मनीष कुमार चौधरी
डिजिटल परिवर्तन उपभोक्ता व्यवहार को भी बदल रहा है, जो 2023 में खुदरा उद्योग के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकता है। भारतीय उपभोक्ता, जो किसी एक चीज पर समझौता करने से पहले कई चीजों को आजमाता है, उसकी झोली में स्मार्टफोन या डिजिटल दुनिया तक पहुंच के अलावा और भी बहुत कुछ है। इससे कुछ अन्य व्यापक चिंताएं भी पैदा हो रही हैं कि भारत की आर्थिक वृद्धि का लाभ कुछ कंपनियों और उनके अरबपति मालिकों के हाथों में केंद्रित हो रहा है।
भारत में खरीदारी का तरीका तेजी से बदल रहा है। आनलाइन खरीद-बिक्री यानी ई-कामर्स ने व्यवसाय की धारणा बदल दी है। इसने हर उस व्यक्ति को प्रभावित किया है, जो व्यवसाय का हिस्सा था या है। चाहे वह उपभोक्ता हो, विक्रेता, विज्ञापनदाता या स्वयं व्यवसाय माडल हो। इंटरनेट पर कुछ भी खरीदा जा सकता है।
भारत के नौ हजार अरब डालर के खुदरा बाजार का केवल छह फीसद ई-कामर्स से आता है, इसके बावजूद यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में एक है। वर्ष 2022 में भारत में बीस करोड़ लोगों ने आनलाइन कुछ न कुछ खरीदा, जबकि कुछ साल पहले यह संख्या दस लाख से भी कम थी। हालांकि भारत में ‘बिजनेस टू बिजनेस ई-कामर्स बाजार’ अब भी एक खरब अमेरिकी डालर के बाजार के एक फीसद से भी कम है।
1.4 अरब की आबादी वाले देश में, जहां अर्थव्यवस्था दुनिया के किसी भी अन्य हिस्से की तुलना में तेजी से बढ़ रही है, कंपनियों और विश्लेषकों का कहना है कि ये आंकड़े अब भी केवल सतही तौर पर दिख रहे हैं। 2027 तक 170 अरब डालर के बाजार में आनलाइन खरीदारी करने वालों की संख्या पचास करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है।
ई-कामर्स का अचानक बढ़ना इसलिए भी उल्लेखनीय है कि भारतीय लोगों के खरीदारी करने के तरीके में दशकों से कोई बदलाव नहीं आया है। पश्चिम के विपरीत, जहां विशाल ‘सुपरमार्केट चेन’ एकाधिकार रखती हैं, वहीं भारत ने खरीदारी के अपने स्थानीय तरीके को बरकरार रखा है। यानी ताजा उपज मुख्य रूप से स्थानीय बाजारों और सब्जी विक्रेताओं से खरीदी जाती है। अन्य आवश्यक वस्तुएं अक्सर देश की 1.1 करोड़ किराना दुकानों, पड़ोस की दुकानों से खरीदी जाती हैं, जिन्हें अक्सर भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है।
दस वर्षों से इस क्षेत्र पर दो अमेरिकी कंपनियों का वर्चस्व रहा है। वे न केवल आनलाइन बाजार में लगभग पचहत्तर फीसद हिस्सेदारी रखती हैं, बल्कि भारत में वाणिज्यिक शृंखला एकाधिकार की कमी को देखते हुए वे कुल मिलाकर देश के दो सबसे बड़े बाजार के खिलाड़ी भी हैं। फिर भी ई-कामर्स परिदृश्य बदल और तेजी से विस्तार कर रहा है, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था, जो दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लगातार बढ़ रही है। रेस्तरां के भोजन और फैशन ब्रांडों से लेकर इलेक्ट्रानिक्स, किराने का सामान और दवाओं तक सब कुछ तुरत-फुरत वितरित करती हैं, न केवल शहर के केंद्रों में, बल्कि उससे परे भी सर्वव्यापी हो गई हैं।
ई-कामर्स कंपनियों के अनुसार, उनकी अधिकांश वृद्धि उन छोटे भारतीय शहरों से आती है, जिनकी आबादी बीस हजार से एक लाख के बीच है। जाहिर है कि आनलाइन खरीदारी अब केवल अमीर शहरी अभिजात वर्ग का शगल नहीं रह गया है। यह उछाल सस्ते इंटरनेट तक पहुंच के विस्तार से संभव हुआ है। सोशल मीडिया ने भी सभी सामाजिक तबके के लोगों को नई चीजों से अवगत कराया है।
भारत में 65.9 करोड़ लोगों के पास स्मार्टफोन हैं और मोबाइल इंटरनेट डेटा की कीमत दुनिया में सबसे कम है। 2025 तक एक अरब भारतीयों की इंटरनेट तक पहुंच होने की उम्मीद है और उनमें से 33 फीसद आनलाइन खरीदार होंगे। भारत के श्रेणी-3 और श्रेणी-4 शहरों का बहुत तेजी से डिजिटलीकरण हो रहा है। ग्रामीण भारत में भी इंटरनेट की पहुंच हो चुकी है और बाकी क्षेत्रों में इसकी पहुंच की रफ्तार काफी तेज है। इसकी वजह से वहां के ग्राहकों या उपभोक्ताओं के व्यवहार में भी काफी बदलाव हुआ है। आनलाइन खरीदारी उनके लिए अब एक विलासिता नहीं, बल्कि जरूरत बन गई है।
