Jammu Kashmir High Court on ED-CBI: सीबीआई और ईडी में कौन सुपीरियर है? शायद इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को होगी। लेकिन जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए यह साफ कर दिया कि दोनों केंद्रीय एजेंसियों पर कौन सुपीरियर है। हाई कोर्ट ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) किसी भी तरह से केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से सुपीरियर नहीं है। साथ ही वह (ED) सीबीआई द्वारा की गई जांच के खिलाफ अपील नहीं कर सकता।
जस्टिस संजीव कुमार ने कहा कि यह जरूरी है कि सीबीआई के फैसले का सम्मान ईडी को करना चाहिए, जब तक कि इसमें आपराधिक क्षेत्राधिकार वाले सक्षम न्यायालय द्वारा परिवर्तन या संशोधन न किया जाए।
हाई कोर्ट ने कहा, ‘ईडी किसी भी तरह से सीबीआई से उच्चतर प्राधिकरण या जांच एजेंसी नहीं है, न ही इसे जांच और उसके बाद निकाले गए निष्कर्ष के खिलाफ अपील करने की शक्ति या अधिकारिता दी गई है। पीएमएलए के तहत अपराधों के संबंध में एक समानांतर जांच एजेंसी होने के नाते प्रवर्तन निदेशालय को पीएमएलए के तहत अपराधों के अलावा अन्य अपराधों के संबंध में किसी अन्य जांच एजेंसी द्वारा की गई जांच और उक्त एजेंसी द्वारा निकाले गए निष्कर्ष को स्वीकार करना चाहिए।’
कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन के धन के कथित दुरुपयोग के संबंध में पूर्व जम्मू-कश्मीर मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और अन्य के खिलाफ धन शोधन के मामले को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
ईडी ने तर्क दिया था कि वह सीबीआई द्वारा पूर्ववर्ती मामले में दायर आरोपपत्र पर स्वतंत्र रूप से गौर कर सकता है और अपने धन शोधन मामले को उचित ठहराने के लिए अपराधों के संबंध में एक अलग निष्कर्ष पर पहुंच सकता है।
धन शोधन का मामला किसी पूर्व अपराध या पुलिस या सीबीआई जैसी किसी अन्य जांच एजेंसी द्वारा दर्ज की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के आधार पर दर्ज किया जाता है।
हालांकि, प्रवर्तन निदेशालय (ED) को अभियुक्त के विरुद्ध पीएमएलए कार्यवाही आरंभ करने का अधिकार केवल तभी है, जब मुख्य एजेंसी ने कोई ऐसा अपराध दर्ज किया हो, जो धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत उल्लिखित अनुसूचित अपराधों में शामिल हो।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने हाई कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि हालांकि सीबीआई ने वर्तमान मामले में किसी अनुसूचित अपराध का उल्लेख नहीं किया है, लेकिन ईडी का मानना है कि सीबीआई के आरोपपत्र में ही अनुसूचित अपराधों के होने का खुलासा हुआ है।
हाई कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि प्रवर्तन निदेशालय किसी व्यक्ति के खिलाफ महज इस धारणा के आधार पर पीएमएलए की कार्यवाही नहीं कर सकता कि उसकी संपत्ति अपराध से अर्जित की गई है। इसने इस बात पर जोर दिया कि एक समानांतर जांच एजेंसी होने के नाते ईडी को अन्य एजेंसी द्वारा की गई जांच तथा संबंधित अपराधों के संबंध में निकाले गए निष्कर्षों को स्वीकार करना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय को किसी ऐसी कार्रवाई के परिणाम को पहले ही रोकने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिसे आरोप/मुक्ति के स्तर पर अभी सक्षम न्यायालय द्वारा शुरू किया जाना है। कोर्ट ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि इस तथ्य के बावजूद कि अनुसूचित अपराध के लिए आपराधिक क्षेत्राधिकार वाले सक्षम न्यायालय के समक्ष कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है या आरोप-पत्र दायर नहीं किया गया है, प्रवर्तन निदेशक अभी भी पीएमएलए की धारा 3/4 के तहत धन शोधन के अपराध के लिए पंजीकरण कर सकते हैं और अभियोजन शुरू कर सकते हैं, इस धारणा पर कि जांच एजेंसी (सीबीआई) द्वारा एकत्र की गई सामग्री अनुसूचित अपराध के किए जाने का खुलासा करती है”।
कोर्ट ने आगे कहा कि ईडी को आपराधिक क्षेत्राधिकार वाले सक्षम न्यायालय के क्षेत्राधिकार को ग्रहण करने तथा मामले की जांच करने वाली सीबीआई द्वारा निकाले गए निष्कर्षों से भिन्न निष्कर्ष पर पहुंचने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
इस प्रकार, कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि दोनों एजेंसियों को सामंजस्य बनाए रखना चाहिए तथा विरोधाभासी रुख से बचना चाहिए। कोर्ट ने कहा, “सद्भाव बनाए रखने और अपने स्वतंत्र क्षेत्रों में काम कर रही दो जांच एजेंसियों के विरोधाभासी रुख से बचने के लिए यह आवश्यक है कि प्रवर्तन निदेशालय सीबीआई के निर्णय का सम्मान करे, जब तक कि इसे आपराधिक क्षेत्राधिकार वाले सक्षम न्यायालय द्वारा परिवर्तित या संशोधित न किया जाए। “