विनोद के शाह

कानूनी बंदिशों का अनुपालन कराने के बजाय सस्ता वैकल्पिक रास्ता सुझाकर गैर-कानूनी कारोबार के लिए आसान मार्ग सुलभ कराने वाले जिम्मेदार शासकीय सेवक भी अपराध में बराबर के साझेदार होते हैं। नियमों को दरकिनार कर आसान अनुमति या अपने निगरानी क्षेत्र में गैर-कानूनी रूप से संचालित कारोबार या गतिविधियों पर आंखें बंद कर हादसों की जमीन तैयार कराने वाले शासकीय सेवकों पर आपराधिक कानूनी धाराओं में प्रकरण दर्ज करने के बजाय, संपूर्ण कार्यपालिका बचाव की प्रक्रिया में सक्रिय हो जाती है।

अंतत: होता यह है कि हादसे-दर-हादसे होते रहते हैं। वहीं, आपराधिक प्रमाणों में कटौती या हेराफेरी करने से प्रत्यक्ष मुख्य अपराधी भी सजा से बच निकलता है। सिर्फ आम जनमानस हादसों की चपेट में आकर खमियाजा भुगतने को मजबूर होता है। लापरवाही की सजा न मिलने का ही परिणाम है कि जिम्मेदार शासकीय सेवक प्रत्येक हादसे को लेकर और उसके बाद भी तमाशबीन बने रहते हैं।

कानून के पालन में ढिलाई का परिणाम है कि मध्यप्रदेश के हरदा जिले में अवैध पटाखा कारखाने में हुए भीषण विस्फोट से तेरह मौतें हुईं और दो सौ से अधिक घायल हो गए। घटनास्थल के आसपास एक किमी क्षेत्र पूरी तरह वीरान हो गया। घायलों के शरीर से बारूद, धातुओं और पत्थरों के टुकड़े निकल रहे थे। विस्फोटक सामग्री घायलों के फेफड़ों में तक घुस चुकी थी।

घटना स्थल के पास सड़कों पर खड़े ट्रकों और भारी वाहनों के परखच्चे उड़ गए थे। सन 2015 से यह कारखाना अवैध रूप से कृषि भूमि पर चल रहा था। बारूद कारखाने के स्थान पर फसलों का उत्पादन दिखाकर उन्हे शासकीय समर्थन मूल्य पर तौला जा रहा था। इतना ही नहीं, 2015 के बाद इस कारखाना भूमि का फसल क्षति बीमा दावा दिलाने का कार्य भी तत्कालीन शासकीय तहसील के सेवकों द्वारा बखूबी किया गया।

संचालकों के पास सीमित मात्रा में पटाखा भंडारण का लाइसेंस था। मगर तय मात्रा से कई गुना अधिक भंडारण के साथ ही पटाखों का अवैध निर्माण सतत जारी था। पचास से अधिक बाल मजदूर रोजाना दो सौ रुपए की दिहाड़ी पर कार्यरत थे। भंडारण की अनुमति के तुरंत बाद जुलाई 2015 में कारखाने में हुए हादसे में दो मजदूरों की मौत हुई थी। उक्त घटना के समय प्रशासन के तत्कालीन एसडीएम ने सुरक्षा मानकों में गंभीर चूक का हवाला अपनी जांच रिपोर्ट में दिया था।

रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन जिलाधीश ने बारूद गोदाम संचालन पर रोक लगाकर ताले जड़ दिए थे। इस विस्फोट और मजदूरों की मौत के प्रकरण में सन 2021 में स्थानीय जिला अदालत ने दोषी करार देते हुए कारखाना संचालक को दस वर्ष की कैद और अर्थदंड लगाया था। मगर उच्च न्यायालय से मिली जमानत और तत्कालीन संभागीय आयुक्त ने जिलाधीश के आदेश के विरुद्ध की गई अपील में तालाबंदी आदेश पर स्थगन देकर कारखाना मालिक को विस्फोटक भंडारण की अनुमति दे दी थी। उसके बाद आगे सुनवाई भी कभी नहीं हुई है।

विस्फोटक भंडारण की अनुचित मात्रा और पटाखा अवैध निर्माण तबसे निरंतर जारी था। मगर स्थगन आदेश के बाद आयुक्त कार्यालय में प्रकरण की अगली सुनवाई अब तक नहीं हो सकी है। सरकारी लापरवाही और स्थानीय प्रशासन की दूसरी आपराधिक भूमिका यह भी रही है कि उक्त अवैध कारखाना भवन के पास ही सरकारी खर्चे पर प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत कुटी आबंटन और निर्माण कराकर पटाखा कारखाने के मजदूरों की आवास कालोनी विकसित कर दी गई है। इस कालोनी के मजदूरों को शासकीय मुफ्त राशन और आयुष्मान योजना से भी जोड़ा गया था। जबकि अधिकांश मजदूर तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल से हैं। हादसे के बाद अधिकांश मजदूर परिवार इस कालोनी से लापता हो गए हैं।

