दिल्ली की सीमाओं पर हजारों किसान कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। सोमवार को कुछ किसान यूनियन ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात करके इन कानूनों का समर्थन किया। इन संगठनों में शेतकारी संगठन भी था। जानेमाने किसान नेता रहे शरद जोशी ने इस संगठन की नींव रखी थी और यह महाराष्ट्र से है।

किसानों के मुद्दे पर काम करने से पहले जोशी यूनाइटेड नैशन्स स्विट्जरलैंड में काम कर रहे थे। स्वदेश आने के बाद पुणे जिले में खेड़ तालुका के पास उन्होंने जमीन खरीदी और फुल टाइम किसान हो गए। 1979 की बात है जब प्याज की अच्छी कीमत मांग रहे किसानों ने पुणे-नासिक हाइवे को जाम कर दिया था। इसी आंदोलन से शेतकारी संगठन का जन्म हुआ। इस दौरान लोगों ने अपने प्याज को सड़कों पर फेंक दिया था।

जोशी का मानना था कि जब तक ग्रामीण भारत की समस्याओं को शहर में जाकर नहीं उठाया जाएगा इसका समाधान नहीं निकलेगा। इसीलिए उनका विरोध प्रदर्शन शहरी इलाकों में हुआ करता था और इससे वहां का जनजीवन प्रभावित होता था। कॉटन के प्रोक्योरमेंट में राज्य का एकाधिकार और गन्ने की अच्छी कीमतों के लिए किसानों ने हाइवे जाम किया और रेलवे ट्रैक पर प्रदर्शन किए।

जोशी का कहना था कि बाजारों तक किसानों की सीमित पहुंच ही उनकी समस्या का कारण है। उनका कहना था कि बाजार खुले होने चाहिए और किसानों के उत्पाद की सही कीमत के लिए यहां सीधा कॉम्पटिशन होना चाहिए। उनका कहना था कि सरकार ग्राहकों को सस्ते में सामान देने के लिए जानबूझकर किसानों की फसल की कीमत कम कर देती है।

1984 में जोशी ने कॉटन को लेकर महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव कॉटन मार्केटिंग फेडरेशन की मोनोपॉली के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी। उस समय केवल फेडरेशन ही रूई की खऱीद कर करता था। किसानों को कई दिनों तक अपने उत्पाद को बेचने के लिए लाइन लगानी पड़ती थी। इस संगठन पर भ्रष्टाचार के भी आरोप थे।

जोशी और उनके समर्थक महाराष्ट्र के बॉर्डर पर पहुंच गए थे और सरकारी नियमों का उल्लंघन कर रहे थे। उनका आंदोलन सफल हुआ और सरकार ने कानून वापस ले लिया। उस समय तीन बड़े किसान नेता थे, महेंद्र सिंह टिकैत और एमडी नंजुंदास्वामी। इनमें से केवल जोशी ने ही वैश्वीकरण और कृषि में MNCs  की एंट्री का समर्थन किया था। जोशी ने 1955 में भारत के वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन के साथ जुड़ने पर भी प्रशांसा की थी।