जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान देश गुटों में बंटे हुए हैं। जी20 शिखर सम्मेलन में भारत पांच प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर आम सहमति बनाने में जुटा है। रूस-यूक्रेन युद्ध, महंगाई और खाद्य आपूर्ति, ऊर्जा, हथियारों की होड़ और जलवायु परिवर्तन – भारत की कोशिश है कि इन पांच मुद्दों पर संयुक्त बयान जारी हो जाए। जी20 के वित्त और विदेश मंत्रियों की बैठक में बयान जारी नहीं हो पाने के बाद मुख्य बैठक के लिए भारतीय राजनयिक कूटनीतिक सावधानी बरत रहे हैं। विभिन्न देशों के साथ वार्ताओं के लंबे दौर भी चले हैं।
भारत अंतरराष्ट्रीय कार्यकलापों के अर्थशास्त्र को तेज करने के लिए एक निश्चित एजंडा निर्धारित करना चाहता है। अर्थशास्त्र के जरिए पश्चिमी दबाव की राजनीति को साधने पर जोर है। चुनौती वैश्विक ध्रुवीकरण को लेकर है। अमेरिका के नेतृत्व वाले लोकतांत्रिक राष्ट्रों और चीन के आस-पास जुटने वाले सत्तावादी शासनों के बीच बढ़ते ध्रुवीकरण और आरोप-प्रत्यारोप का दौर स्थिति को जटिल बना रहा है। जाहिर है कि मतभेदों की वजह से एक विकट स्थिति में पहुंच चुकी दुनिया को जी-20 जैसे मंच के माध्यम से साझा हितों वाले विश्व में बदलने की जरूरत है।
भारत की अध्यक्षता में सम्मेलन की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कितनी कुशलता से देशों के बीच दूरियों को पाटने, विवादों को खत्म करने, शांति स्थापित करने, संघर्षों को शांत करने और टूट चुकी आपूर्ति श्रृंखलाओं को फिर से बहाल करने के लिए रास्ते और साधन खोज पाते हैं। बड़ी चुनौती रूस-यूक्रेन युद्ध है।
इस मुद्दे पर समूह के नेताओं को संवेदनशील और नए तरीके से सोचने के जरूरत होगी, ताकि पश्चिम और रूस दोनों को युद्ध का मैदान बन चुके यूक्रेन से पीछे हटाया जा सके। जी-20 से रूस को बाहर निकालना, जैसा कि पश्चिमी देश चाहते हैं, एक हिसाब से संभव नहीं है और इसी तरह से रूस-यूक्रेन की लड़ाई का अनंतकाल तक जारी रहना भी संभव नहीं है। ऐसे में एक ही रास्ता बचता है और वो है रणनीतिक वापसी।
पश्चिम अपनी तरफ से आगे बढ़कर यूक्रेन की उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की सदस्यता को ठंडे बस्ते में डाल सकता है, क्योंकि यही वो मसला है जिस पर रूस आगबबूला है। दूसरी तरफ रूस को अपने कदम वापस लेने और कूटनीति में उसके स्थान को महत्त्व देने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि यह एक बड़ी चुनौती होगी और अगर भारत इसका समाधान निकालने में कामयाब हो जाता है, तो यह उसकी जी-20 अध्यक्षता की सबसे बेहतरीन उपलब्धि होगी।
अगर ऐसा हुआ तो दूसरी चुनौती, यानी पूरी दुनिया में महंगाई, खासकर खाने-पीने की वस्तुओं की महंगाई की वजह से वैश्विक स्तर पर छाई मुद्रास्फीति की समस्या का समाधान हो जाएगा। फिलहाल, जी-20 के 19 सदस्यों में से तीन सदस्य देशों में महंगाई दर 10 फीसद से अधिक है, सात देशों में महंगाई दर 7.5 से 10 फीसद के बीच है, पांच देशों में महंगाई दर 5 से 7.5 फीसद के बीच है और चार देशों में महंगाई दर पांच फीसद से कम है।
तीसरी चुनौती है ऊर्जा। रूस दुनिया को यह बता रहा है कि उसके खिलाफ प्रतिबंध भविष्य में उसकी अर्थव्यवस्था को जरूर प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन फिलहाल इन प्रतिबंधों का उस पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा है। रूस की प्रतिक्रिया से जो सबसे अधिक प्रभावित हैं, वो हैं गैस पर निर्भर यूरोपीय देश। नवंबर आते-आते सर्दी के मौसम में जर्मनी जैसे देशों में गैस की कमी की समस्या विकराल रूप धारण कर सकती है।
इसके लिए भारत को तीन अलग-अलग जी-20 ऊर्जा हितों- मुख्य रूप से ऊर्जा उत्पादकों (अमेरिका, रूस और सऊदी अरब) बनाम ऊर्जा उपभोक्ताओं (यूरोप और अन्य) को एक साथ व्यवहारिक मंच पर ले जाने की आवश्यकता है। चौथी चुनौती है खाद्य वस्तुओं और ऊर्जा की बढ़ती की कीमतों की वजह से लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति और इससे निपटने के लिए देशों द्वारा की जा रही कोशिशें।
लोकतांत्रिक देशों में बेतहाशा महंगाई राजनीतिक अस्थिरिता का कारण बन सकती है। इसीलिए, महंगाई को काबू में रखना राजनीतिक प्राथमिकिता भी है। चीन, इंडोनेशिया, जापान, रूस और तुर्की के अलावा अन्य सभी जी-20 सदस्य देशों की केंद्रीय बैंकों ने हाल ही में ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। यह व्यापक रूप से सभी देशों में व्यवसाय करने की लागत को बढ़ाएगा और मुद्रास्फीति में प्रारंभिक तौर पर कमी लाए बगैर निवेश की गति को धीमा कर देगा।
पांचवीं चुनौती धीमी आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण पैदा हुआ मंदी का खतरा है। विकसित देशों में यह स्थिति मांग में कमी के तौर पर दिखाई देती है, क्योंकि लोग बढ़ती कीमतों की वजह से खरीदारी कम कर देते हैं और इसके परिणामस्वरूप वृद्धि धीमी हो जाती है। इसका नीतिगत समाधान है, लोगों के हाथों में अधिक नगदी।
लेकिन विकासशील देशों में खपत और वृद्धि के इस समीकरण की गुंजाइश बेहद सीमित है, सरकारों के पास संसाधनों की कमी है, लोगों तक नगदी पहुंचाना मुश्किल है। भारत की तरह खाद्य सामग्री से भरपूर अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य वितरण एक नीतिगत कार्रवाई का नतीजा है। भारत को इस मुद्दे को जी-20 के मंच पर रखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि यह समूह खाद्यान्न की कमी से जूझ रही अर्थव्यवस्थाओं पर अतिरिक्त ध्यान दे।
पृथ्वी को हरा-भरा बनाना या फिर प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों को शासन के प्रति अधिक जवाबदेह बनाने जैसी बहसें चलती रहेंगी। अगर एक बार बड़ी चुनौतियों का समाधान हो जाए, तो इन मुद्दों का हल भी आसानी से हो जाएगा।