जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक 7.20 करोड़ और लोगों के कुपोषित होने का खतरा है। सोमवार को काठमांडो में जारी एक वैश्विक रपट में यह बात कही गई। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आइएफपीआरआइ) की ओर से जारी ‘वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट (जीएफपीआर)’ ने सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को विकसित करने के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण का आह्वान किया है, जो अत्यधिक अनुकूल, लचीली और समावेशी हो तथा संकट आने की स्थिति में इसे जल्दी से विस्तारित किया जा सके।

जीएफपीआर रपट में कहा गया है कि खाद्य संकट की स्थिति में त्वरित उपाय के लिए अधिक व्यवस्थित और दीर्घकालिक दृष्टिकोण विकसित करने की आवश्यकता है, जो टिकाऊ हो और भविष्य में ऐसे नए खतरों से निपटने में अधिक लचीलापन हो। खाद्य सुरक्षा सूचना नेटवर्क (एफएसआइएन) की ओर से तैयार की गई ‘खाद्य संकट पर वैश्विक रिपोर्ट (2022)’ के अनुसार, 45 देशों में लगभग 20 करोड़ 50 लाख लोगों ने संकट-स्तर की तीव्र खाद्य असुरक्षा या इन जटिल संकटों के कारण बदतर स्थिति का अनुभव किया।

जीएफपीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020-2022 के दौरान खाद्य असुरक्षा में वृद्धि लंबे समय तक जारी कोविड-19 महामारी, प्राकृतिक आपदाओं, नागरिक अशांति, राजनीतिक अस्थिरता, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों और रूस-यूक्रेन युद्ध के वैश्विक नतीजों के कारण हुई है।

दक्षिण एशिया में एक लचीली खाद्य प्रणाली के निर्माण के महत्त्व पर टिप्पणी करते हुए, आइएफपीआरआइ के दक्षिण एशिया निदेशक शाहिदुर राशिद ने कहा कि दक्षिण एशिया में चरम जलवायु एक प्रतिमान बन गया है और 2022 में इस क्षेत्र में लगभग सौ साल में सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया है। राशिद ने रपट के विमोचन के अवसर पर कहा, दक्षिण एशिया की लचीली संकट प्रतिक्रिया प्रणाली के निर्माण में सफलता का वैश्विक विकास एजंडा और वैश्विक खाद्य प्रणालियों की स्थिरता के लिए व्यापक निहितार्थ हैं।

रपट तैयार करने वालों ने एशियाई विकास बैंक (एडीबी) की 2022 की रिपोर्ट के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा, ‘आइएफपीआरआई के ‘इंपैक्ट माडल’ के अनुमानों से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन की स्थिति में 2050 तक 7.20 करोड़ से अधिक लोग कुपोषित होंगे।’ आइएफपीआरआइ के महानिदेशक और ‘सीजीआइएआर सिस्टम ट्रांसफारमेशन साइंस ग्रुप’ के प्रबंध निदेशक जोहान स्विनेन ने कहा, ‘ये सभी संकट एक के बाद एक साथ आ रहे हैं, और हम अपनी प्रणाली में अस्थिरता देख रहे हैं और ऐसी आपदाजनक घटनाओं में भारी वृद्धि भी।’