जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक सम्मेलन में शामिल होने के लिए पेरिस रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को इसके प्रभावों और पूरे विश्व की चिंताओं का जिक्र करते हुए कहा कि पृथ्वी के तापमान को नियंत्रण में रखना सबकी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदा और अन्य रूपों में इसके विनाशकारी प्रभावों से निपटने के लिए सरकारों और हर छोटी-बड़ी संस्थाओं को वैज्ञानिक तरीके से काम करना होगा।
प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा-पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन से चिंतित है। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग की डगर-डगर पर उसकी चर्चा भी है, चिंता भी है और हर काम को करने से पहले अब एक मानक के रूप में इसको स्वीकृति मिलती जा रही है। पृथ्वी का तापमान अब बढ़ना नहीं चाहिए। ये हर किसी की जिम्मेदारी भी है, चिंता भी है। और तापमान से बचने का एक सबसे पहला रास्ता है- ऊर्जा संरक्षण।
उन्होंने कहा कि दुनिया के हर कोने से लगातार प्राकृतिक आपदा की खबरें आया करती हैं। न कभी सुना हो और न कभी सोचा हो, ऐसी प्राकृतिक आपदाओं की खबरें आती रहती हैं। प्रधानमंत्री ने कहा- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कितना तेजी से बढ़ रहा है यह अब हम लोग अनुभव कर रहे हैं।
हमारे ही देश में, पिछले दिनों जिस प्रकार से अति वर्षा और वो भी बेमौसमी वर्षा हुई और लंबे अरसे तक वर्षा हुई, खासकर तमिलनाडु में जो नुकसान हुआ है, और अन्य राज्यों को भी इसका असर हुआ है। कई लोगों की जानें गईं। मोदी ने कहा कि जब से संकटों की बातें आई हैं तब हमें इससे निपटने में काफी बदलाव लाने की आवश्यकता हो गई है।
जैविक खेती के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि फसल के अवशेष भी बहुत कीमती और अपने आप में जैविक खाद होते हैं और ऐसे में खेतों में उन्हें आग लगाना ठीक नहीं है क्योंकि इससे जमीन की ऊपरी परत जल जाती है और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। प्रधानमंत्री के इस बयान को ऐसे समय में महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है जब कई रिपोर्टों में पंजाब में खेतों में फसलों के अवशेष को आग लगाने को दिल्ली और हरियाणा में प्रदूषण स्तर बढ़ने से जोड़ा गया है।
मोदी ने कहा कि पूरे हिंदुस्तान में यह हम लोगों की आदत है और परंपरागत रूप से हम इसी प्रकार से अपनी फसल के अवशेषों को जलाने के रास्ते पर चल रहे हैं। एक तो पहले हमें इससे होने वाले नुकसान का अंदाजा नहीं था। सब करते हैं इसलिए हम करते हैं वो ही आदत थी। दूसरा, इसका उपाय क्या होता है उसका भी प्रशिक्षण नहीं था और उसके कारण ये चलता ही गया।
प्रधानमंत्री ने कहा- आज जो जलवायु परिवर्तन का संकट है, उसमें वह जुड़ता गया।
और जब इस संकट का प्रभाव शहरों की ओर आने लगा तब आवाज सुनाई देने लगी। हमें हमारे किसान भाई-बहनों को प्रशिक्षित करना पड़ेगा, उनको सत्य समझना पड़ेगा कि फसल के अवशेष जलाने से हो सकता है कि समय बचता होगा, मेहनत बचती होगी। अगली फसल के लिए खेत तैयार हो जाता होगा। लेकिन ये सच्चाई नहीं है। फसल के अवशेष भी बहुत कीमती होते हैं। वह अपने आप में जैविक खाद होता है। हम उसको बर्बाद करते हैं।