किसानों की मांगें पूरी होने के साथ ही आंदोलन स्थगित हो गया, लेकिन दिल्ली सीमा पर हजारों ऐसे पीड़ित हैं, जिनकी सुनवाई कहीं नहीं हो रही है। एक साल पहले किसान आंदोलन के साथ ही दिल्ली के तीनों प्रमुख सीमा पर स्थित दुकानदार, ट्रांसपोर्टर, छोटे उद्यमी, मालों में खुले बड़े स्टोर से लेकर रोजगार करने वाले हजारों लोगों के जिंदगी बेपटरी हो गई। सीमा पर सड़क बंद होने के साथ ही बाहरी लोगों की आवाजाही न होने और सार्वजनिक सुविधाओं की कमी ने यहां के स्थानीय निवासियों की जिंदगी को मुश्किल बना दिया।

सिंघु सीमा पर परचून की दुकान चलाने वाले मोनू कहते हैं कि यहां करीब दो किलोमीटर का क्षेत्र एक साल से बंद पड़ा है। इस कारण दुकानदार से लेकर अन्य लोगों जिंदगी बेपटरी हो गई है। कमाई घटने से घर चलाना मुश्किल हो रहा है। उनका कहना है कि किसानों की सुनवाई तो हो गई, हमारी सुनवाई कब होगी। इसी तरह, प्रिटिंग का काम करने वाले प्रवीण मायूसी से जवाब देते हैं कि सरकार ने किसानों की मांग मान ली, अब हमारी कोई सुनेगा! उन्होंने बताया कि किसान आंदोलन में काम कम होने से चार लोगों को हटाना पड़ा।

दिल्ली सीमा के तीनों प्रदर्शन स्थल पर किसानों ने स्थायी व अस्थायी ढांचे को हटाने का काम शुरू कर दिया है। आंदोलन की समाप्ति के साथ ही बाकी
सीमा पर बड़े ट्राले, ट्रैक्टर व ट्रालियां की अचानक मांग बढ़ गई। युवा किसान ट्रैक्टर पर जश्न मनाते दिखे। रंग-बिरंगी रोशनी से जगमग ट्रैक्टर प्रदर्शन स्थल से रवाना हुए और उनमें जीत का जश्न मनाने वाले गीत बज रहे थे। बुजुर्गों ने भी रंग-बिरंगी पगड़ियां पहनी थीं और ‘बोले सो निहाल’ का नारा लगा रहे थे।

पुरुषों ने कपड़े और गद्दे बांधे और उन्हें ट्रकों पर लादा, महिलाओं ने दोपहर का भोजन तैयार किया। टूटे हुए ढांचे के चारों ओर कार्ड बोर्ड, थर्मोकोल, लोहे के तार की जाली, पीवीसी शीट और मच्छरदानी बिछा दी गई है। युवाओं ने घर वापसी की तैयारी में ट्रैक्टरों का निरीक्षण किया, ट्रालियों की सफाई की। वे दोपहर का भोजन, चाय या नाश्ता करने के लिए रुके और फिर वापसी की तैयारी में लग गए।