पूर्व रक्षा मंत्री जसवंत सिंह नहीं रहे। रविवार (26 सितंबर, 2020) को उन्होंने अंतिम सांसें लीं। वह 82 साल के थे। सिंह बीते कुछ वक्त से बीमार थे। यह वही पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं, जो भारत और पाकिस्तान को सिजेरियन प्रसव से हुई जुड़वां संतानें माना करते थे।
दिल्ली स्थित Army Hospital (R&R) के बयान में सोमवार सुबह कहा गया, “पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह आज सुबह छह बजकर 55 मिनट पर नहीं रहे। वह 25 जून को अस्पताल लाए गए थे। उनका सेप्सिस के साथ मल्टीऑर्गन डिस्फंक्शन सिंड्रोम का इलाज चल रहा था। रविवार सुबह उन्हें कार्डियक अरेस्ट आया। उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई है।”
सिंह के निधन पर सोमवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दुख जताया है। पीएम ने ट्वीट कर कहा- जसवंत सिंह ने देश की अच्छे से सेवा की। पहले सैनिक के नाते फिर राजनीति में लंबे जुड़ाव के जरिए।
उन्होंने आगे कहा- अटल सरकार में उन्होंने अहम पोर्टफोलियो संभाले। वित्त, रक्षा और विदेश मामलों की दुनिया में अपनी तगड़ी छाप छोड़ी। मैं उनके जाने से दुखी हूं। उन्हें राजनीति और समाज के मामलों पर उनके अनूठे दृष्टिकोण के लिए याद किया जाएगा। उन्होंने भाजपा को मजबूत बनाने में भी योगदान दिया। मैं हमेशा हमारी बातचीत को याद रखूंगा। उनके परिवार और समर्थकों के प्रति संवेदना। ओम शांति।
राजस्थान के बाड़मेर में तीन जनवरी 1938 को जन्मे सिंह राजपूत परिवार से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने अजमेर के मायो कॉलेज से बीए, बीएससी के अलावा भारतीय सैन्य अकादमी (देहरादून और खड़गवासला) से सैन्य ट्रेनिंग हासिल की थी। 15 साल की उम्र में वह भारतीय सेना में चले गए थे।
1960 के दशक में वह सेना में अफसर थे, जबकि 1980 में वह पहली बार Rajya Sabha के लिए चुने गए। बाद में 1996 में अटल सरकार में वित्त मंत्री बने। हालांकि, 15 दिन ही इस पद पर रह पाए थे, क्योंकि सरकार गिर गई थी। आगे 1998 में जब दोबारा वाजपेयी सरकार बनी, तो उन्हें विदेश मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
बतौर विदेश मंत्री सिंह ने भारत-पाकिस्तान के संबंध सुधारने के लिए बहुत कोशिशें की थीं। 2009 में विभाजन पर उनकी किताब आई थी। नाम था- ‘जिन्ना: इंडिया, पार्टिशन, इंडिपेंडेस’ (Jinnah: India, Partition, Independence)। इस पर खूब हंगामा हुआ था। दरअसल, पुस्तक में सिंह ने नेहरू पटेल की निंदा की थी और जिन्ना की तारीफ। बीजेपी उनकी विचारधारा से सहमत नहीं थी। संघ और शिवसेना भी खफा थे। ऐसे में भाजपा ने उन्हें ने उन्हें निकाल दिया था।
हालांकि, बाद में एलके आडवाणी के दखल और प्रयासों के बाद वह पार्टी में आए। पर हाशिए पर रहे। 2014 के आम चुनाव में उन्हें बाड़मेर से सांसदी का टिकट भी नहीं मिला। आगे अनुशासनहीनता के आरोप पर उन्हें फिर छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था।
वह भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में शांति का सपना संजोए थे। हालांकि, वह फिलहाल अधूरा ही है। मगर उन्होंने इस पर कभी कहा था- भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक ही मां की सिजेरियन प्रसव से पैदा हुई संतानें हैं।