चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का मानना है कि जीवन में सफलता का मतलब पैसा, नाम या पॉवर जीतना ही नहीं है, बल्कि लोगों के जीवन में खुशियां लाने में आप क्या योगदान कर सकते हैं यह भी है। उन्होंने कहा कि “सभी आम लोगों की तरह मैं भी एक आम इंसान हूं, लेकिन मेरे लिए सफलता के मायने इस पर निर्भर करता हैं कि आम लोग मुझसे और मेरे काम से कितना प्रभावित हैं। आप को कोई करिश्माई व्यक्तित्व की जरूरत नहीं है लेकिन लोगों के जीवन में करिश्मा करने की सोच जरूर होनी चाहिए।”

इंडियन एक्सप्रेस के कार्यक्रम “ई-अड्डा” में उन्होंने कहा कि मैं कुछ असाधारण नहीं सोचता हूं, लेकिन लोगों के लिए बेहतर और तरक्की वाला काम करना चाहता हूं। उन्होंने कहा कि वह महात्मा गांधी और लालकृष्ण आडवानी से प्रभावित हैं। दोनों नेताओं के काम में वह बात झलकती है, जो मेरे लिए सफलता के मायने हैं।

वे बोले कि भारत में चुनाव से पहले हर नेता कहता है कि वह और उसकी पार्टी भारी बहुमत से जीतने जा रही है, लेकिन चुनाव हारने के बाद वे कहते हैं कि मैं इसलिए हार गया क्योंकि मैं लोगों के बीच पहुंच नहीं सका, मेरे बारे में लोगों ने गलत धारणा बना ली थी। मैं बिल्कुल जीत ही रहा था कि बाद में सब कुछ हिंदू-मुस्लिम होने लगा। इसकी वजह से मैं हार गया।

प्रशांत किशोर ने कहा कि केवल हिंदू-मुस्लिम ही किसी के लिए जीत-हार तय कर रहा है, यह कहना गलत होगा। उन्होंने बताया कि मान लीजिए कि सब लोग पोलराइज हो गए और सब लोगों का भगवाकरण हो गया, लेकिन फिर भी भाजपा ने 38 फीसदी वोट पाया। उन्होंने यूपी का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां 80 फीसदी हिंदू हैं और बीस फीसदी अल्पसंख्यक हैं। आधे लोग मतदान करने जाते हैं, भाजपा वहां जिताऊ पार्टी है। भाजपा को 38 फीसदी वोट मिले। अगर ध्रूवीकरण हुआ तो सब वोट भाजपा को मिलने चाहिए थे। लेकिन भाजपा आधे से भी कम वोट पा सकी।

इसलिए यह कहना कि पोलराइजेशन की वजह से जीत हार हुई है, सही नहीं है। यह एक कारण जरूर है, जिसका असर पड़ता है। कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव का तौर-तरीका अलग होता है। राज्यों के चुनाव में उपक्षेत्रवाद (Sub Regionalism) हावी रहता है। बिहार के चुनाव में यह दिखा कि बिहार पर किसी बिहारी को ही राज करना चाहिए। जबकि केंद्र के चुनाव में हिंदुत्व, नेशनलिज्म, लाभार्थी और किस हद तक आपको लाभ मिला, इसका प्रभाव दिखा।