मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, मिजोरम और छत्तीसगढ़ के चुनाव से कुछ पहले ही मोदी सरकार ने इलेक्टोरेल बॉन्ड की 27 वीं किश्त को जारी करने की मंजूरी दे दी है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के जरिये इनकी खरीद फरोख्त की जा सकेगी। ये 3 जुलाई से सभी के बैंक में उपलब्ध होंगे। इन्हें 2018 में लॉन्च किया गया था। हालांकि इनकी खरीद वो ही राजनीतिक दल कर सकते हैं जिन्हें पिछले चुनाव में 1 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हो।

चुनावी बॉन्ड पहली दफा मार्च 2018 में लॉन्च हुए थे। पहली दफा ये 1 से लेकर 10 मार्च तक स्टेट बैंक में बिके थे। हालांकि इनकी खरीद कोई भी कर सकता है लेकिन इनकी वैधता 15 दिनों की होती है। अगर इस अवधि के बाद कोई भी राजनीतिक दल इनको लेकर बैंक में पहुंचता है तो ये बेकार माने जाते हैं। यानि कोई पैसा नहीं दिया जाता। हालांकि इनको लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी रिट जा चुकी है। लेकिन अभी तक शीर्ष अदालत ने कोई निर्णायक आदेश नहीं दिया है। इस बार स्टेट बैंक इनकी सेल 3 से 13 अप्रैल तक करेगा। 29 ब्रांन्चों पर ये खरीदे जा सकेंगे।

इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनौती देने वाली रिटों की नियमित सुनवाई से गुरेज कर रहा सुप्रीम कोर्ट

इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सरकार की स्कीम को पहली बार 2017 में चुनौती दी गई थी। लेकिन अभी तक इस मामले में कोई खास प्रगति नहीं है। चार सीजेआई रिटायर हो गए। दीपक मिश्रा, रंजन गगोई, एसए बॉब्दे और एनवी रमना सीजेआई की कुर्सी से हट गए। लेकिन मामला अभी तक अनसुलझा है। एनवी रमना के समय से ही ये मामला लिस्ट तक नहीं किया गया। जबकि कई रिमांइंडर भेजे गए। यूयू ललित ने अपने कार्यकाल के दौरान केस को लिस्ट कराया तो मामले को 6 दिसंबर 2022 तक टाल दिया गया। डीवाई चंद्रचूड़ इस मामले को संवैधानिक बेंच के पास भेजने पर विचार कर रहे हैं।

जस्टिस लोकुर मानते हैं- सरकार के दबाव में नहीं हो रही सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर का कहना है कि आज के माहौल को देखकर लगता है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार के प्रभाव में है। तभी इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले की सुनवाई नहीं हो रही। इसकी सुनवाई करनी जरूरी है। लेकिन ये नहीं हो पा रही है। कुछ अरसा पहले एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि पता नहीं कि इस मामले में सुनवाई होने पर क्या फैसला होगा। लेकिन लोग कहेंगे अगर सुप्रीम कोर्ट इलेक्टोरेल बॉन्ड क सुनवाई कर लेता तो कई सूबों के चुनावी नतीजे कुछ और ही होते।