शासकीय लापरवाही यह भी है कि जिस संभागीय आयुक्त ने कलेक्टर के आदेश पर स्थगन देकर गोदाम के पुन: संचालन की अनुमति दी थी, वे इंदौर संभाग के वर्तमान आयुक्त के पद पर आसीन होकर घटना की जिम्मेदारी से स्वयं को पूर्णतया मुक्त मानते हैं। गोदाम और कारखाना संचालकों के पास पर्यावरण संबंधी कोई भी लाइसेंस नहीं था।

देशभर में बगैर वस्तुकर चुकाए चलाए जा रहे अवैध पटाखा कारोबार पर पिछले वर्ष सेवा एवं वस्तुकर अधिकारियों ने बिक्रीकर चोरी के तहत 57 लाख रुपए का दंड गोदाम मालिकों पर लगाया था। मगर इसके बाद भी स्थानीय प्रशासन और संबंधित विभाग इस अवैध कारोबार के खिलाफ सख्ती नहीं बरत सके थे। इस सच्चाई को प्रशासनिक लापरवाही कहना उचित होगा या अनुचित व्यापार लाभ देने का प्रशासनिक संरक्षण? यह शासन को तय करना पड़ेगा। दोनों ही तरह के हालात जिम्मेदार अधिकारियों को दंड की परिधि में खड़ा करने वाले हैं।

ऐसा नहीं कि हरदा शहर का यह दिल दहलाने वाला हादसा देश या प्रदेश की पहली घटना हो, जिसके कारण सरकार को निर्णय लेने में समय लग रहा है। 31 अक्तूबर 2023 को मप्र के ही दमोह जिले के भीड़भाड़ वाले बाजार में स्थित पटाखा फैक्ट्री में हुए धमाकों में पांच लोगों की मौत हुई थी। प्रदेश के ही मुरैना जिले में 20 अक्तूबर, 2023 को पटाखा फैक्ट्री में आगजनी और धमाके में चार लोगों की मौत हुई थी।

प्रदेश के झाबुआ जिले की पटेलावद तहसील में नौ वर्ष पूर्व बस अड्डे के नजदीक स्थित विस्फोटक सामग्री के एक गोदाम में हुए धमाकों में 79 लोग काल कवलित और सैकड़ों लोग अपंग हो गए थे। मगर अब सारे अपराधी दोष मुक्त हो गए हैं। सरकार ने भी तत्कालीन पुलिस थाना प्रभारी की मात्र सोलह सौ रुपए की एक पदोन्नति रोक कर अपने न्याय का डंका बजवा लिया था।

ये सभी मामले प्रशासनिक लापरवाही और मिलीभगत के परिणाम थे। मगर दोषी प्रशासनिक अधिकारी-कर्मचारी हमेशा दंड के दायरे से बाहर ही रहे हैं। सरकार द्वारा घटना के तुरंत बाद दोषी करार देकर निलंबित किए जाने वाले अधिकारी और कर्मचारी पुन: बहाल कर दिए गए। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की पटाखा फैक्ट्री में लापरवाही से मौत के हालात रहे हों या तमिलनाडु के शिवकाशी में प्रतिवर्ष होने वाले पटाखा कारखानों में आग और धमाकों से मासूमों की मौतें, राज्य सरकारें मौतों का मामूली मुआवजा बांटकर अपने कर्तव्य से विमुक्त हो जाती हैं।

प्रत्येक घटना के बाद सरकारें यही कहती नजर आती हैं कि भविष्य में घटनाओं पर रोक लगाने के साथ दोषियों पर कड़े दंड की कार्यवाही होगी! लेकिन सजा का लेखाजोखा जनता प्रत्येक दफा देखती आ रही है। घटना की जांच के लिए बनाए जाने वाले आयोगों और समितियों की रपटों को सार्वजनिक करने का प्रयास भी इसलिए नहीं होता कि जनता घटना को भूल चुकी है।

देशभर में अधिकांश पटाखा निर्माण और विस्फोटक भंडारण गैर-कानूनी ढंग से संचालित होकर जीएसटी चोरी, पर्यावरण नुकसान, बाल मजदूरों का शोषण और मानवाधिकारों के हनन से जुड़ा है। लेकिन निगरानी से जुड़ा प्रशासनिक तंत्र और जिम्मेदार संस्थाए इस सुरक्षा संबंधी अतिसंवेदशील मामले में कठघरे में हैं।