कोविड महामारी ने भी इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने अचानक नए ई-कामर्स उद्यमों को प्रेरित किया। डिजिटल भुगतान प्रणाली के बढ़ते चलन ने इसे और हवा दी। कुछ साल पहले भारत मुख्य रूप से नकदी-आधारित समाज था, जिसमें क्रेडिट और डेबिट कार्ड का उपयोग समाज का केवल एक छोटा वर्ग करता था।
पिछले कुछ वर्षों में ‘यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस’ (यूपीआइ) में परिवर्तन के कारण इसमें काफी उछाल आया है, जिसमें लाखों भारतीयों के बैंक खाते ऐप्प और छोटी वस्तुओं से जुड़े हुए हैं। इसने न केवल आबादी के एक बड़े हिस्से को डिजिटल रूप से अधिक साक्षर बनाया है, बल्कि इससे आनलाइन खरीदे गए सामान का भुगतान करना भी बहुत आसान हो गया है।
दिलचस्प है कि वित्तवर्ष 2021 में 53.8 फीसद की तुलना में वित्तवर्ष 2022 में श्रेणी-2 और श्रेणी-3 शहरों के खरीदारों की कुल बाजार हिस्सेदारी 61 फीसद से अधिक थी। जबकि श्रेणी-1 शहरों में ई-कामर्स की वृद्धि दर 47.2 फीसद से कम है। श्रेणी-2 और श्रेणी-3 शहरों में क्रमश: 92.2 फीसद और 85.2 फीसद की वृद्धि देखी गई।
भारत के ई-कामर्स क्षेत्र ने भारत में व्यापार करने का तरीका भी बदल दिया है और ‘बिजनेस टु बिजनेस’ (बी2बी), ‘डायरेक्ट टु कंज्यूमर’ (डी2सी) से लेकर वाणिज्य के विभिन्न क्षेत्रों यानी उपभोक्ता से उपभोक्ता (सी2सी) और उपभोक्ता से व्यवसाय (सी2बी) को खोल दिया है। इंटरनेट और स्मार्टफोन तक पहुंच को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत में ई-कामर्स का आकार 2030 तक बढ़कर 40 अरब डालर का हो जाएगा, जो 2019 में महज चार अरब डालर था।
हालांकि डिजिटल परिवर्तन उपभोक्ता व्यवहार को भी बदल रहा है, जो 2023 में खुदरा उद्योग के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकता है। आने वाले वर्षों में ‘ब्रांड’ के प्रति वफादारी बनाए रखना कठिन काम होगा। भारतीय उपभोक्ता, जो किसी एक चीज पर समझौता करने से पहले कई चीजों को आजमाता है, उसकी झोली में स्मार्टफोन या डिजिटल दुनिया तक पहुंच के अलावा और भी बहुत कुछ है।
इससे कुछ अन्य व्यापक चिंताएं भी पैदा हो रही हैं कि भारत की आर्थिक वृद्धि का लाभ कुछ कंपनियों और उनके अरबपति मालिकों के हाथों में केंद्रित हो रहा है। भारत की पारंपरिक स्थानीय पड़ोसी किराना दुकानों के शक्तिशाली संजाल को भी इससे धक्का पहुंचा है, जो वर्तमान में भारत के किराना बाजार का लगभग अस्सी फीसद है, जबकि वर्तमान में आनलाइन खरीदे जाने वाले किराने का सामान मात्र एक फीसद है। अपनी दुकानदारी पर प्रतिकूल असर देखते हुए इनमें से कुछ डिजिटल हो गए हैं या सीधे ई-कामर्स मंचों के साथ साझेदारी कर ली है।
स्थानीय फुटकर और खुदरा व्यापारियों की मानसिकता पर भी आनलाइन शापिंग ने विरोध का भाव पैदा किया है। इसके अलावा भले ई-कामर्स मंचों ने लाखों मुक्त यानी ‘गिग’ श्रमिकों के लिए रोजगार पैदा किया है, लेकिन उनके रोजगार से संबंधित कानून पीछे रह गए हैं। आज भी भारत में 2.3 करोड़ गिग श्रमिक उचित कानूनी सुरक्षा के बिना काम कर रहे हैं।
जैसे-जैसे प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, कई ई-कामर्स कंपनियां लागत में कटौती कर रही हैं, जिन्होंने लाभ के लिए सीधे तौर पर गिग श्रमिकों को लक्षित किया है। स्थानीय व्यापारियों की नाराजगी सरकार के लिए थोड़ी समस्याग्रस्त साबित हुई है, क्योंकि दुकानदारों और छोटे व्यवसायों के संजाल के पास स्थानीय प्रभाव और मजबूत संगठनों के माध्यम से बड़ी शक्ति है, और वे एक महत्त्वपूर्ण चुनावी समूह हैं।
ई-कामर्स के इतना पैर पसारने और विकास के बावजूद, भारत अब भी एक महत्त्वपूर्ण डिजिटल विभाजन से बाधित है। देश का पचास फीसद से अधिक हिस्सा आज भी इंटरनेट पहुंच से वंचित है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह काफी अधिक है। आनलाइन खरीदारी की आकांक्षाएं समाज के सबसे गरीब लोगों की पहुंच से दूर हैं।