Electoral Bond: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को लेकर गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने सूचना के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह योजना नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने इस योजना को मनमाना करार दिया और राजनीतिक दलों और दानदाताओं के बीच बदले की भावना पैदा करने के इसके प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आज से एक महीने के भीतर चुनावी बॉन्ड दाताओं के नाम पता चल जाएंगे? चुनाव आयोग के अधिकारियों को भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए 13 मार्च तक यह काफी हद तक संभव हो जाएगा।

चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कहा, ‘हमें अभी तक आदेश को विस्तार से पढ़ने का अवसर नहीं मिला है, लेकिन यह हमारे लिए बिल्कुल स्पष्ट है कि एसबीआई को चुनावी बांड खरीदने वालों के नाम साझा करने होंगे। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं है।’

अधिकारी ने कहा कि इस समय जो अनिश्चित बना हुआ है वह यह है कि क्या एसबीआई द्वारा साझा किया गया डेटा ऐसे प्रारूप में प्रस्तुत किया जाएगा, जो बांड खरीदार को उसी बांड प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल से तुरंत मिलान करने में मदद करेगा। उन्होंने कहा कि भले ही प्रारूप पाठक-अनुकूल है या नहीं, दाता और प्राप्तकर्ता की पहचान का पता लगाना असंभव नहीं होगा। इसका पता लगाने में रुचि रखने वाले लोगों के लिए इसका मतलब बहुत काम का हो भी सकता है।

गुरुवार को अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक को अपनी ब्रांच से खरीदे गए सभी चुनावी बांडों का विवरण साझा करने का निर्देश दिया, जिसमें खरीद की तारीख, खरीदार का नाम और चुनावी बांड का मूल्य शामिल है। इसके अलावा, बैंक को राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बांड का विवरण प्रदान करने का भी निर्देश दिया गया है, जिसमें नकदीकरण की तारीखें और राशि भी शामिल है।

गौरतलब है कि एसबीआई के पास चुनावी बांड खरीदने वाले सभी लोगों के नाम, आधार और पैन कार्ड विवरण हैं, भले ही वे किसी भी मूल्यवर्ग के क्यों न हों।

चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कहा कि इस पर टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी कि क्या आयोग प्राप्त विवरण के अनुसार एसबीआई द्वारा साझा किए गए विवरणों का खुलासा करेगा, या क्या आयोग उन्हें ऐसे तरीके से प्रस्तुत करना चाहेगा जो आसानी से समझ में आ सके।

चुनावी बांड पर सुप्रीम कोर्ट में आयोग का हमेशा यही रुख रहा है कि इससे पारदर्शिता को नुकसान पहुंचता है। 2019 में सुप्रीन कोर्ट को सौंपे गए अपने हलफनामे में चुनाव निगरानी संस्था ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि राजनीतिक फंडिंग से संबंधित कई कानूनों में किए गए बदलावों से पारदर्शिता पर “गंभीर असर” होगा। अधिकारी ने कहा कि गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला चुनावी बॉन्ड पर चुनाव आयोग की दीर्घकालिक स्थिति (लंबे वक्त) को मजबूत करता है। हम पारदर्शिता के लिए खड़े हैं और यह आदेश उसी का समर्थन करता है।