लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलेक्टोरल बॉन्ड को अवैध बता दिया और स्टेट बैंक द्वारा मोहलत मांगने के बावजूद मंगलवार 12 मार्च को उसे चुनावी चंदे का सारा डाटा चुनाव आयोग (Electoral Bonds Data) के साथ शेयर करना ही होगा। SBI ने मांग की थी कि काम जटिल है इसलिए 30 जून 2024 तक का समय चाहिए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह मांग खारिज कर दी है अब सवाल यह है कि आखिर इन इलेक्टोरल बॉन्ड्स का रहस्य जब खुलेगा तो किन किन राजनीतिक दलों की मुश्किलें बढ़ेंगी।
दरअसल, चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पादरीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर 15 फरवरी को फैसला दिया था कि ये पूरी तरह अवैध हैं और इसका डाटा स्टेट बैंक को चुनाव आयोग के साथ शेयर करना होगा, जबकि चुनाव आयोग चंदे की जानकारी सार्वजनिक करेगा।
बता दें कि इलेक्टोरल बॉन्ड 2018 की 29 जनवरी को कानूनी तौर पर लागू हुए थे। स्टेट बैंक की 29 ब्रांचों से अलग-अलग रकम के इलेक्टोरल बॉन्ड्स जारी किए जाते थे, ये रकम एक हजार से लेकर एक करोड़ रुपये तक की होती थी जिसे कोई भी अपनी पसंदीदा पार्टी के मुताबिक चुन सकता था लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस चुनावी चंदे की प्रक्रिया को अवैध करार दिया है, जिससे सभी राजनीतिक दलों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
राहुल ने फिर बोला मोदी सरकार पर हमला
बता दें कि इस मुद्दे पर लगातार विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर रहा है और जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर मोहलत मांगी तब भी विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि एक साजिश के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी छिपाई जा रही है। इस मुद्दे पर आज जब सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने फिर मोदी सरकार पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि अब नरेंद्र मोदी के ‘चंदे के धंधे’ की पोल खुलने वाली है! 100 दिन में स्विस बैंक से काला धन लाने का वायदा कर सत्ता में आई सरकार अपने ही बैंक का डेटा छिपाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सिर के बल खड़ी हो गई। Electoral Bonds भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला साबित होने जा रहा है, जो भ्रष्ट उद्योगपतियों और सरकार के नेक्सस की पोल खोल कर नरेंद्र मोदी का असली चेहरा देश के सामने लेकर आएगा।
राहुल ने एक्स पर अपने पोस्ट में लिखा कि क्रोनोलॉजी स्पष्ट है -चंदा दो- धंधा लो, चंदा दो-प्रोटेक्शन लो! उन्होंने कहा कि चंदा देने वालों पर कृपा की बौछार और आम जनता पर टैक्स की मार, यही है भाजपा की मोदी सरकार।
कहां होती है इलेक्टोरल बॉन्ड्स की डिटेल?
जानकारी के मुताबिक इसकी सारी जानकारी एक ही ब्रांच में अलग-अलग रखी जाती है। एसबीआई का कहना था कि डोनर्स और रिसीवर्स की डिटेल्स अलग-अलग सीलबंद लिफाफों में मुंबई की मेन ब्रांच में रखी गई है जिसकी डिटेल निकालने में मुश्किल होगी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को कोई भी रियायत नहीं दी है।
सूचना के अधिकार का उल्लंघन है गोपनीयता
बता दें कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 2019 में ही चुनौती दी गई थी, और अब जब यह अवैध घोषित हुई है तो कोर्ट का कहना है कि इस मामले में गोपनीयता अनुच्छेद 19(1) और सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। ऐसे में इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी पब्लिक करनी ही होगी। कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर सेट टाइमलिमिट के तहत सुप्रीम कोर्ट जानकारी नहीं दी जाती है तो यह कोर्ट की अवमानना होगी जिसके चलते स्टेट बैंक के खिलाफ कोर्ट एक्शन भी ले सकता है।
इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) का दावा है कि मार्च 2018 से जनवरी 2024 के बीच राजनीतिक दलों ने चुनावी बॉन्ड के जरिए 16,492 करोड़ रुपये का चंदा हासिल किया है।
चुनाव आयोग में दाखिल 2022-23 के लिए ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी को 1,294 करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिला था। उसकी कुल कमाई 2,360 करोड़ रुपये रही, यानी BJP की कुल कमाई में 40 फीसदी हिस्सा इलेक्टोरल बॉन्ड का रहा।