही 2003 के बाद वोटर लिस्ट में जोड़े गए मतदाताओं को उसके द्वारा जारी किए गए 11 डॉक्यूमेंट्स में से कोई एक देना होगा जो उनकी नागरिकता को साबित करता हो। ADR ने कहा है कि इस वजह से 2003 के बाद वोटर लिस्ट में शामिल हुए मतदाताओं पर उम्र और नागरिकता को साबित करने की जिम्मेदारी आ गई है।

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आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड का मामला

बताना होगा कि चुनाव आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा है कि आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के तौर पर नहीं माना जाएगा और उसने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के भी सुझाव को स्वीकार नहीं किया। आयोग का कहना था कि आधार, राशन कार्ड या वोटर आईडी कार्ड धोखाधड़ी या गलत डॉक्यूमेंट पेश करके बनाए जा सकते हैं। इसे लेकर ADR ने कहा है कि आयोग के द्वारा मांगे गए 11 दस्तावेज भी फर्जी या झूठे दस्तावेजों का इस्तेमाल कर बनाए जा सकते हैं।

EROs को मिली असीमित ताकत

ADR ने कहा है कि बिहार से जो ग्राउंड रिपोर्ट्स मिल रही हैं, उनके मुताबिक चुनाव आयोग की ओर से दिए गए दिशा-निर्देशों का बूथ लेवल अफसर बीएलओ द्वारा उल्लंघन किया जा रहा है। ADR के मुताबिक, मतगणना फार्म की जांच या डॉक्यूमेंट्स के वेरिफिकेशन के लिए कोई स्पष्ट प्रक्रिया नहीं है और इससे Electoral Registration Officers (EROs) को बेहिसाब ताकत मिल गई है।

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65 लाख मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से बाहर

बताना होगा कि SIR के पहले चरण का काम पूरा हो गया है और इसमें बिहार के करीब 8% मतदाता यानी 65 लाख मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट में शामिल नहीं हो पाए हैं। अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या ये लोग चुनाव में वोट नहीं डाल पाएंगे? चुनाव आयोग ने कहा है कि 7.23 करोड़ मतदाताओं के फॉर्म मिले हैं जिन्हें मतदाताओं की ड्राफ्ट सूची में शामिल किया जाएगा।

चुनाव आयोग 1 अगस्त को वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट प्रकाशित करेगा और 30 सितंबर को इसका फाइनल प्रकाशन किया जाएगा। ड्राफ्ट लिस्ट प्रकाशित होने के बाद और भी नाम हटाए जा सकते हैं क्योंकि फाइनल लिस्ट जारी होने से पहले 7.23 करोड़ मतदाताओं द्वारा आयोग को दिए गए डॉक्यूमेंट्स की जांच की जाएगी।

ड्राफ्ट लिस्ट से बाहर रह गए लोगों को 1 अगस्त से 1 सितंबर के बीच दावे और आपत्तियां दर्ज कराने का मौका मिलेगा।

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