सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की राज्यसभा में नियुक्ति को चुनौती दी गई है। गोगोई को सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के चार महीने बाद मार्च 2020 में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा राज्यसभा के लिए नामित किया गया था।
नामांकन के समय, कई संवैधानिक विशेषज्ञों, कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों ने निर्णय की आलोचना करते हुए कहा था कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के संवैधानिक पृथक्करण को धुंधला किया जा रहा है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता सतीश एस. काम्बिये द्वारा दायर हालिया याचिका में पूछा गया है कि गोगोई को किस अधिकार, योग्यता और पद से उच्च सदन के लिए नामित किया गया है। याचिका में कहा गया है कि एक जांच के बाद गोगोई को सांसद पद से हटा दिया जाना चाहिए।
राज्यसभा की वेबसाइट पर उपलब्ध कराए गए बायोडाटा के अनुसार, याचिकाकर्ता ने नोट किया है कि गोगोई ने न तो कोई किताब लिखी है और न ही उनके नाम से कोई किताब प्रकाशित है। यहां तक कि वह किसी भी सामाजिक, वैज्ञानिक, साहित्यिक या सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल नहीं रहे हैं। याचिकाकर्ता के मुताबिक, “कम से कम, वेबसाइट पर साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के प्रति उनके विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।”
इन तथ्यों को देखते हुए, याचिका में कहा गया है, गोगोई को नामित करने वाली सरकारी अधिसूचना – संविधान के अनुच्छेद 80 (1) (ए) के साथ (3) के तहत – इन खंडों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है। मालूम हो कि रंजन गोगोई की नियुक्ति के तुरंत बाद, कार्यकर्ता मधु किश्वर ने एक जनहित याचिका दायर की थी। अपनी याचिका में उन्होंने आरोप लगाया कि गोगोई की नियुक्ति न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करती है।
वहीं सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोविड-19 ने कई जिंदगियां बर्बाद कर दीं और महामारी के दौरान अपने पिता, माता या दोनों को खो देने वाले बच्चों का जीवन दांव पर लगा देखना ‘‘हृदय-विदारक’’ है। कोर्ट ने हालांकि ऐसे बच्चों को राहत पहुंचाने के लिये केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा घोषित योजनाओं को लेकर संतोष जताया।
कोर्ट ने कहा कि सरकारों ने उन बच्चों की पहचान करने में “संतोषजनक प्रगति” की है, जो कोविड-19 महामारी के दौरान या तो अनाथ हो गए हैं या अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है।
