कृषि विधेयकों के खिलाफ देश के किसान सड़कों पर उतरे हुए हैं। किसान एमएसपी और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिग के मुद्दे पर आशंकित हैं और यही वजह है कि किसान इन विधेयकों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। किसानों का ये भी आरोप है कि नए विधेयकों से मंडिया खत्म हो सकती हैं। हालांकि सरकार की तरफ से इससे इंकार किया जा रहा है।
पत्रकार रवीश कुमार ने भी अपनी एक रिपोर्ट में भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साल 2019 में दिए गए एक बयान की याद दिलायी, जिसमें उन्होंने कहा था कि APMC मंडियों को समाप्त कर देना चाहिए। निर्मला सीतारमण ने उक्त बात दिल्ली में नाबार्ड के एक कार्यक्रम के दौरान कही थी। सीतारमण ने कहा था कि ‘इसके लिए राज्यों को समझाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मैं ई-नाम पर जोर देना चाहती हूं और कई राज्य सरकारें इस पर काम कर रही हैं।’
रवीश कुमार ने अपनी रिपोर्ट में ये भी बताया कि किस तरह से एग्रीकल्चर मार्केटिंग की राशि सरकार ने बजट में घटा दी है और साथ ही अब टैक्स लगाकर भी मंडियों को खत्म किया जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में भी मंडियों से अलग-अलग टैक्स हटाने की मांग की थी।
बता दें कि किसानों में एमएसपी व्यवस्था को लेकर भी आशंका है और उन्हें लगता है कि एमएसपी व्यवस्था खत्म हो सकती है। हालांकि सरकार ने साफ किया है कि एमएसपी पहले की तरह ही लागू रहेगा। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर भी किसान डरे हुए हैं।
कृषि विधेयक के खिलाफ विपक्षी पार्टियां भी सरकार के खिलाफ लामबंद हो गई हैं। वहीं एनडीए की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने भी सरकार से अपना नाता तोड़ लिया है। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने भी नए कृषि सुधार विधेयकों के संसद से पारित होने को देश के संघीय ढांचे पर सबसे बड़ा हमला बताया है और कहा है कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किस दिशा में देश को ले जाना चाहते हैं?